EXCLUSIVE: 25 साल पहले इंस्पेक्टर पिता ने आतंकी को कराई थी ‘फांसी’, अब दिल्ली कार बम ब्लास्ट के आरोपियों को अंजाम तक पहुंचाएगा बेटा
दिल्ली कार बम ब्लास्ट की जांच में एक बार फिर वही परिवार चर्चा में है, जिसने 25 साल पहले लाल किला आतंकी हमले के मास्टरमाइंड को फांसी दिलाई थी. रिटायर्ड इंस्पेक्टर सुरेंद्र संड, जिन्होंने 2000 के लाल किला हमले में लश्कर कमांडर अशफाक को खुद कश्मीर ले जाकर फांसी दिलाई थी, अब उनके बेटे इंस्पेक्टर रोहित संड दिल्ली ब्लास्ट की जांच टीम में शामिल हैं. पिता की बहादुरी और बेटे की तकनीकी जांच क्षमता इस केस का सबसे बड़ा भरोसा बनी हुई है.;
10 नवंबर 2025 को दिल्ली में चांदनी चौक और लाल किला की रेडलाइट पर शाम के वक्त हुए भंयकर कार बम विस्फोट ने भारत सहित दुनिया को चौंका दिया है. घटना की जांच में एनआईए, एनएसजी और दिल्ली सहित हरियाणा, जम्मू-कश्मीर पुलिस तक जुटी है. भारतीय खुफिया एजेंसियों (रॉ-आईबी) की इस शर्मनाक चूक पर गर्दनें झुकी हुई हैं. पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन वहां की मक्कार फौज और घाघ खुफिया एजेंसी आईएसआई जश्न मना रही है. “स्टेट मिरर हिंदी” के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन को ऐसे दिल दहला देने वाले कार बम विस्फोट की तफ्तीश में ‘तहतक’ पहुंचने पर, काफी कुछ गजब का भी दिखाई दिया है.
मसलन इन तमाम खबरों के बीच पता चलता है कि श्रीनगर (कश्मीर घाटी) नौगाम थाने पर हुए जबरदस्त बम-धमाके में सीधे-सीधे वहां की पुलिस की लापरवाही रही. जिसके चलते कई पुलिसकर्मियों सहित 9 लोगों की वहां हुए विस्फोट में अकाल मौत हो गई. नौगाम पुलिस की लापरवाही इसलिए क्योंकि, दिल्ली पुलिस ने कश्मीर पुलिस को बहुत पहले आगाह किया था कि, वह फरीदाबाद में जब्त की जा चुकी अमोनियम नाइट्रेट की खेप को दिल्ली से कश्मीर (नौगाम) ले जाने की गलती न करे. क्योंकि दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार डॉक्टर आतंकवादयों ने बताया था कि, फरीदाबाद में जब्त विस्फोटक का कुछ हिस्सा ऐसा है जो कभी भी जरा सी लापरवाही बरतने पर ‘फट’ कर तबाही मचा सकता है. इसके बाद भी लापरवाहीपूर्ण तरीके से, और दिल्ली पुलिस के बेहद अहम इनपुट को नजरंदाज करना कश्मीर पुलिस को किस कदर नौगाम थाने में घातक-जानलेवा साबित हुआ, कश्मीर पुलिस अपनी आंखों से देख रही है.
इंस्पेक्टर पिता-पुत्र की लाजवाब जोड़ी
पुलिस मुख्यालय में मौजूद दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच और दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, “10 नवंबर 2025 को दिल्ली में लाल किला के सामने हुए कार बम धमाके की जांच टीम में इंस्पेक्टर रोहित संड जुड़े हैं. जोकि खुद भी उत्तरी दिल्ली जिला स्पेशल स्टाफ इंचार्ज हैं. 2009 बैच के सब इंस्पेक्टर और अब इंस्पेक्टर बन चुके रोहित संड के पिता सुरेंद्र संड भी दिल्ली पुलिस में करीब 40 साल सेवा देकर रिटायर हो चुके हैं. सुरेंद्र संड ने 1970 के दशक में दिल्ली पुलिस में सिपाही के पद पर ज्वाइन किया था. उसके बाद वे अपने बलबूते गजब के तफ्तीशी-पड़ताली अफसर साबित होकर दिल्ली पुलिस से इंस्पेक्टर पद से रिटायर हो गए.
