बिहार चुनाव में पुरुषों पर भारी महिलाएं! करीब 10 प्रतिशत से ज्यादा दिया वोट, किसका करेगी बेड़ा पार?

बिहार के विधानसभा चुनाव में इस बार महिलाओं ने इतिहास रच दिया. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 71.6% महिला मतदाताओं ने मतदान किया — पुरुषों से कहीं ज्यादा. यह सिर्फ वोट नहीं, बल्कि सशक्तिकरण का संदेश था. तेजस्वी यादव की आर्थिक मदद और नीतीश कुमार की ‘लखपति दीदी’ जैसी योजनाओं ने महिलाओं को केंद्र में ला दिया. सुरक्षा, रोजगार और आत्मनिर्भरता उनके एजेंडे में रहे. बिहार की महिलाएं अब घर की दीवारों से निकलकर लोकतंत्र की दिशा तय कर रही हैं. यह सिर्फ चुनाव नहीं, बल्कि बिहार की ‘महिला जागृति’ का अध्याय है.;

Edited By :  नवनीत कुमार
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बिहार की राजनीति में इस बार महिलाओं ने वह कर दिखाया जो दशकों तक असंभव माना गया. पहले केवल दर्शक बनी रहने वाली महिलाएं अब इस चुनाव की सबसे बड़ी निर्णायक शक्ति बनकर उभरी हैं. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, इस बार 71.6% महिलाओं ने वोट डाला यानी पुरुषों से लगभग 9% अधिक. यह सिर्फ मतदान नहीं, बल्कि एक मौन क्रांति थी जिसने बिहार की सियासत को नई दिशा दी.

यह न सिर्फ मतदान प्रतिशत की कहानी है, बल्कि उस बदलाव की दास्तां भी है जहां महिलाएं विकास, सुरक्षा और आत्मनिर्भरता के सवालों पर अपने फैसले खुद लेने लगी हैं. अब बिहार की सियासत सिर्फ जाति और धर्म के इर्द-गिर्द नहीं घूम रही, बल्कि "महिला शक्ति" उसके केंद्र में आ चुकी है.

आर्थिक सशक्तिकरण बना महिलाओं का एजेंडा

इस चुनाव में महिलाओं के लिए दोनों तरफ से “आर्थिक सशक्तिकरण” का वादा बड़ा मुद्दा रहा. तेजस्वी यादव ने महिलाओं को ₹30,000 की वार्षिक सहायता और जीविका दीदियों के लिए स्थायी लाभ देने का एलान किया. वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने “लखपति दीदी” योजना के तहत 1 करोड़ महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और ₹2 लाख तक की आर्थिक मदद देने की घोषणा की. महिलाओं ने इसे अवसर के रूप में देखा, और रिकॉर्ड तोड़ मतदान इसका सबूत है.

सुरक्षा बनाम ‘जंगलराज’ की बहस

बीजेपी और जेडीयू ने महिलाओं के सामने सुरक्षा का मुद्दा मजबूती से रखा. नारा यही था, “तेजस्वी मतलब फिर से जंगलराज”. नीतीश कुमार के शासनकाल में लड़कियों के स्कूल जाने और महिलाओं के नौकरी करने के अवसर बढ़े, इसलिए बहुत-सी महिलाओं ने इसे अपनी सुरक्षा और सम्मान का सवाल माना. उन्हें डर था कि सत्ता बदली तो फिर वही पुराना असुरक्षा का दौर लौट आएगा.

नई पीढ़ी की महिलाएं

इस चुनाव की सबसे दिलचस्प तस्वीर युवा महिलाओं की रही. कॉलेज, स्टार्टअप और गांव की जीविका समूहों से जुड़ी युवतियां इस बार अपने मुद्दों को लेकर मतदान केंद्र तक पहुंचीं. यह पीढ़ी जात-पात से आगे सोच रही है, उन्हें चाहिए रोजगार, शिक्षा और सम्मानजनक जीवन.

महागठबंधन की रणनीति

महागठबंधन ने महिलाओं की ताकत को पहचाना जरूर, लेकिन शायद थोड़ा देर से. तेजस्वी यादव ने अंत तक यही दोहराया कि “अपराध पर जीरो टॉलरेंस” होगा. कांग्रेस ने भी अंतिम दिनों में प्रियंका गांधी को उतारकर महिला मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की. पर तब तक कई महिलाएं अपने निर्णय तय कर चुकी थीं.

घर की मर्यादा से बाहर आईं ‘निर्णायक’ महिलाएं

बिहार के गांवों में जहां पहले महिलाओं का वोट घर के पुरुष तय करते थे, अब वहीं महिलाएं अपने विचारों से परिवार के पुरुषों को प्रभावित करने लगी हैं. 2020 के मुकाबले इस बार 15% ज्यादा महिलाओं ने वोट डाला. यह साफ संकेत है कि वे अब लोकतंत्र की “साइलेंट पावर” नहीं, बल्कि “निर्णायक शक्ति” बन चुकी हैं.

सिर्फ रोटियां नहीं, नीतियां भी गढ़ रही हैं महिलाएं

महिलाओं के मतदान के पैटर्न ने राजनीतिक दलों की रणनीति बदल दी है. अब हर दल के घोषणापत्र में महिला सुरक्षा, आत्मनिर्भरता और रोजगार मुख्य बिंदु बन गए हैं. यह वही बिहार है जहां कभी महिलाएं घर की चौखट से बाहर नहीं निकलती थीं. अब वही महिलाएं राज्य की नीतियां तय करने में भूमिका निभा रही हैं.

बिहार की महिला क्रांति

बिहार की महिला मतदाता अब न केवल प्रदेश बल्कि देश के लिए उदाहरण बन गई हैं. उन्होंने यह साबित कर दिया कि लोकतंत्र में बदलाव की सबसे बड़ी ताकत वही हैं जो सबसे लंबे समय तक चुप रहीं और अब जब उन्होंने बोलना शुरू किया है, तो सियासत को सुनना ही पड़ेगा.

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