अस्पतालों में ICU, ब्लड बैंक और मोर्चरी तक नहीं, 3 साल में बने सिर्फ 38 मोहल्ला क्लीनिक; कैग रिपोर्ट में क्या-क्या?

कैग रिपोर्ट ने दिल्ली के मोहल्ला क्लीनिक मॉडल में वित्तीय कुप्रबंधन, डॉक्टरों की लापरवाही और स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी उजागर की. रिपोर्ट के अनुसार, कई अस्पतालों में आईसीयू, ब्लड बैंक और ऑक्सीजन आपूर्ति नहीं है. आवश्यक दवाओं की भारी कमी पाई गई. कोविड आपातकालीन निधि का भी पूरा उपयोग नहीं हुआ, जिससे स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव पड़ा.;

Edited By :  नवनीत कुमार
Updated On : 28 Feb 2025 11:34 AM IST

आप सरकार ने आम आदमी मोहल्ला क्लीनिक को स्वास्थ्य का नायाब मॉडल बताकर बेशक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरीं, लेकिन कैग रिपोर्ट ने उसके दावों की पोल खोल दी है. दिल्ली के स्वास्थ्य सेवा ढांचे पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट ने पिछले छह वर्षों में गंभीर वित्तीय कुप्रबंधन, लापरवाही और जवाबदेही की कमी को उजागर किया है.

आज दिल्ली विधानसभा में पेश की जाने वाली रिपोर्ट में उपकरणों और स्वास्थ्य कर्मियों की भारी कमी, मोहल्ला क्लीनिकों में खराब बुनियादी ढांचे और आपातकालीन निधियों के कम उपयोग की ओर इशारा किया गया है.

सामने आई डॉक्टरों की लापरवाही

रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली की प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं चरमरा चुकी है. मोहल्ला क्लीनिक, डिस्पेंसरी सहित सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) डॉक्टरों, कर्मियों, दवाओं और बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं. मोहल्ला क्लीनिकों में थर्मामीटर, ब्लड प्रेशर जांच की मशीन, ग्लूकोमीटर जैसे सामान्य उपकरण भी नहीं हैं. अधिकतर मरीजों की जांच में डॉक्टर एक मिनट भी नहीं देते हैं और बिना जांच के दवा दे दी जाती है.

तीन साल में बने सिर्फ 38 क्लीनिक

कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च 2017 तक 1000 मोहल्ला क्लीनिक बनने थे, जबकि मार्च 2023 तक 523 ही खुल पाए. इनमें भी शाम की पाली के 31 क्लीनिक भी शामिल हैं. 31 मार्च 2020 के बाद तीन वर्षों में सिर्फ 38 क्लीनिक बन पाए. कैग ने चार जिलों के 218 मोहल्ला क्लीनिकों का ऑडिट किया. 74 क्लीनिकों के संयुक्त निरीक्षण में पाया गया कि 53% (39) मोहल्ला क्लीनिक में 75% से भी कम आवश्यक दवाएं हैं. अक्टूबर 2022 से मार्च 2023 के बीच इलाज के लिए पहुंचे 70 प्रतिशत मरीजों को एक मिनट से भी कम समय दिया गया.

कैग रिपोर्ट के मेन पॉइंट्स

  • दिल्ली के 27 अस्पतालों में से 14 में आईसीयू की सुविधा नहीं है, 16 में ब्लड बैंक नहीं हैं, 8 अस्पतालों में ऑक्सीजन आपूर्ति नहीं है और 15 अस्पतालों में शवगृह नहीं हैं. 12 अस्पताल बिना एंबुलेंस सेवाओं के चल रहे हैं.
  • कई मोहल्ला क्लीनिकों में शौचालय, बिजली बैकअप और चेक-अप टेबल जैसी आवश्यक सुविधाएं नहीं हैं. आयुष डिस्पेंसरियों में भी यही स्थिति पाई गई.
  • दिल्ली के अस्पतालों में स्टाफ की भारी कमी है, नर्सों की 21 प्रतिशत, पैरामेडिक्स की 38 प्रतिशत तथा कुछ अस्पतालों में डॉक्टरों और नर्सों की 50-96 प्रतिशत कमी है.
  • राजीव गांधी और जनकपुरी सुपर स्पेशियलिटी अस्पतालों में ऑपरेशन थिएटर, आईसीयू बेड और निजी कमरे यूज़ में नहीं रहते हैं, जबकि ट्रॉमा सेंटरों में आपातकालीन देखभाल के लिए विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है.
  • कोविड-19 पर रोकथाम के लिए आवंटित 787.91 करोड़ रुपये में से केवल 582.84 करोड़ रुपये का ही उपयोग किया गया. स्वास्थ्य कर्मियों के लिए निर्धारित कुल 30.52 करोड़ रुपये खर्च नहीं किए गए, जबकि आवश्यक दवाओं और पीपीई किट के लिए आवंटित 83.14 करोड़ रुपये भी इस्तेमाल नहीं किए गए.
  • वादा किए गए 32,000 नए अस्पताल बिस्तरों में से केवल 1,357 (4.24 प्रतिशत) जोड़े गए. कुछ अस्पतालों ने 101 प्रतिशत-189 प्रतिशत तक भरे होने की सूचना दी, जिससे मरीजों को फर्श पर लेटने के लिए मजबूर होना पड़ा.
  • प्रमुख अस्पताल परियोजनाओं में 3-6 साल की देरी हुई, जिससे लागत में 382.52 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई. इंदिरा गांधी अस्पताल, बुराड़ी अस्पताल और एमए डेंटल फेज-2 जैसे अस्पताल इससे प्रभावित हुए.
  • लोक नायक अस्पताल में मरीजों को सामान्य सर्जरी के लिए 2-3 महीने और बर्न व प्लास्टिक सर्जरी के लिए 6-8 महीने तक इंतज़ार करना पड़ता है. सीएनबीसी अस्पताल में बाल चिकित्सा सर्जरी के लिए 12 महीने का वेटिंग पीरियड है.

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