25 साल पहले लाल किला आतंकवादी हमला
मैं जिक्र दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के उन्हीं इंस्पेक्टर सुरेंद्र संड और उनके अब दिल्ली पुलिस में मौजूद इंस्पेक्टर बेटे रोहित संड का कर रहा हूं, जो 22 दिसंबर 2000 को यानी, अब से करीब 25 साल पहले रात 9 बजे इसी लाल किला के भीतर अंजाम दिये जा चुके आतंकवादी हमले के जांच अधिकारी रह चुके हैं. 25 साल पहले 22 दिसंबर 2000 की रात पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों ने जब दिल्ली स्थित लाल किला के भीतर मौजूद तीन फौजियों को शहीद कर दिया. तब उस मामले की तफ्तीश इन्हीं आज के उत्तरी दिल्ली जिला पुलिस स्पेशल स्टाफ इंचार्ज इंस्पेक्टर रोहित संड के पिता को, उस लाल किला आतंकवादी हमले की जांच दी गई थी.
दिल्ली पुलिस के बांक बहादुरों का ‘खून’ सूख गया
अब से 25 साल पहले इंस्पेक्टर सुरेंद्र संड को लाल किला पर हुए आतंकवादी हमले की जांच दिए जाने से जुड़ा भी एक हैरान करने वाला किस्सा है. स्टेट मिरर हिंदी के “विशेष” बातचीत में इंस्पेक्टर सुरेंद्र संड बताते हैं, “25 साल पहले लाल किला के अंदर घुसकर किए गए हमले के बाद आतंकवादी गुटों ने धमकी दे रखी थी कि, दिल्ली पुलिस अगर कश्मीर घाटी में उस हमले की जांच के लिए पांव रखेगी, तो दिल्ली पुलिस टीम वहां से (कश्मीर घाटी से) जिंदा वापस नहीं लौटेगी. आतंकवादी गुटों की ओर से आई धमकी की इस खबर ने दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच और दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल में तब तैनात रहे कई कथित बहादुर बांके-बहादुर दारोगा-इंस्पेक्टर एसीपी की रगों में खून सुखा दिया.”
दिल्ली पुलिस के तमाम दिलेर ‘पसर’ गए
ऐसे में दिल्ली पुलिस के सामने यक्ष प्रश्न था कि अब बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे? मतलब, कश्मीर से आई इस धमकी के बाद भी दिल्ली से लश्कर ए तैयबा के जिंदा हाथ लगे एरिया कमांडर-खूंखार पाकिस्तानी आंतकवादी मोहम्मद आरिफ उर्फ अशफाक को दिल्ली पुलिस से कश्मीर कौन लेकर जाए? अपनी अकाल मौत के खौफ की कल्पना भर से भयभीत दिल्ली पुलिस के तमाम बांके-बहादुर (जो दिल्ली में खुद से बड़ा-बहादुर और तेज शार्प शूटर एनकाउंटर स्पेशलिस्ट किसी को समझते ही नहीं थे, और वे दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल व क्राइम ब्रांच अफसरों यानी डीसीपी, ज्वाइंट सीपी के मुंहलगे भी थे) जब पाकिस्तानी आतंकवादी और लश्कर ए तैयबा के एरिया कमांडर, व उन दिनों हुए लाल किला पर आतंकवादी हमले के मास्टरमाइंड मो. अशफाक को दिल्ली से कश्मीर घाटी ले जाने से साफ पसर गए.
इंस्पेक्टर सुरेंद्र संड-रोहित संड का जिक्र जरूरी है
तब उस खौफनाक घड़ी में सामने निकल कर आए थे यही इंस्पेक्टर सुरेंद्र संड. जिनकी बहादुरी और जिनके दिल्ली पुलिस में इंस्पेक्टर बेटे रोहित संड का आज मैं यहां बेबाक जिक्र कर रहा हूं. दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के पूर्व इंस्पेक्टर और अब से 25 साल पहले लाल किला के अंदर हुए आतंकवादी हमले के मास्टरमाइंड पाकिस्तानी आतंकवादी मो. अशफाक को फांसी की सजा कराए बैठे इंस्पेक्टर संड बताते हैं, “दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल और क्राइम ब्रांच से लेकर पुलिस मुख्यालय तक यह बात फैल चुकी थी कि पाकिस्तानी आतंकवादी मो. अशफाक को कश्मीर घाटी में ले जाने पर उसे वहां दिल्ली पुलिस पार्टी के ऊपर हमला करके हर हाल में छुड़ा लिया जाएगा. तो यह जोखिम कोई भी लेने को तैयार नहीं हो रहा था. एक दिन मैंने सोचा कि अगर मैं इस आतंकवादी को फांसी की सजा दिलाने में कामयाब रहा तो दिल्ली पुलिस और देश का नाम ऊंचा होगा. अगर इस आतंकवादी को कश्मीर घाटी में मेरे कब्जे से छुड़ाने की कोशिश में मेरे ऊपर किए गए हमले में मैं शहीद हो गया. तो मेरा शव तिरंगे में लिपटकर आने से भी मैं सच्चा देशभक्त और दिल्ली पुलिस का दिलेर दारोगा साबित हो जाऊंगा. मतलब, यह सोचते ही मुझे अपने दोनों ही हाथों में लड्डू नजर आए. लिहाजा जब दोनों हाथों में मुझे लड्डू दिखाई देने लगे तो खौफ को संभालकर रखने के लिए तीसरा हाथ ही नहीं था. मतलब, मेरे दिल से कश्मीर घाटी में मुझे आतंकवादियों के हाथों मार डाले जाने का खौफ तो रहा ही नहीं.
