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EXCLUSIVE: ‘1 मिनट दूर थी मेरी मौत, तबाह वाहनों में फंसी लाशें, खून से सराबोर तड़पते-पानी मांगते लोग, मैं फिर भी खामोश रहा!’

दिल्ली के लाल किला-चांदनी चौक रेड लाइट पर 10 नवंबर 2025 को हुए भीषण कार बम धमाके में 31 वर्षीय मोहम्मद दाऊद बाल-बाल बचे. धमाके की आवाज, खून में लथपथ लाशें, तड़पते घायलों की पुकार और उड़ चुके वाहनों का मलबा देखकर उनका दिमाग सुन्न हो गया. दाऊद के मुताबिक उनकी मौत बस “एक मिनट दूर” थी. वे बताते हैं कि जिस अफरातफरी, चीख-पुकार और तबाही का उन्होंने सामना किया, उसे जीवनभर नहीं भूल पाएंगे.

EXCLUSIVE: ‘1 मिनट दूर थी मेरी मौत, तबाह वाहनों में फंसी लाशें, खून से सराबोर तड़पते-पानी मांगते लोग, मैं फिर भी खामोश रहा!’
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( Image Source:  ANI )
संजीव चौहान
By: संजीव चौहान

Updated on: 15 Nov 2025 6:02 PM IST

“मैं जामा मस्जिद के पास मौजूद ऐतिहासिक मीना बाजार जा रहा था. लाल किला और चांदनी चौक वाली लाल बत्ती पर बेतहाशा भीड़ थी. शाम का अंधेरा काफी चढ़ चुका था. ट्रैफिक धीरे-धीरे रेंग रहा था. अचानक कानों को फाड़ डालने वाला धमाका हुआ. उसके बाद जब मुझे होश आया तो खुद को अपनी मोटर साइकिल से कुछ फर्लांग की दूरी पर सड़क पर पड़ा पाया. मेरे एक पांव में कोई भयंकर चुभने वाली चीज आ घुसी थी. वह क्या चीज थी पुख्ताई से तो नहीं कह सकता हूं.

हां, इतना जरूर है कि वह उस धमाके के बीच से ही उड़कर मेरे पांव में आ घुसी थी. असहनीय दर्द हो रहा था. मैं दर्द से बिलबिला रहा था. मेरे सामने सड़क पर कई वाहन ऐसे इधर उधर छितराए हुए पड़े थे, जैसे कि मानो कबाड़ी की दुकान में पुरानी कारों या फिर बुरी तरह से एक्सीडेंट हुई कार का मलबा हो. होश आया तो मुझसे चंद फर्लांग की दूरी पर खून सनी कई लाशें, जिनमें से ज्यादातर के अंग-भंग हो चुके थे, मेरी आंखों के मेरे सामने पड़ी दिखाई दे रही थीं. और थोड़ा होश आया तो एक तरफ मेरे पांव में भयंकर दर्द और दूसरी ओर जख्मी लोगों की दिल दहला देने वाली चीख पुकारों ने, दिमाग सुन्न कर दिया. मैं कैसे जिंदा बचा मुझे नहीं मालूम. हां, मैं जिंदा हूं और आपसे अब बात कर रहा हूं मुझे इस बात पर भी इस वक्त विश्वास नहीं हो रहा है.”

जैसा मैंने देखा: लाल किला बम-ब्लास्ट

यह रूह कंपाता सच कहिए या फिर मुंहजुबानी कहानी है 31 साल के मोहम्मद दाऊद की. दाऊद, 10 नवंबर 2025 को शाम सात बजे के वक्त हिंदुस्तान की राजधानी दिल्ली के उत्तरी जिले में स्थित लाल किला और चांदनी चौक की रेड लाइट पर हुए कार बम विस्फोट में जख्मी और उसमें जिंदा बचने वाले ‘घटना के चश्मदीद’ भी हैं. मोहम्मद दाऊद के जेहन में उस लोमहर्षक कांड की दहशत इस कदर बैठी है कि स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन से बातचीत करने से पहले तो साफ मना कर देते हैं. यह कहकर कि, ‘वह मंजर याद करके मैं मौके से जिंदा निकल आने के बाद भी अब कहीं दहशत से न मर जाऊं. धमाके की आवाज अब तक कानों में दिमाग में भरी है. कारों-वाहनों में फंसी लाशें, जख्मी लोग, सड़क पर खून सनी पड़ी लाशें और लाल बत्ती पर खून से सराबोर होने के बाद भी दो बूंद पानी मांगते, कराहते-चीखते-बिलखते-बिलबिलाते लोगों के चेहरे मैं जीते-जी कभी नहीं भूल पाऊंगा.”

