बिहार में बगावत के दो चेहरे: चिराग की ललकार नीतीश पर भारी, सहनी की धमकी से तेजस्वी पर तलवार!
बिहार चुनाव से पहले एनडीए और महागठबंधन दोनों में सियासी तकरार तेज हो गई है. चिराग पासवान ने कानून व्यवस्था को लेकर नीतीश कुमार पर हमला बोला है, वहीं महागठबंधन में मुकेश सहनी डिप्टी सीएम पद की मांग को लेकर तेजस्वी यादव को खुलेआम चेतावनी दे रहे हैं. दोनों नेताओं के तेवर गठबंधनों को संकट में डाल रहे हैं.;
बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहा है, दोनों प्रमुख गठबंधनों एनडीए और महागठबंधन में अंदरूनी घमासान तेज़ होता जा रहा है. जहां एक ओर एनडीए में चिराग पासवान पुराने ज़ख्मों के साथ नीतीश कुमार पर तंज़ कसते दिख रहे हैं, वहीं दूसरी ओर महागठबंधन में मुकेश सहनी खुद को नज़रअंदाज़ किए जाने से नाराज़ हैं. दोनों नेता गठबंधन में रहकर ही बग़ावती तेवर अपना रहे हैं. एक साज़िश की बात करता है, दूसरा अल्टीमेटम देता है.
चिराग पासवान ने एक बार फिर से राज्य की क़ानून व्यवस्था को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला बोला है. उनका कहना है कि बिहार में अपराध बेकाबू हो चुका है और “बिहार लहूलुहान है.” उन्होंने यह भी दावा किया कि उन्हें साज़िश के तहत कमजोर किया गया और पार्टी तोड़ी गई. इन बयानों को देखकर यह स्पष्ट होता है कि वे अब एक बार फिर से नीतीश को घेरने की वही रणनीति दोहराने जा रहे हैं जो 2020 में उन्होंने अपनाई थी.
2020 की तर्ज़ पर फिर एक्टिव मोड में चिराग
2020 के चुनाव में चिराग ने एनडीए के भीतर रहते हुए जेडीयू को भारी नुकसान पहुंचाया था. उन्होंने अपने उम्मीदवार नीतीश के विरोध में खड़े किए लेकिन भाजपा पर नरमी बरती. इस रणनीति से उन्होंने भाजपा के कई असंतुष्ट नेताओं को भी टिकट दिया और नीतीश को घेर लिया. अब वही मॉडल दोहराया जा रहा है. वे खुद को प्रधानमंत्री मोदी का सच्चा समर्थक बताते हैं और नीतीश पर सीधे हमला करते हैं.
मुकेश सहनी की दबाव की राजनीति
दूसरी ओर महागठबंधन में मुकेश सहनी ने साफ़-साफ़ कह दिया है कि अगर उन्हें डिप्टी सीएम नहीं बनाया गया तो तेजस्वी यादव भी सीएम नहीं बन पाएंगे. वे महागठबंधन से 60 सीटों की मांग कर रहे हैं. यह मांग इसलिए मुश्किल है क्योंकि गठबंधन के प्रमुख दल आरजेडी, कांग्रेस, वामपंथी दल पहले ही सीट बंटवारे में अड़े हुए हैं. वीआईपी और पारस की पार्टी को एडजस्ट करने की जगह लगभग नहीं है.
पुरानी नाराज़गी अब भी ताज़ा
मुकेश सहनी की नाराज़गी कोई नई नहीं है. 2020 में भी उन्होंने पहले महागठबंधन में रहकर 25 सीटें और डिप्टी सीएम पद मांगा था, जो न मिलने पर प्रेस कॉन्फ्रेंस से नाराज़ होकर बाहर चले गए थे. फिर भाजपा ने उन्हें 11 सीटें देकर एनडीए में एडजस्ट किया और सहनी ने आरजेडी पर अति पिछड़ों से धोखा करने का आरोप लगाया था. अब वो फिर उसी मौके की तलाश में हैं, लेकिन परिस्थिति बहुत बदल चुकी है.
राजनीति के ‘हनुमान’ का निजी एजेंडा
चिराग पासवान खुद को मोदी का ‘हनुमान’ बताते हुए बार-बार यह दिखाना चाहते हैं कि वे बीजेपी के वफादार हैं, पर जेडीयू के विरोधी. इस दोधारी रणनीति में वे ना केवल नीतीश को घेरे रहते हैं, बल्कि भाजपा को यह भरोसा भी दिलाते हैं कि वे उसके वोट काटने वाले नहीं हैं. मगर भाजपा भी अब उतनी सहज नहीं दिख रही जितनी 2020 में थी. वह अब चिराग को साधने की बजाय अपने बलबूते पर सीटों की प्लानिंग कर रही है.
महागठबंधन के भीतर की चुनौती
महागठबंधन में वीआईपी जैसी छोटी पार्टी के लिए जगह बनाना इतना आसान नहीं. न सिर्फ सीटों का संकट है, बल्कि सहनी की लोकप्रियता और संगठनात्मक ताकत पर भी सवाल है. पिछली बार उनके विधायक भाजपा में चले गए थे, जिससे आरजेडी को उनकी स्थिरता पर संदेह है. ऐसे में मुकेश सहनी का दबाव तेजस्वी यादव पर असर डाल पाएगा या नहीं, यह फिलहाल असमंजस में है.
अंदरूनी उथल-पुथल का चुनावी असर
एनडीए और महागठबंधन दोनों में अंदरूनी तनाव अब सार्वजनिक हो चुके हैं. चिराग पासवान और मुकेश सहनी जैसे नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं इस बार के विधानसभा चुनाव में एक निर्णायक मोड़ ला सकती हैं. ये दोनों नेता वोट बैंक को प्रभावित करने की स्थिति में हैं और अगर इन्हें नज़रअंदाज़ किया गया तो ये अपने-अपने गठबंधनों को गहरे नुकसान पहुंचा सकते हैं ठीक वैसे ही जैसे 2020 में हुआ था.