महागठबंधन में झामुमो की एंट्री का खेल! JMM ने राजद पर कौन सा एहसान किया था, जिसके बदले मांग रही 12 सीटें?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले विपक्षी महागठबंधन में सीट बंटवारे की जंग तेज हो गई है. झारखंड में आरजेडी को मंत्री पद देने के बाद अब झामुमो बिहार में 12 सीटों की मांग कर रही है. कांग्रेस भी 70 सीटों पर अड़ी है, जबकि आरजेडी बैकफुट पर नहीं है. झामुमो की दावेदारी ने गठबंधन की गणित को उलझा दिया है.;
बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए आरजेडी नीत महागठबंधन में सीटों को लेकर मोलभाव तेज हो गया है. इस बार झारखंड की सत्तारूढ़ पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) भी गठबंधन में शामिल होने के लिए जोर दे रही है. झामुमो ने आरजेडी को 12 सीटों की मांग सौंप दी है, जिससे महागठबंधन में सीटों का संतुलन और चुनौतीपूर्ण हो गया है, खासकर कांग्रेस और अन्य दलों के लिए.
2020 में झामुमो ने बिहार में अकेले दम पर पांच सीटों पर चुनाव लड़ा था- पीरपैंती, कटोरिया, झाझा, चकई और मनिहारी. इन सभी सीटों पर उसे हार मिली, लेकिन चकई में उसे 8.96% वोट मिले थे, जो उसकी पकड़ का संकेत था. इस बार JMM उन पुराने अनुभवों को साथ लेकर एक संगठित महागठबंधन के तहत ही चुनाव लड़ना चाहती है, ताकि सत्ता विरोधी मतों का बंटवारा न हो.
झारखंड चुनाव की 'उधारी' की वसूली
झामुमो की मांग की एक अहम वजह झारखंड चुनाव 2019 का गठबंधन अनुभव है, जहां उसने राजद को 6 सीटें और एक मंत्री पद दिया था. अब JMM उसी राजनीतिक सौजन्य का हवाला दे रही है और चाहती है कि आरजेडी उन्हें बिहार में उसका लाभ दे. JMM के नेताओं ने साफ कहा है कि ‘अब एहसान लौटाने का समय है’ और आरजेडी से समुचित प्रतिनिधित्व की उम्मीद जताई है.
कांग्रेस का दबाव और आरजेडी की असमंजस
झामुमो की दावेदारी के बीच कांग्रेस पहले ही 70 सीटों पर दावा कर चुकी है. हालांकि आरजेडी कांग्रेस को सिर्फ 50-55 सीटें देना चाहती है. ऐसे में झामुमो को 12 सीटें देने का अर्थ है कि भाकपा (माले), माकपा और अन्य दलों की हिस्सेदारी में कटौती करनी पड़ेगी. इस वजह से तेजस्वी यादव के सामने अब गठबंधन को समेटने और सभी को संतुष्ट करने की बड़ी चुनौती है.
2020 की गलती नहीं दोहराना चाहते तेजस्वी
2020 के चुनाव में राजद ने 144 सीटों पर चुनाव लड़ा और 75 सीटें जीतीं. कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा और केवल 19 पर जीत दर्ज की. भाकपा (माले), माकपा और भाकपा को क्रमशः 12, 2 और 2 सीटें मिलीं. इस बार तेजस्वी यादव नहीं चाहते कि ‘सहयोगियों की सीटें बढ़ाकर’ नुकसान उठाना पड़े. इसलिए वे झामुमो को जगह देने से पहले सावधानी बरत रहे हैं.
झामुमो की संभावित सीटों की सूची
झामुमो ने जिन 12 सीटों की सूची आरजेडी को सौंपी है, उनमें तारापुर, बेलहर, कटोरिया, चकई, झाझा, धमदाहा और मनिहारी जैसे क्षेत्र शामिल हैं. ये अधिकतर सीमावर्ती और आदिवासी बहुल क्षेत्र हैं, जहां झामुमो का प्रभाव झारखंड से सटे पहचान के कारण अपेक्षाकृत अधिक माना जाता है. लेकिन इन क्षेत्रों में भाकपा (माले) और कांग्रेस की भी पारंपरिक दावेदारी है, जिससे टकराव तय है.
पप्पू यादव का समर्थन
पूर्णिया से सांसद पप्पू यादव भी खुलकर झामुमो की महागठबंधन में एंट्री का समर्थन कर रहे हैं. उनका तर्क है कि हेमंत सोरेन को 2-2.5% बिहार में व्यक्तिगत जनसमर्थन है और उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. पप्पू का यह बयान आरजेडी और कांग्रेस दोनों पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, ताकि JMM को सम्मानजनक सीट दी जा सके.
महागठबंधन की एकता पर मंडराता संकट
झामुमो की एंट्री महागठबंधन के लिए चुनावी ताकत हो सकती है, लेकिन सीट शेयरिंग को लेकर असहमति इसका सबसे बड़ा रोड़ा है. कांग्रेस, माले, वाम दल, और अब JMM सब अपनी हिस्सेदारी को लेकर सख्त हैं. ऐसे में यदि तेजस्वी यादव सीट बंटवारे में संतुलन नहीं बना सके, तो 2025 में एक बार फिर गठबंधन बिखर सकता है और एनडीए को बढ़त मिल सकती है.