प्लीज कोई पानी तो पिला दो

31 साल के मोहम्मद दाऊद स्टेट मिरर हिंदी से एक्सक्लूसिव बात करते-करते बीच में अचानक चीखने वाले अंदाज में बिना रुके बड़बड़ाने से लगते हैं, “न न अब बहुत हो गया. मेरा जख्म अभी हरा है. दिमाग काम नहीं कर रहा है. कान बम धमाके की आवाज से अब तक बहरे हैं. बस बहुत हो गया. अब कुछ नहीं बोल पाऊंगा. प्लीज मुझे फ्री छोड़ दीजिए. कुछ याद नहीं आता है. सिवाए उस कांड में घायलों की चीख पुकार और उनकी दिल को चीर देने वाली उन आवाजों के कि, कोई पानी दे दो अरे अस्पताल तो पहुंचा दो प्लीज.” थोड़ी देर रुकने के बाद जब लाल किला कांड के चश्मदीद और उस कांड में जख्मी मोहम्मद दाऊद शांत होते हैं, तब दुबारा बात शुरू होती है.

लाशों-वाहनों के चीथड़े, जख्मी लोग और भागती भीड़

काफी कुरेदने पर बताते हैं, “मैं मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के गांव महमदाबाद का रहने वाला हूं. परिवार में बीमार मां सलमा के अलावा, पत्नी चांदनी, बेटी जिगरा, एक भाई सुफियान, बहन अमरीन है. मैं बीते 18 साल से दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के लोनी इलाके में 50 गज के मकान में जिंदगी बसर कर रहा हूं. 10 नवंबर 2025 को शाम के वक्त दफ्तर (फैक्टरी) के काम से दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके में स्थित मशहूर मीना बाजार मोटर साइकल से जा रहा था. जब लाल किला और चांदनी चौक की रेड लाइट के जाम में फंसा ग्रीन लाइट होने का इंतजार कर रहा था.

उसी वक्त बम विस्फोट हो गया. उसी दौरान कोई भंयकर भारी नुकीली चीज एक पांव में आकर घुस गई. जिसके दर्द ने मुझे मोटर साइकिल से अलग सड़क पर गिरा दिया. सामने नजर पड़ी तो वहां लाशें, खून से जख्मी लोग और बुरी तरह से फट चुके कई वाहन तबाह होकर इधर उधर छितराए पड़े थे. कुछ लोग घायलों की मदद में जुटे थे. जबकि कई लोग अपनी जान बचाने के लिए मौके से इधर उधर लाशों और घायलों के ऊपर से पार होते हुए अपनी जान बचाने को बदहवासी के आलम में बेतहाशा भाग रहे थे.”

मुझे अपने जिंदा बचने पर ताज्जुब है

जिस लाल किला के सामने हुए इतने भयंकर कार बम विस्फोट में तमाम घायल हो गए, 12 बदकिस्मत लोग अकाल मौत के मुंह में समा गए, आपकी जिंदगी उसमें कैसे बच पाई? पूछने पर हड़बड़ाई हुई हालत में और अब तक आएं-बाएं-दाएं ही बोल रहे जख्मी मोहम्मद दाऊद बोले, “पता नहीं कैसे बच गया. वैसे सच यह है कि उस मनहूस शाम मेरी मौत मुझे एक मिनट दूर थी. अगर रेड लाइट की भीड़ में ग्रीन बत्ती थोड़ी जल्दी हो गई होती और मेरे साथ वाले वाहनों का काफिला बत्ती पर पहुंच जाता, तो शायद आज आपसे बात करने के लिए मैं बचता ही नहीं. खुद से यह सवाल कर रहा हूं कि मैंने अपनी आंखों के सामने मौत का जो मंजर कहूं या नंगा नाच होते देखा, उसकी हद से परमात्मा ने ही एक मिनट की दूरी पर रेड लाइट का वक्त बढ़ाकर मुझे रोके रखकर बचाया होगा.”

(10 नवंबर 2025 को शाम 7 बजे दिल्ली में हुए कार बम ब्लास्ट में बुरी तरह से जख्मी चश्मदीद मोहम्मद दाऊद से स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन संजीव चौहान से हुई विशेष बातचीत पर आधारित)

ब्लास्टस्टेट मिरर स्पेशल
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