AQI 390 पार... सांस लेने में तकलीफ, हर साल दिवाली से पहले क्यों ख़राब होने लगती है दिल्ली की हवा?
दिल्ली और एनसीआर में दिवाली से पहले ही हवा जहरीली होने लगी है. राजधानी में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 390 के पार पहुंच चुका है, जो "गंभीर" श्रेणी में आता है. इस बढ़ते प्रदूषण ने लोगों की सांस लेना मुश्किल कर दिया है, आंखों में जलन, गले में खराश, सिरदर्द और सांस की तकलीफ जैसे लक्षण तेज़ी से बढ़ने लगे हैं. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर हर साल दिवाली से पहले दिल्ली की हवा इतनी खराब क्यों हो जाती है?;
दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र हर साल अक्टूबर-नवंबर के महीने में गंभीर वायु प्रदूषण की मार झेलते हैं. दिवाली के करीब आते-आते प्रदूषण स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है और एयर क्वालिटी इंडेक्स 400–500 तक दर्ज किया जाता है, जो "गंभीर" श्रेणी में माना जाता है.
यह वही समय होता है जब लोगों को आंखों में जलन, सांस लेने में दिक्कत, अस्थमा और एलर्जी जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं. लेकिन सवाल यह है कि आखिर हर साल दिवाली से पहले ही दिल्ली की हवा क्यों खराब होने लगती है? चलिए जानते हैं इस समस्या का असली कारण क्या है.
पराली जलाना
दिवाली से पहले हवा खराब होने का सबसे बड़ा कारण है पंजाब, हरियाणा और उत्तरप्रदेश में पराली जलाना. कृषि मंत्रालय की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार:
- हर साल करीब 2 करोड़ टन पराली खेतों में जलाई जाती है.
- इससे निकलने वाले प्रदूषक दिल्ली की हवा में PM 2.5 और PM 10 कणों को 30–40% तक बढ़ा देते हैं.
- NASA सैटेलाइट डेटा के अनुसार, अक्टूबर के मध्य से नवंबर तक पराली जलाने की घटनाओं में भारी उछाल दर्ज किया जाता है.
जब किसान धान कटाई के बाद खेत साफ करने के लिए पराली जलाते हैं तो उसकी धुआं पश्चिमी हवाओं के साथ NCR की ओर बढ़ता है और यहां की पहले से ही खराब हवा को और जहरीली बना देता है.
मौसम बदलाव और ठंडी हवाओं का असर
अक्टूबर से उत्तरी भारत में मौसम बदलना शुरू हो जाता है. यही समय होता है जब हवा की गति धीमी हो जाती है और तापमान गिरने लगता है. इससे प्रदूषित कण हवा में ऊपर नहीं उठ पाते और जमीन के स्तर पर ही जमा होने लगते हैं. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, इस समय हवा की औसत गति 6–8 किमी/घंटा से घटकर 2–3 किमी/घंटा रह जाती है. हवा ठंडी होने से इनवर्ज़न लेयर बनती है, जिसमें प्रदूषण जमीन पर ही फंस जाता है. बारिश न होने की वजह से हवा और धूल साफ नहीं हो पाती.
गाड़ी और औद्योगिक प्रदूषण
दिल्ली में पंजीकृत वाहनों की संख्या 2024 में 1.25 करोड़ से अधिक हो चुकी है (दिल्ली ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट के अनुसार). इनमें से बड़ी संख्या में वाहन डीजल और पेट्रोल पर चलते हैं, जो बड़े पैमाने पर नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) जैसे जहरीले गैसों का उत्सर्जन करते हैं. इसके अलावा:
- NCR में 12,000 से ज्यादा फैक्ट्रियां प्रदूषण में हिस्सा लेती हैं.
- NCR के गाजियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद और गुरुग्राम में कंस्ट्रक्शन गतिविधियां लगातार जारी रहती हैं.
- इससे धूल और सूक्ष्म कण (PM 2.5) प्रदूषण में 20–25% तक योगदान देते हैं.
पटाखों की मार – दिवाली को बनाते हैं जहरीली
हालांकि सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने पटाखों पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की है, लेकिन फिर भी दिवाली पर बड़े पैमाने पर पटाखे फोड़े जाते हैं.
- पटाखों से PM 2.5 के स्तर में 24 घंटे के भीतर 8 गुना तक वृद्धि दर्ज की गई है (CPCB रिपोर्ट 2022).
- पटाखों से निकलने वाली धातुयुक्त गैसें जैसे लेड, कॉपर, बेरियम और नाइट्रेट्स हवा को और खतरनाक बना देती हैं.
- दिवाली की रात के बाद AQI 450–500 तक पहुंचना आम बात बन चुका है.
दिल्ली की भौगोलिक स्थिति भी जिम्मेदार
दिल्ली की भौगोलिक स्थिति भी प्रदूषण की समस्या को बढ़ाती है. यह तीन तरफ से हरियाणा और उत्तर प्रदेश से घिरी है और यमुना के किनारे स्थित है. हवा यहां आसानी से ठहर जाती है, जिससे प्रदूषण बाहर नहीं निकल पाता.
सेहत पर कितना खतरनाक?
दिल्ली में रहने वाले लोग लगातार जहरीली हवा में सांस लेने पर मजबूर हैं. AIIMS की एक रिपोर्ट के अनुसार:
- हर तीसरा बच्चा अस्थमा या सांस संबंधी बीमारी से प्रभावित है.
- फेफड़ों की कार्यक्षमता में 25–30% तक की कमी देखी गई है.
- प्रदूषण से हर साल NCR में लगभग 17,000 समय से पहले मौतें होती हैं (लैंसेट रिपोर्ट 2023).
क्या समाधान संभव है?
सरकार और प्रशासन कई कदम उठा रहे हैं. जैसे ग्रैप (Graded Response Action Plan) लागू करना, पराली को रोकने के लिए Happy Seeder जैसी मशीनों की मदद, दिल्ली में ऑड-ईवन फॉर्मूला, धूल नियंत्रित करने के लिए एंटी-स्मॉग गन, ग्रीन पटाखों को बढ़ावा. लेकिन जब तक प्रदूषण नियंत्रण में सामूहिक प्रयास नहीं होंगे, समस्या बनी रहेगी.
हर साल दिवाली से पहले प्रदूषण बढ़ने का कारण सिर्फ पटाखे नहीं, बल्कि मौसम, पराली, धूल, वाहन और औद्योगिक प्रदूषण जैसे कई कारकों का संयुक्त असर है. समस्या गंभीर है और इसके समाधान के लिए कड़े कदमों के साथ-साथ जन जागरूकता भी जरूरी है. अगर अभी कदम नहीं उठाए गए तो दिल्ली की हवा सांस लेने लायक नहीं बचेगी.