500 करोड़ VS सदियों की परंपरा! बांके बिहारी कॉरिडोर पर क्यों भड़का गोस्वामी समाज?

वृंदावन में प्रस्तावित 500 करोड़ की बांके बिहारी कॉरिडोर योजना को लेकर भारी विरोध जारी है. गोस्वामी समाज का दावा है कि यह परियोजना कुंज गलियों को खत्म कर पारंपरिक पूजा पद्धति, आजीविका और आस्था को नुकसान पहुंचाएगी. वहीं, सरकार इसे श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा के लिए जरूरी मान रही है. अब ये टकराव संस्कृति और संरचना के बीच का बन गया है.;

Curated By :  नवनीत कुमार
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उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित 500 करोड़ रुपये की लागत वाली बांके बिहारी कॉरिडोर योजना को लेकर वृंदावन में घमासान मचा हुआ है. सरकार इसे श्रद्धालुओं के लिए एक आधुनिक, सुव्यवस्थित और सुरक्षित सुविधा के रूप में देख रही है, लेकिन गोस्वामी समाज और स्थानीय लोगों का कहना है कि यह परियोजना उनकी परंपरा, आस्था और जीवनशैली को ही नष्ट कर देगी. यह टकराव केवल भौतिक संरचना का नहीं, बल्कि संस्कृति और पहचान का संघर्ष बन चुका है.

गोस्वामी समाज का सबसे बड़ा विरोध उन ऐतिहासिक 'कुंज गलियों' को लेकर है, जो राधा-कृष्ण की लीलाओं और वृंदावन की आत्मा से जुड़ी हैं. उनका कहना है कि कॉरिडोर निर्माण से ये गलियां समाप्त हो जाएंगी, जिससे इस पवित्र नगरी की पारंपरिक बनावट और आध्यात्मिक ऊर्जा को भारी नुकसान होगा. श्रद्धालुओं के लिए ये गलियां केवल रास्ता नहीं, एक भावनात्मक और धार्मिक यात्रा का हिस्सा हैं.

पूजा पद्धति पर प्रभाव का डर

गोस्वामी समाज का मानना है कि इस आधुनिक और विशाल परियोजना से वृंदावन की शांति और पूजा पद्धति पर गहरा असर पड़ेगा. बांके बिहारी मंदिर की भक्ति-प्रधान और सरल पूजा-व्यवस्था भव्य संरचनाओं की चकाचौंध में दब सकती है. सामाजिक प्रतिनिधियों को डर है कि इस परिवर्तन से मंदिर के आध्यात्मिक महत्व में गिरावट आ सकती है, जो इसे दुनिया भर के भक्तों के लिए विशेष बनाता है.

रोज़ी-रोटी पर मंडराता खतरा

कॉरिडोर योजना के अंतर्गत मंदिर के आसपास की कई दुकानों और छोटे व्यवसायों को हटाया जाना प्रस्तावित है. इससे उन परिवारों की आजीविका प्रभावित होगी जो वर्षों से श्रद्धालुओं की सेवा कर रहे हैं. समाज का तर्क है कि इस विकास के नाम पर स्थानीय व्यापारियों और सेवाभावियों को उजाड़ना सामाजिक अन्याय है, जो लंबे समय तक विरोध का कारण बन सकता है.

पारदर्शिता पर सवाल

गोस्वामी समाज और स्थानीय समुदाय को परियोजना की पारदर्शिता पर भी गहरा संदेह है. उनका आरोप है कि इतने बड़े बजट वाली योजना में टेंडर और खर्च की प्रक्रिया में गड़बड़ियां हो सकती है. उनके अनुसार भक्तों के दान का गलत इस्तेमाल और भ्रष्टाचार मंदिर की गरिमा को ठेस पहुंचा सकते हैं. यह भय श्रद्धालुओं के मन में भी इस परियोजना के प्रति अविश्वास बढ़ा रहा है.

क्या कह रही सरकार?

सरकार का पक्ष स्पष्ट है कि कॉरिडोर श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा के लिए आवश्यक है. हर साल मंदिर में भीड़ से उत्पन्न होने वाली अव्यवस्था के चलते कई हादसे होते हैं. सरकार का कहना है कि दो मंजिला कॉरिडोर, तीन प्रवेश मार्ग, और आधुनिक सुविधाएं मंदिर दर्शन को सहज बनाएंगी, जिससे लाखों श्रद्धालुओं को लाभ मिलेगा और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी.

अदालत की पहल के बाद बनी योजना

इस परियोजना की नींव तब पड़ी जब 2022 में जनमाष्टमी के दौरान मंदिर में मची भगदड़ में दो लोगों की मृत्यु हो गई थी. इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रशासन को स्पष्ट निर्देश दिए कि भीड़ प्रबंधन के लिए योजना तैयार की जाए. इसी के तहत इस कॉरिडोर का प्रस्ताव सामने आया, जिसका उद्देश्य है सुरक्षा, व्यवस्था और श्रद्धालुओं का अनुभव बेहतर बनाना.

टकराव या समाधान की ओर?

अब सवाल ये है कि क्या सरकार श्रद्धालुओं की भलाई के नाम पर स्थानीय लोगों की चिंता और परंपरा को नजरअंदाज करेगी? या संवाद के जरिए एक ऐसा समाधान निकलेगा जिसमें विकास और आस्था दोनों का संतुलन बना रहे? वृंदावन की आत्मा को बचाए रखते हुए आधुनिक व्यवस्थाओं को समाहित करना ही इस परियोजना की असली कसौटी होगी.

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