हैरत से डीसीपी मेरा मुंह ताकते रह गए...
इसलिए एक दिन मैं खुद ही उस वक्त के डीसीपी अशोक चांद साहब के पास चला गया. मैंने जब उनसे लाल किला हमले के मास्टरमाइंड लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी मो. अशफाक को दिल्ली से कश्मीर लेकर जाने की इच्छा जताई. तो पहली बार में तो वे मेरा चेहरा ही एकटक देखते रह गए. शायद यह सोचकर कि- क्या वे अपने कानों से जो सुन रहे हैं वह सच है और जो आंखों से देख रहे हैं वह सिर्फ सपना तो नहीं है. मैंने उनकी मनोदशा देखते ही कहा सर आप कुछ न सोचें. बस इतना कर दीजिए कि जिस आतंकवादी अशफाक को कश्मीर घाटी में हमला बोलकर दिल्ली पुलिस से छुड़ा ले जाने के खौफ से वहां कोई जाना नहीं चाहता. मैं उसी अशफाक को लेकर कश्मीर घाटी में छापे मारने जाना चाहता हूं.”
केंद्रीय गृह मंत्री ने ‘चार्टर्ड-प्लेन’ दिया
स्टेट मिरर हिंदी के एक सवाल के जवाब में दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के रिटायर्ड इंस्पेक्टर और 25 साल पहले लाल किला के अंदर हुए आतंकवादी हमले के जांच अधिकारी रहते हुए मुख्य आरोपी पाकिस्तानी आतंकवादी मो. अशफाक के फांसी की सजा कराए बैठे सुरेंद्र संड बोले, “उस जमाने में उप प्रधानमंत्री तत्कालीन गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी जी तक जब यह संदेश पहुंचा कि दिल्ली पुलिस को ऐसा इंस्पेक्टर मिल गया है जो पाकिस्तानी आतंकवादी मो. अशफाक को कश्मीर घाटी ले जाने को राजी है. तब आडवाणी जी ने ही एक विशेष चार्टर्ड प्लेन का इंतजाम कराया. उसी से मैं लश्कर ए तैयबा के एरिया कमांडर और लाल किला हमले के मास्टरमाइंड मो. अशफाक को लेकर कश्मीर घाटी जा पहुंचा.”
आतंकवादी और मेरे ऊपर रात भर बमबारी
कश्मीर घाटी में जब मैं आतंकवादी मो. अशफाक को लेकर स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) के कैंप में पहुंचा. तो वहां रात के वक्त आतंकवादियों ने उस शिविर के ऊपर हथगोलों से हमला कर दिया. शुरू में मुझे लगा कि दो चार हथगोले फेंककर दहशतगर्द भाग जाएंगे. हुआ मगर मेरी सोच के एकदम उल्टा ही. मेरे कब्जे में दिल्ली से कश्मीर ले जाए गए पाकिस्तानी आतंकवादी मो. आरिफ उर्फ मो. अशफाक को छुड़ाने के लिए रात भर मेरे और मेरे साथ मौजूद आतंकवादी के ऊपर बमबारी होती रही. अगर उस जानलेवा काली रात में हमारे सुरक्षा बलों ने हमलावरों का मुकाबला न किया होता तो शायद मैं जिंदा वापिस दिल्ली न लौटा होता. मेरे कब्जे में मौजूद दिल्ली से कश्मीर ले जाए गए उस पाकिस्तानी आतंकवादी का क्या होता, जिसे बाद में मैंने देश की हर कोर्ट से सजा-ए-मौत (फांसी) मुकर्रर करवा ही ली अपनी पैनी-मजबूत तफ्तीश के बलबूते, यह मैं नहीं जानता.”
