बिहार चुनाव में किसे खलेगी सुशील मोदी की कमी, मोदी-शाह से लेकर नीतीश तक के क्यों थे 'संकटमोचक'?
Bihar Chunav 2025: बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी में एक अद्भुत क्षमता थी. वह एक ही समय में राजनीति के दो विपरीत ध्रुवों को साध लेते थे. वह बिहार के जॉर्ज फर्नांडीस थे. समाजवादी नेता 'जॉर्ज' की खासियत थी कि वो एक साथ राष्ट्रवादी और और समाजवादी विचारधारा के लोगों के साथ सहज तरीके से तालमेल बना लेते थे.;
Bihar Vidhan Sabha Chunav 2025: बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी पारा तेजी से बढ़ने लगा है. अब सियासी दल चुनाव में अपनी-अपनी पार्टी की जीत को सुनिश्चित करने के लिए जोर आजमाइश में जुटे हैं. गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने में सबसे बड़ी समस्या सहयोगी दलों के बीच उस समय उठ खड़ी होती है जब टिकट का बंटवारा होता है. ऐसा इसलिए कि सभी पार्टियां ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चहती हैं. कई बार तो सीटों के बंटवारे पर सहमति न बन पाने पर गठबंधन टूटने तक की नौबत बन आती है. ऐसे संकटों से पार पाने में बीजेपी के नेता सुशील मोदी मंजे राजनेता था. अब वो इस दुनिया में नहीं हैं. ऐसे में अहम सवाल यह है कि अगर पिछले 2020 विधानसभा चुनाव की तरह टिकट बंटवारे को लेकर पेंच फंसा तो 'सुशील मोदी' भूमिका कौन निभाएगा? क्या बिहार बीजेपी के नेता उन्हें 'मिस' करेंगे.
खास बात यह है कि चुनाव को लेकर बिहार में राजनीति चरम पर है, इसलिए आप सुशील मोदी जैसे व्यक्तित्व की उपेक्षा नहीं कर सकते. ऐसा इसलिए कि वो अपने दल के नेताओं के साथ सहयोगी दलों के नेताओं को भी साधना जानते थे. आइए, हम आपको बताते हैं कि उनकी ऐसी कौन सी खासियत थी, जिसकी वजह से उन्हें सीएम नीतीश कुमार से लेकर पीएम मोदी और केंद्रीय मंत्री अमित शाह भी चाहते थे.
बिहार के 'जॉर्ज फर्नांडीस' थे सुशील मोदी- संजय पासवान
बिहार बीजेपी के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान का कहना है, "सुशील मोदी अब हमारे बीच नहीं हैं. उनका न होना सबसे ज्यादा बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व और सीएम नीतीश कुमार जी को खुलेगा. ऐसा इसलिए कि सुशील मोदी में एक अद्भुत क्षमता थी. वह एक ही समय में राजनीति के दो विपरीत ध्रुवों को साध लेते थे. वह बिहार के जॉर्ज फर्नांडीस थे. समाजवादी नेता जॉर्ज जी की खासियत थी कि वो एक साथ राष्ट्रवादी और और समाजवादी विचारधारा के लोगों के साथ सहज तरीके से तालमेल बना लेते थे."
उन्हीं की तरह सुशील कुमार मोदी में ये गुण था कि वो बीजेपी के अगल-अलग गुटों के साथ समान भाव से संबंध रखते थे. यही वजह है कि उनका सीएम नीतीश कुमार और पीएम मोदी व केंद्रीय गृह मंत्री से हमेशा अच्छा संबंध रहा और उनके विश्वास पात्र जीते जी बने रहे. उनसे पहले लाल कृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी जी से भी उनका करीबी का नाता था.
बिहार में जेडीयू और बीजेपी के बीच विवाद गहराने पर वह संकटमोचन के रूप में सामने आए. ऐसा इसलिए कि नीतीश कुमार भी उनपर भरोसा करते थे और बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व को भरोसा था कि बात बिगड़ने पर सुशील जेडीयू के नेताओं को संभाल लेंगे. बात को और बिगड़ने नहीं देंगे. कई मौके पर तो वह लालू यादव के धुर विरोधी होते हुए भी उनसे भी तालमेल बना लेते थे.
वह बिहार के एक ऐसे नेता थे बिहार के सामाजिक और राजनीतिक बुनावट में पूरी तरह से रच बस गए थे. बिहार में उनकी सभी समुदायों के बीच पकड़ थी, सभी उनकी बातों को सुनते थे. इसके अलावा, वो सादगी पसंद व्यक्तित्व के धनी थे.
उन्हीं के गुर से सुलझाएंगे बिहार की गुत्थी - नंद किशोर यादव
बिहार विधानसभा के अध्यक्ष और बीजेपी के कद्दावर नेता नंद किशोर यादव भी मानते हैं कि सुशील मोदी वास्तव में बिहार के 'सुशील' थे. उन्होंने कहा, "हम लोगों को उनकी कमी हमेशा खलेगी. उनके न रहने से जो बिहार और बीजेपी की राजनीति में स्थान खाली हुआ, उसे भरा नहीं जा सकता, लेकिन जिंदगी की सच्चाई यह है कि समय अपनी गति से चलता रहता है. वो नहीं ठिठकता."
उन्होंने आगे कहा, "जहां तक बात सुशील मोदी की सियासी समझ और नेताओं के बीच उनकी पकड़ और तालमेल की है तो हम लोगों ने उनके साथ काम किया है. मैं, उनका जूनियर रहा हूं. मुझे उनसे काफी सहयोग मिला. उनके साथ रहकर पार्टी के नेताओं ने बहुत कुछ सीखा है. हम लोग उनके बताए सियासी वसूलों पर बिहार की राजनीतिक गुत्थियों को सुलझाएंगे."
बिहार विधानसभा में स्पीकर नंद किशोर यादव के मुताबिक, "एनडीए गठबंधन में ऐसी कोई बात नहीं है. सब कुछ सही चल रहा है. हम लोग मिलकर चुनाव लड़ेंगे. जरूरत पड़ने पर सुशील मोदी के बताए तरीके पर अमल करेंगे. सुशील मोदी में संगठन को साधने की क्षमता था. सबके साथ चलने में विश्वास रखते थे. कोई कठिनाई होती थी तो तालमेल बैठकर रास्ता निकाल लेते थे. इस बार भी चुनाव वही होगा."
कौन थे सुशील मोदी?
सुशील मोदी जय प्रकाश नारायण द्वारा शुरू किए गए सामाजिक आंदोलन में रुचि बढ़ने की वजह से कॉलेज की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी. वह 2005 से 2013 और 2017 से 2020 तक बिहार के उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री रहे. भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत भारत के तीसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया.