बम से उड़ाने की धमकी से कैसे निपटते हैं बम स्क्वॉड? दिल्ली में स्कूलों को 11 दिनों में 6 बार मिला थ्रेट
Bomb Squads: बम स्क्वॉड के कर्मियों के लिए यह सब पुलिस कंट्रोल रुम में 112 नंबर डायल करके की गई पहली कॉल से शुरू होता है. इसके बाद वह हरकत में आ जाते हैं और अपने काम में लग जाते हैं.;
Bomb Squads: धमकियों का मिलना अब आम बात हो गई है, लेकिन सतर्कता बरतने में कोताही नहीं की जा सकती है. दिल्ली में एक और दिन कम से कम चार स्कूलों में बम की धमकियां मिली, हालांकि ये सभी बाद में झूठी निकली. 11 दिनों में छठी ऐसी घटना सामने आई है. एक मामले में तो स्कूल का बच्चा ही धमकी देने वाला निकला, क्योंकि वह परीक्षा नहीं देना चाहता था. हालांकि, इसे छोड़कर किसी में भी खुलासे नहीं हो सके.
पुलिस को अपराधियों को ट्रैक करना मुश्किल हो रहा है क्योंकि वे अपने स्थान और IP एड्रेस को छिपाने के लिए VPN का उपयोग करते हैं. प्रोटॉनमेल के साथ मिलकर पुलिस अधिकारियों के लिए अपराधियों को ट्रैक करना लगभग असंभव हो जाता है. प्रोटॉनमेल एक ईमेल सेवा जो एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन देती है.
धमकी मिलने के साथ ही शुरू होता है BDS का काम
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली पुलिस के बम निरोधक दस्ते (BDS) और BDT दिल्ली NCR के स्कूलों से आने वाली झूठी धमकियों की सूचना से ही सतर्क हो जाते हैं. कंट्रोल रूम से लेकर जिला BDT यूनिट्स तक की हरकत में आ जाती है. जैसे ही कंट्रोल रूम को बम की धमकी के बारे में सूचना मिलती है. संबंधित जिले के BDT निरीक्षकों को 60 सेकंड के भीतर सतर्क कर दिया जाता है.
बीडीएस के अधिकारी ने बताया कि कॉल के पांच से 10 मिनट के अंदर 7 लोगों की BDT ROV (रिमोट ऑपरेशन व्हीकल) में घटनास्थल पर पहुंच जाता है. अधिकारी ने कहा कि टीम में एक इंस्पेक्टर, दो सब-इंस्पेक्टर, तीन हेड कांस्टेबल, एक डॉग हैंडलर और विस्फोटक को सूंघने के लिए एक कुत्ता शामिल होता है.
बम का पता लगाने में लग जाती है बम स्क्वॉड
टीम सबसे पहले इसे वैरिफाई करने की कोशिश करता है कि कॉल झूठी है या नहीं. बम का पता लगाने के लिए कई डिवाइस को काम पर लगाया जाता है. नॉन लीनियर जंक्शन डिटेक्टर (NLJD) और एम-आईओएन (विस्फोटक हथियार डिटेक्टर) का उपयोग सबसे पहले यह देखने के लिए किया जाता है कि कोई विस्फोटक मौजूद है या नहीं. डीप सर्च मेटल डिटेक्टर(DSMD) का इस्तेमाल मेटल की वस्तुओं की तलाशी के लिए किया जाता है.
RTVS से होती है अंदरूनी जांच
बीडीएस अधिकारी ने बताया कि पोर्टेबल एक्स-रे मशीन RTVS का इस्तेमाल बंद वस्तुओं के अंदर तारों और स्विच की जांच के लिए किया जाता है. चूंकि, बम सूट 100 प्रतिशत सुरक्षा की गारंटी नहीं देते हैं, इसलिए संदिग्ध वस्तुओं को उठाने के लिए टेलीस्कोपिक मैनिपुलेटर नामक रोबोटिक हैंड का इस्तेमाल किया जाता है. ये हैंड 10 फुट लंबे होते हैं और रिमोट से नियंत्रित होते हैं.अगर कोई बम नहीं मिलता है तो बीडीटी इसकी घोषणा करता है.
अगर कोई संदिग्ध या संभावित विस्फोटक पाया जाता है तो बीडीटी संबंधित रेंज की BDS टीम को कार्रवाई के लिए बुलाता है. अधिकारी ने बताया, 'जैसे ही BDS टीम आती है, BTD संभावित विस्फोट के प्रभाव को कम करने के लिए विस्फोटक को 'बम कंबल और सुरक्षा घेरा' से ढक देता है. ये कंबल छर्रों के फैलने को नियंत्रित करते हैं.' आगे इसे डिफ्यूज करने का प्रोसेस जारी होता है.