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जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से कांग्रेस को हमदर्दी लेकिन TMC को क्यों नहीं? कहीं पुराने जख्म तो नहीं!

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से कांग्रेस ने जहां राजनीतिक सहानुभूति दिखाई, वहीं तृणमूल कांग्रेस पूरी तरह चुप्पी साधे रही. कभी उनके खिलाफ महाभियोग की विफल कोशिश और पुरानी तनातनी अब फिर उभर आई है. इंडिया ब्लॉक में मतभेद गहराते दिखे. क्या विपक्षी एकता एक और दरार की ओर बढ़ रही है?

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से कांग्रेस को हमदर्दी लेकिन TMC को क्यों नहीं? कहीं पुराने जख्म तो नहीं!
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नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Published on: 23 July 2025 8:40 AM

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे ने भारतीय राजनीति को एक और मोड़ दे दिया है. उपराष्ट्रपति पद से अचानक हटना न केवल संवैधानिक संकट का संकेत देता है, बल्कि विपक्ष के लिए यह सरकार पर हमला करने का एक नया हथियार भी बन गया है. कांग्रेस और अन्य दलों ने इसे 'स्वास्थ्य कारणों' के बजाय 'राजनीतिक दबाव' का परिणाम बताया है. पहले धनखड़ को भाजपा का ‘हिसाबी चेहरा’ बताने वाले विपक्षी अब उनके समर्थन में खड़े दिखाई दे रहे हैं.

कभी 'सरकार की कठपुतली' कहे जाने वाले धनखड़ आज कांग्रेस की सहानुभूति का केंद्र क्यों हैं? जवाब छिपा है सत्ता संतुलन के उस खेल में जहां संवैधानिक पदों का असर बढ़ गया है. कांग्रेस, सपा और राजद जैसी पार्टियां इस इस्तीफे को जबरन हटाने की संभावना मान रही हैं और अब धनखड़ के ‘संवैधानिक साहस’ को सराह रही हैं. लेकिन सवाल ये भी है कि क्या कांग्रेस अब सरकार से ज़्यादा उन संस्थानों के साथ खड़ी है जिनसे उसे पहले शिकायतें थीं?

TMC के पुराने घाव अब भी हरे?

जहां कांग्रेस धनखड़ के मुद्दे पर मुखर दिख रही है, वहीं तृणमूल कांग्रेस पूरी तरह खामोश है. इंडिया ब्लॉक की अहम बैठक से तृणमूल की गैरहाज़िरी और दिल्ली में होने के बावजूद उसकी निष्क्रियता यह बताती है कि बात सिर्फ वर्तमान की नहीं, अतीत के अधूरे मुद्दों की भी है. दरअसल, तृणमूल ने कभी धनखड़ को 'पश्चिम बंगाल के गवर्नर' रहते हुए खुलकर निशाने पर लिया था, और तब से लेकर उपराष्ट्रपति बनने तक रिश्ते कभी सहज नहीं रहे.

महाभियोग की असफलता पर भी गुस्सा

एक समय था जब तृणमूल कांग्रेस धनखड़ के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाना चाहती थी, लेकिन दो कांग्रेस सांसदों के कथित ‘फर्ज़ी हस्ताक्षरों’ की वजह से वह योजना ध्वस्त हो गई. तृणमूल का आरोप है कि यह साजिश जानबूझकर रची गई थी ताकि धनखड़ को बचाया जा सके. यही वह बिंदु था जहां से तृणमूल और कांग्रेस के रिश्तों में दरार और गहराई. तृणमूल आज भी कांग्रेस को उस असफलता का ज़िम्मेदार मानती है.

महाभियोग की दोहरी मंशा और सरकार की बेचैनी

सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस दो अलग-अलग महाभियोग प्रस्तावों के माध्यम से न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग कर रही थी. एक जस्टिस वर्मा के खिलाफ और दूसरा जस्टिस यादव के खिलाफ. धनखड़ की इसमें रुचि और उनकी ओर से मिले ‘संकेत’ सरकार के लिए चिंता का कारण बन गए थे. खासकर तब जब एनडीए की कोशिश थी कि राज्यसभा और लोकसभा दोनों सदनों से बहुमत से आगे बढ़ा जाए. यह पूरा घटनाक्रम सरकार और उपराष्ट्रपति के बीच बढ़ती खटास को दर्शाता है.

एकजुट विपक्ष, लेकिन तृणमूल का अलग रास्ता

हालांकि कांग्रेस, सपा, राजद और तृणमूल जैसे विपक्षी दल कई मुद्दों पर एकजुट रहे हैं, लेकिन धनखड़ प्रकरण ने फिर से ये साबित कर दिया कि विपक्ष के भीतर भी अंतर्विरोध ज़िंदा हैं. तृणमूल अभी तक कांग्रेस को ‘धोखेबाज़ सहयोगी’ मानती है, जिसने उसके सबसे बड़े दुश्मन को एक संवैधानिक कवच दे दिया. यही वजह है कि जहां कांग्रेस को धनखड़ के इस्तीफे में ‘संवैधानिक अपमान’ दिख रहा है, वहीं तृणमूल को उसमें एक अधूरी लड़ाई की कसक.

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