25 साल बाद इंस्पेक्टर बेटा जांच में जुटा
इसे विधि का विधान समझिए या फिर महज इत्तिफाक कि अब से 25 साल पहले इसी लाल के भीतर हुए आतंकवादी हमले की जांच करके इंस्पेक्टर पिता सुरेंद्र संड ने मास्टरमाइंड पाकिस्तानी आतंकवादी और लश्कर ए तैयबा के एरिया कमांडर मो. अशफाक उर्फ मो. आरिफ को फांसी की सजा करा ली. अब करीब 25 साल बाद उसी लाल किला की रेड लाइट के ऊपर 10 नवंबर 2025 को हुए कार बम विस्फोट की जांच टीम में इन्हीं रिटायर्डट इंस्पेक्टर सुरेंद्र संड का बेटा इंस्पेक्टर रोहित संड जुटे हैं. रोहित संड की गिनती दिल्ली पुलिस के गिने-चुने टॉप-टेन ‘पड़तालियों’ में की जाती है. आतंकवादियों द्वारा किसी घटना को अंजाम दिए जाने से पहले उनके बीच बने संचार माध्यमों में सेंध लगाकर, उन्हें तार-तार करने की कला में माहिर इंस्पेक्टर रोहित संड किसी भी आपराधिक घटना में इस्तेमाल मोबाइल नेटवर्किंग को ‘भेदने’ की कला में बेहद निपुण हैं. अपराध में शामिल संदिग्ध की सटीक ‘लोकेशन’ दिल्ली पुलिस को बेहद कम समय में पहुंचाना भी उत्तरी दिल्ली जिला पुलिस स्पेशल स्टाफ प्रभारी इंस्पेक्टर रोहित संड के ही बूते की बात है. जब और जहां जिला के थानों की पुलिस भी हारकर ‘पसर’ जाए, तो और तब वहीं यही इंस्पेक्टर रोहित संड अपने तेज-तार्किक दिमाग का इस्तेमाल करना शुरू करते हैं. शायद इसीलिए अब 10 नवंबर 2025 को भी लाल किला कार ब्लास्ट की तफ्तीश से भी इन्हीं तमाम वजहों से इंस्पेक्टर रोहित संड को जोड़ा गया होगा.
वो मेरे ऊपर ‘थूकता’ रहा, मैं उसे ‘फांसी’ करा लाया
स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम द्वारा 25 साल पहले हुए लाल किला आतंकवादी हमले के मुकदमे की रिपोर्टिंग के दौरान अक्सर दिल्ली की अदालतों में देखा जाता रहा था कि उस हमले में जिंदा पकड़ा गया और इन्हीं इंस्पेक्टर सुरेंद्र संड के कब्जे में रहा मुख्य षडयंत्रकारी पाकिस्तानी आतंकवादी लश्कर एरिया कमांडर मो. अशफाक उर्फ मो. आरिफ, अक्सर मामले के जांच अधिकारी इंस्पेक्टर सुरेंद्र संड के ऊपर जजों के सामने भरी कोर्ट में थूक दिया करता था. इसके बाद भी मगर कभी इंस्पेक्टर सुरेंद्र संड ने कभी उस पर आपत्ति नहीं जताई, क्यों क्या सुरेंद्र संड डरते थे उस आतंकवादी से? पूछने पर इंस्पेक्टर संड कहते हैं, “नहीं. अगर मैं डरा होता तब फिर इस आतंकवादी को कश्मीर घाटी अपने साथ ले जाने के लिए खुद ही क्यों दिल्ली पुलिस से गुजारिश करता. दरअसल, कोर्ट में पेशी के दौरान अक्सर मेरे ऊपर आतंकवादी द्वारा थूका जाना, या फिर उसके परिचितों द्वारा मेरे ऊपर पढ़ा हुआ जादू-टोना-टोटके वाला पानी लाकर छिड़क दिया जाना. यह ऐसे बदसलूकियां थीं जिनके चलते मेरी जगह कोई भी और पुलिस अफसर आपा खो बैठता.
इसलिए आंतकवादी से मैं अपनी ओर थुकवाता रहा
मैं जानता था कि यह सब मेरे साथ कोर्ट में जान-बूझकर आतंकवादी पक्ष द्वारा किया जा रहा है. ताकि में जवाब में “रियेक्ट” करूं और कोई नई समस्या मुकदमे की सुनवाई के दौरान कोर्ट में मेरे सामने खड़ी हो जाए. यह सब बेहूदा हरकतें मुझे तफ्तीश और मुकदमे की मजबूत सुनवाई से भटकाने की लिए हो रही थीं. मैं क्योंकि सब कुछ अंदर का सच जानता था. इसलिए खामोश रहा. मेरी जिम्मेदारी भारत के दुश्मन पाकिस्तानी आतंकवादी मो. अशफाक को फांसी के फंदे पर चढ़वाने की थी. न कि एक भारतीय और पुलिस अफसर होने के नाते मेरा यह काम था कि आतंकवादी मेरे मुंह की ओर थूक रहा है. तो मैं उसे उसका जवाब देने में व्यस्त होकर, पड़ताल और मुकदमे की दिशा ही बैठे-बिठाए बदलवा कर, पूरे मुकदमे का सत्यानाश करके एक खूंखार आतंकवादी को फांसी के तख्ते पर चढ़वाने से ही चूक जाऊं.