Resign किया या करवाया गया! तस्वीरों में देखिए इस्तीफे से पहले धनखड़ की विपक्ष से नजदीकियां, अब सत्ता पक्ष खामोश क्यों?
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से पहले विपक्षी नेताओं से उनकी मुलाकातों और मुस्कराती तस्वीरों ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है. सवाल उठ रहे हैं कि क्या उन्होंने खुद इस्तीफा दिया या यह सत्ता पक्ष की ओर से दबाव में लिया गया फैसला था? हैरानी की बात यह है कि इस्तीफे के बाद भाजपा और सरकार की ओर से पूरी तरह खामोशी है, जिसने अटकलों को और हवा दी है.

उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की हालिया गतिविधियों ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है. 15 जुलाई को राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की उनसे मुलाकात का वीडियो उप-राष्ट्रपति कार्यालय ने साझा किया. इससे कुछ दिन पहले धनखड़ ने आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल से भी उनके आवास पर भेंट की थी, जिन्होंने अभी तक संसद सदस्यता भी नहीं ली है. इन मुलाकातों को शिष्टाचार के दायरे में रखा गया, लेकिन सरकार के भीतर इसके निहितार्थों पर भी चर्चाएं तेज़ हो गई हैं.
2024 में विपक्षी दलों ने धनखड़ पर पक्षपाती रवैये का आरोप लगाकर उनके खिलाफ महाभियोग की धमकी दी थी, लेकिन अब वही नेता उनके अचानक दिए गए इस्तीफे पर चिंता जता रहे हैं और सरकार से आग्रह कर रहे हैं कि वह धनखड़ को मनाए. ऐसा क्या बदल गया, और सरकार व उप-राष्ट्रपति के बीच किस बात पर टकराव हुआ?
वहीं धनखड़ के इस्तीफे के बाद किसी बाद सत्ता पक्ष की ओर सभी हैरान कर देने वाला दावां कर रहे है लेकिन किसी की ओर से अधिकारिक बयान सामने नहीं है लेकिन इस्तीफे के १५ घंटे बाद पीएम मोदी का एक X के द्वारा ट्वीट आया है जिसमें उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना की गई है तो वही सत्ता पक्ष खामोश है लेकिन विपक्ष लगातार कुछ न कुछ कयास लगा रहा है.
मार्च के बाद बदली रणनीति, विपक्ष से बढ़ाई नजदीकियां
AIIMS में इलाज के बाद मार्च से धनखड़ ने विपक्ष के नेताओं से मुलाकातें बढ़ा दीं. कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे, जयराम रमेश और प्रमोद तिवारी जैसे वरिष्ठ नेताओं से उनकी मुलाकातें अक्सर होती रहीं. माना जा रहा है कि उन्होंने अपने पक्षपाती छवि को सुधारने के लिए यह प्रयास किए. यही वजह है कि अब जयराम रमेश और प्रमोद तिवारी जैसे नेता उनके इस्तीफे पर सवाल उठा रहे हैं और सरकार से इसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं.
इस्तीफा क्यों?
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. संसद का सत्र जारी था, 23 जुलाई को उनका जयपुर दौरा प्रस्तावित था, फिर अचानक रात में इस्तीफा क्यों? क्या बीमारी का हवाला महज दिखावा है? यदि वे वास्तव में बीमार थे, तो उन्होंने संसद की कार्यवाही कैसे संभाली? क्या भाजपा नेतृत्व उनके रवैये से असहज था? क्या वे विपक्षी नेताओं के प्रति नरम रुख अपना रहे थे? सबसे बड़ा सवाल यह है, क्या यह इस्तीफा स्वेच्छा से था या दबाव में लिया गया फैसला?
मोदी सरकार से टकराव की वजहें
धनखड़ का NJAC जैसे संवैधानिक मुद्दों पर खुलकर बोलना और न्यायपालिका के मामलों में रुचि लेना सरकार को रास नहीं आया. न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के मामले में उन्होंने राज्यसभा में फ्लोर लीडर्स से मुलाकात की, जिससे केंद्र सरकार असहज हो गई. सरकार को लगा कि उप-राष्ट्रपति अपनी संवैधानिक सीमाओं से बाहर जाकर बयान दे रहे हैं.
महाभियोग नोटिस बना आखिरी ट्रिगर
सोमवार को 65 से अधिक विपक्षी सांसदों द्वारा यशवंत वर्मा के खिलाफ दिया गया महाभियोग नोटिस जब धनखड़ ने स्वीकार कर लिया, तो एक वरिष्ठ मंत्री से उनकी फोन पर तीखी बहस हो गई. इसके बाद भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने शाम 4:30 बजे धनखड़ द्वारा बुलाई बैठक को टाल दिया. इसी घटनाक्रम को धनखड़ के इस्तीफे का अंतिम कारण माना जा रहा है.
अब आगे क्या?
राज्यसभा में नंबरों की नाज़ुक स्थिति को देखते हुए मोदी सरकार अब किसी भरोसेमंद और पार्टी के कट्टर समर्थक को उप-राष्ट्रपति बनाना चाहती है. इसमें रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है, साथ ही कुछ वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री या राज्यसभा के अनुभवी भाजपा सांसदों के नाम भी चर्चा में हैं. अगला उप-राष्ट्रपति पांच वर्ष का पूर्ण कार्यकाल प्राप्त करेगा.