यमुना में कहां है जहर?... केजरीवाल को चुनाव आयोग का डेडलाइन, कहा-दो राज्यों के विवाद को न बनाएं चुनावी मुद्दा
Delhi Assembly Election 2025: दिल्ली चुनाव के बीच यमुना में जहर वाले बयान से केजरीवाल खुद ही घिरते नजर आ रहे हैं. चुनाव आयोग उन पर लगातार शिकंजा कस रहा है. एक बार फिर से आयोग ने ऐसे बयान से बचने का निर्देश देते हुए सबूत मांगे हैं.;
Delhi Assembly Election 2025: दिल्ली चुनाव के बीच यमुना में जहर (अमोनिया) का दावा करने वाले आप चीफ अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ती दिख रही है. मामले में चुनाव आयोग एक्शन मोड में दिख रहा है. EC ने 31 जनवरी की सुबह 11 बजे तक यमुना में बढ़ते अमोनिया की मात्रा का डेटा सबूत के तौर पर मांगे है और कहा कि दो राज्यों के मामले को चुनावी मुद्दा न बनाएं.
ANI ने एक्स पर पोस्ट शेयर कर बताया कि चुनाव आयोग चीफ अरविंद केजरीवाल को कहा है कि यमुना में अमोनिया की मात्रा बढ़ने के मुद्दे को यमुना को जहरीला बनाने जैसे आरोपों का मुद्दा न बनाएं और न हीं अपने बयानों में सामूहिक नरसंहार जैसे शब्द जोड़ें. चुनाव आयोग ने ये भी कहा कि दो राज्यों के बीच के इस मुद्दे को चुनावी मुद्दा न बनाएं.
आप पर क्यों नहीं की जाए कार्रवाई'
चुनाव आयोग ने अरविंद केजरीवाल से भी कहा कि आप पर सार्वजनिक तौर पर दुश्मनी, सार्वजनिक अव्यवस्था और अशांति को बढ़ावा देने वाले गंभीर आरोपों के लिए कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए?
नहीं दिया सबूत तो होगी कार्रवाई
चुनाव आयोग ने अरविंद केजरीवाल से कहा है कि वे यमुना में बढ़ते अमोनिया के साथ पॉइजन के मुद्दे को मिलाए बिना कल सुबह 11 बजे यानी कि 31 जनवरी 2025 तक यमुना में पॉइजन के प्रकार, मात्रा, प्रकृति, तरीके और इंजीनियरों की डिटेल्स, स्थान और दिल्ली जल बोर्ड के इंजीनियरों के पॉइजन का पता लगाने वाले प्रोसेस का जवाब सबूत के साथ पेश करें और ऐसा न करने पर आयोग मामले में उचित कार्रवाई करेगा.
स्वच्छ जल उपलब्ध कराना सभी राज्य सरकारों की जिमेमदारी
चुनाव आयोग ने कहा कि पर्याप्त और स्वच्छ जल की उपलब्धता एक प्रशासनिक मुद्दा है और सभी संबंधित सरकारों को आम जनता को उपलब्ध करवाने के लिए लगना चाहिए. चुनाव आयोग को इस पर किसी को भी विवाद करने का कोई कारण नहीं दिखता है और इसे सरकारों और एजेंसियों की क्षमता और विवेक पर छोड़ दिया जाएगा.
चुनाव आयोग ने आगे कहा कि लंबे समय से चले आ रहे जल-बंटवारे और प्रदूषण के मुद्दों को चुनाव से दूर रखना चाहिए और इस मुद्दे से चुनाव में परहेज करना चाहिए. जबकि जल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के समझौते और कानूनी निर्देश पहले से ही दिए जा चुके हैं.