खुद को बताते थे दिहाड़ी मजदूर, 13 लाख के इनामी माओवादी जोड़े को पुलिस ने किया गिरफ्तार, ऐसे शुरू हुई थी दोनों की लव स्टोरी

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक ड्रामेटिक ब्रेकथ्रू हुआ है. राज्य जांच एजेंसी (SIA) ने एक माओवादी दंपती को गिरफ्तार किया, जिन पर कुल 13 लाख रुपये का इनाम रखा गया था. यह गिरफ्तारी न सिर्फ सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी कामयाबी है.;

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Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 27 Sept 2025 1:35 PM IST

रायपुर पुलिस के हाथों बड़ी सफलता लगी है. एक माओवादी जोड़ा जो खुद को दिहाड़ी मजदूर बताकर शहर में छिपा रहता था, उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. कपल 13 लाख रुपये के इनामी था.  जग्गू कुर्सम और उनकी पत्नी कमला कुर्सम ने शहर के विभिन्न हिस्सों में घर बदलते हुए सामान्य नागरिकों की तरह रहकर अपने भूमिगत नेटवर्क को संचालित किया.

यह गिरफ्तारी न सिर्फ सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी कामयाबी है, बल्कि यह भी उजागर करती है कि कैसे खतरनाक माओवादी ऑपरेटिव्स शहरों में अपना काम करते हैं. 

कौन हैं आरोपी?

गिरफ्तार किए गए माओवादी जोड़े की पहचान जग्गू कुर्सम उर्फ रवी उर्फ रमेश (28) और उनकी पत्नी कमला कुर्सम (27) के रूप में हुई है. पुलिस ने बताया कि ये दोनों लगातार घर बदलते रहते थे और रायपुर, भिलाई और दुर्ग में छिपकर रहते थे, जबकि लोग उन्हें दैनिक मजदूर के रूप में पहचानते थे. जग्गू पर 8 लाख रुपये और कमला पर 5 लाख रुपये का इनाम रखा गया था.

छापे में मिले सबूत

रायपुर के चंगोराभट्टा क्षेत्र से पकड़े गए इस जोड़े के ठिकाने से पुलिस ने कई अहम सबूत बरामद किए. इसमें 10 ग्राम सोने की बिस्किट, 1.14 लाख रुपये नगद, दो एंड्रॉइड स्मार्टफोन और अन्य संदिग्ध सामग्री शामिल थी. इनके कॉल रिकॉर्ड फॉरेंसिक जांच के दायरे में हैं, और पुलिस का मानना है कि यह जोड़ा वरिष्ठ माओवादी कमांडरों के लिए दवाइयां, सामग्री और लॉजिस्टिक की व्यवस्था कर रहा था.

पड़ोसियों ने बताया सच

पड़ोसियों ने जोड़े के बारे में बताया कि वे बेहद संकोची और अलग-थलग रहते थे. "वे किसी से बातचीत नहीं करते थे, न ही राशन लेने जाते, काम पर जल्दी निकलते और देर शाम लौटते थे. उनके घर कोई मेहमान नहीं आता था," एक निवासी ने कहा. उनकी यह रहस्यप्रियता शहर में उनके संभावित सहयोगियों और गतिविधियों पर और सवाल खड़े करती है.

माओवादी बैकग्राउंड

जग्गू कुर्सम का माओवादी सफर मात्र 11 साल की उम्र से शुरू हुआ. उन्होंने बीजापुर के जंगलों में करीब दो दशक तक सुरक्षा बलों से लड़ाई की, और बाद में Divisional Committee Member (DVC) बन गए. कमला 2014 में माओवादी रैंकों में शामिल हुईं और Area Committee Member (ACM) तक पहुंचीं. दोनों जंगलों में मिले, प्यार किया, शादी की और अब तक भूमिगत संगठन के लिए काम करते रहे.

शहर में माओवादी छिपने का पैटर्न

यह पहली बार नहीं है जब रायपुर में उच्च प्रोफ़ाइल माओवादी पकड़े गए हैं. 2005 में केंद्रीय पोलिटब्यूरो के सदस्य नारायण सान्याल और 2008 में शीर्ष महिला काडरों की गिरफ्तारी ने भी यह स्पष्ट किया था कि रायपुर माओवादी के लिए “सुरक्षित शहरी आश्रय” बन चुका है.

आगे की कार्रवाई

पुलिस सूत्रों ने बताया कि जोड़े पर टिप-ऑफ के बाद निगरानी रखी जा रही थी. दोनों अब रिमांड कस्टडी में हैं और अधिकारियों का मानना है कि अगले कुछ हफ्तों में और गिरफ्तारियां हो सकती हैं क्योंकि रायपुर में माओवादी का शहरी सपोर्ट नेटवर्क खंगाला जा रहा है. यह गिरफ्तारी साबित करती है कि माओवादी संगठन चाहे कितने भी वर्षों तक छिपे रहें, सुरक्षा एजेंसियां उन्हें पकड़ने में पीछे नहीं हटती और शहरी इलाकों में भी कानून की पकड़ मजबूत बनी हुई है.

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