भोपाल से यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे को हटाने में क्‍यों लग गए 40 साल और 30 दिन?

लगभग 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को भोपाल से 250 किलोमीटर दूर पीथमपुर ले जाकर नष्ट किया जाएगा. गैस राहत विभाग के डायरेक्टर स्वतंत्र सिंह ने बताया कि फैक्ट्री में करीब 337 मीट्रिक टन कचरा मौजूद है, जिसमें 'सीवन' नामक कीटनाशक शामिल है. यह कीटनाशक यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में बनाया जाता था.;

Curated By :  नवनीत कुमार
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दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदी और भोपाल के लिए न मिटने वाला घाव बनी यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री का जहरीला कचरा एक जनवरी 2025 को पूरे 40 साल 30 दिन बाद हाईकोर्ट के आदेश पर हटाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. लगभग 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को भोपाल से 250 किलोमीटर दूर पीथमपुर ले जाकर नष्ट किया जाएगा. गैस राहत विभाग के डायरेक्टर स्वतंत्र सिंह ने बताया कि फैक्ट्री में करीब 337 मीट्रिक टन कचरा मौजूद है, जिसमें 'सीवन' नामक कीटनाशक शामिल है. यह कीटनाशक यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में बनाया जाता था.

अमेरिकी कंपनी की कारगुजारियों के बाद छूटे इस कचरे को हटाने के लिए वर्षों तक कोशिशें की गईं, लेकिन कागजों पर हुई इस कार्रवाई का जमीन पर कोई असर नहीं दिखा. कई साल की अदालती कार्यवाही के बाद अब आखिरकार केंद्र और मध्य प्रदेश सरकार ने आपसी सहयोग से इस जहरीले कचरे को हटाने का काम शुरू किया है.

अबतक क्या क्या हुए प्रयास?

यूनियन कार्बाइड की गलती से फैले जहरीले कचरे पर भारत-अमेरिका में कई केस हुए. 2004 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर कर डाओ केमिकल्स पर जिम्मेदारी तय करने और सफाई के लिए कदम उठाने की मांग की गई. हाईकोर्ट ने टास्क फोर्स बनाई, जिसका नेतृत्व केंद्र सरकार के केमिकल्स विभाग ने किया. 2005 में सीपीसीबी ने गुजरात के अंकलेश्वर में एक इन्सीनरेटर चुना, लेकिन विरोध के चलते इसे रोका गया.

2010 में सुप्रीम कोर्ट ने पीथमपुर में 346 टन कचरे को नष्ट करने की मंजूरी दी, लेकिन तकनीकी विवाद के चलते राज्य सरकार ने इसे चुनौती दी. 2012 में जर्मन कंपनी ने कचरा जर्मनी में नष्ट करने का प्रस्ताव दिया, लेकिन विरोध के कारण इसे वापस ले लिया. टास्क फोर्स ने मुंबई और हैदराबाद सहित अन्य साइट्स की पहचान की. 2015 में पीथमपुर में ट्रायल हुआ, लेकिन स्थानीय विरोध के कारण बंद करना पड़ा. 2024 में केंद्र ने 126 करोड़ रुपये जारी कर सफाई शुरू की.

हाईकोर्ट ने जताई थी नाराजगी

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में भोपाल में यूनियन कार्बाइड परिसर को खाली करने में हो रही देरी पर नाराजगी जाहिर की. कोर्ट ने अधिकारियों की लापरवाही को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह उदासीनता एक और त्रासदी का कारण बन सकती है. भोपाल गैस त्रासदी राहत और पुनर्वास विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार सिंह ने बताया कि यदि सब कुछ सही पाया गया, तो जहरीले कचरे को तीन महीने के भीतर नष्ट कर दिया जाएगा. हालांकि, किसी भी बाधा की स्थिति में इस प्रक्रिया को पूरा होने में नौ महीने तक का समय लग सकता है. हाईकोर्ट ने 3 दिसंबर को निर्देश दिया था कि जहरीले कचरे को चार सप्ताह के भीतर स्थानांतरित किया जाए. साथ ही सरकार को चेतावनी दी थी कि यदि इस आदेश का पालन नहीं हुआ तो अवमानना की कार्रवाई की जाएगी.

कब हुआ था हादसा?

2 और 3 दिसंबर 1984 की मध्यरात्रि में भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कीटनाशक फैक्ट्री से अत्यधिक जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ. इस त्रासदी में कम से कम 5,479 लोग मारे गए और हजारों लोग विकलांग हो गए. इसे दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक आपदाओं में से एक माना जाता है.

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