Delhi Blast: घटनास्थल से मिले 9mm कारतूस, हथियार गायब; आखिर वहां कैसे पहुंची ये गोलियां?
लाल किला ब्लास्ट की जांच एक नए मोड़ पर पहुंच गई है. विस्फोट स्थल से 9mm के तीन कारतूस दो जिंदा और एक खाली खोखा बरामद होने से एजेंसियों की चिंता बढ़ गई है, जबकि मौके से कोई हथियार नहीं मिला. 43 सीसीटीवी फुटेज, डीएनए मैच और हाई-ग्रेड विस्फोटक की पुष्टि ने केस को और पेचीदा बना दिया है. कथित आतंकी उमर नबी की मूवमेंट और फरीदाबाद यूनिवर्सिटी का कनेक्शन अब जांच का सबसे अहम हिस्सा बन चुका है.;
दिल्ली के लाल किले के बाहर हुए कार विस्फोट ने देश की राजधानी को हिला दिया था, लेकिन जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे यह मामला और पेचीदा होता जा रहा है. पहले धमाके में 13 लोगों की मौत और भारी तबाही ने एजेंसियों की नींद उड़ा दी, अब घटनास्थल से मिले 9mm के कारतूसों ने इस केस को एक बिल्कुल नए मोड़ पर ला दिया है. 9mm गोला-बारूद आमतौर पर सैन्य बलों, पुलिस और कुछ विशेष सुरक्षा एजेंसियों द्वारा ही इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में यह कारतूस ब्लास्ट साइट पर कैसे पहुंचे, यह सबसे बड़ा रहस्य बन गया है.
दिल्ली पुलिस और केंद्रीय जांच एजेंसियां लगातार सीसीटीवी फुटेज, धमाके के अवशेष और डीएनए रिपोर्टों को जोड़कर इस पहेली को सुलझाने की कोशिश कर रही हैं. लेकिन 9mm कारतूस मिलने के बावजूद वहां कोई हथियार नहीं मिलने से शक और गहरा हो चुका है. क्या धमाके से पहले किसी तरह की फायरिंग हुई? या फिर कारतूस उस i20 कार से गिरे जिसमें जैश आतंकवादी उमर नबी मौजूद था? यही वो नई परतें हैं जिन्हें जांच एजेंसियां अब तेजी से खंगाल रही हैं.
घटना स्थल से मिला बड़ा सुराग
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, जांच टीम ने लाल किले के पास से तीन 9mm कारतूस बरामद किए, दो जिंदा और एक खाली खोखा. यह खोज अपने आप में चौंकाने वाली है क्योंकि 9mm गोला-बारूद आम नागरिकों के पास नहीं होता. सेना, पुलिस और कई सुरक्षा बल ही इसका उपयोग करते हैं. इससे बड़ा सवाल यह है कि घटनास्थल पर हथियार का एक भी हिस्सा नहीं मिला, यानी कारतूस तो मौजूद थे लेकिन उन्हें दागने वाला हथियार पूरी तरह गायब.
पुलिसकर्मियों के कारतूस मैच नहीं हुए
जांच के दौरान पुलिस ने वहां मौजूद हर कर्मी के हथियार और कारतूस का मिलान कराया. नतीजा साफ था- किसी भी पुलिसकर्मी का एक भी कारतूस मिसिंग नहीं था. इससे यह संभावना खत्म हो गई कि कोई पुलिसकर्मी गलती से कारतूस गिरा गया हो. अब सवाल बना हुआ है: ये कारतूस आए कहां से? क्या ब्लास्ट के बाद i20 कार से गिरे? या फिर किसी अन्य व्यक्ति ने इन्हें वहां छोड़ा?
43 CCTV में कैद आतंकी उमर की पूरी मूवमेंट
जांच को दिशा देने वाली सबसे अहम कड़ी 10 नवंबर की वो 43 सीसीटीवी फुटेज हैं, जिनमें हुंडई i20 को लाल किले तक पहुंचते हुए दिखाया गया है. यह कार कथित आतंकी उमर नबी चला रहा था. ये फुटेज फरीदाबाद यूनिवर्सिटी कैंपस से लेकर पुरानी दिल्ली के भीड़भाड़ वाले इलाकों तक कार की पूरी मूवमेंट को ट्रैक करती हैं. जांच एजेंसियों ने एनसीआर के 5000+ कैमरों को खंगालकर यह रूट तैयार किया है, जो अपने आप में एक बड़ी तकनीकी उपलब्धि है.
DNA डीएनए मैच ने उमर की पहचान की पुष्टि
विस्फोट स्थल से मिले मानव अवशेषों के डीएनए नमूनों को उमर की मां के नमूनों से मैच किया गया. मैच पॉजिटिव आया और यह पुख्ता हो गया कि धमाके को अंजाम देने वाला शख्स वही था. इसके बाद जांच पूरी तरह से उमर की गतिविधियों, संपर्कों और उस कार के स्रोत पर केंद्रित हो गई.
धमाके में मिला हाई-ग्रेड विस्फोटक
फोरेंसिक टीम ने घटनास्थल से 40 से ज्यादा सबूत इकट्ठा किए हैं, जिनमें कारतूस, जीवित कारतूस, कार के हिस्से और विस्फोटक अवशेष शामिल हैं. एक नमूना ऐसा मिला है जो अमोनियम नाइट्रेट से भी ज्यादा शक्तिशाली है. अधिकारियों के मुताबिक, कार में 30–40 किलो तक अमोनियम नाइट्रेट या उससे मजबूत मटेरियल भरा था—जिससे धमाका इतना विनाशकारी हुआ.
दिल दहला देने वाला फुटेज
ब्लास्ट के बाद सामने आए सीसीटीवी फुटेज दिल दहला देने वाले हैं. लोग अपनी जान जोखिम में डालकर घायलों को बाहर निकालते और रिक्शा व रेहड़ी में डालकर अस्पताल ले जाते नजर आए. कई गाड़ियों में आग लगी हुई थी, और अफरा-तफरी का माहौल पूरे इलाके में फैल गया था.
क्या शुरू से ही खामी रह गई?
जांच में बड़ा खुलासा यह हुआ कि i20 कार 29–30 अक्टूबर को फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी में खड़ी थी. उससे दो दिन पहले उमर का साथी मुजम्मिल गिरफ्तार हो चुका था. लेकिन सवाल यह उठा:
- क्या फरीदाबाद पुलिस ने समय रहते यूनिवर्सिटी का सीसीटीवी खंगाला?
- क्या उमर की कार या उसकी लोकेशन जल्दी ट्रैक की जा सकती थी?
- अगर ऐसा हुआ होता, तो क्या धमाका टल सकता था?
ये सवाल अब जांच एजेंसियों के लिए भी असहज स्थिति बना चुके हैं.
दिल्ली ब्लास्ट पूरी तरह प्लान्ड मिशन
30 अक्टूबर के बाद उमर 9 नवंबर को दोबारा कैमरों में दिखा, इस बार दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे पर. 10 नवंबर को सुबह 8 बजे कार दिल्ली में दाखिल होती है. फिर यह कई संवेदनशील और भीड़भाड़ वाले पॉइंट्स से गुजरती हुई लाल किले के पास जाकर रुकती है. यह साफ दिखता है कि उमर को अपना रास्ता, टारगेट और टाइमिंग—सब पहले से पता था. यह एक योजनाबद्ध मिशन था, जिसे रोकने का मौका शायद एजेंसियों के पास पहले ही आ चुका था… पर वह हाथ से निकल गया.