बिहार में NDA की जीत के पीछे RSS की ‘साइलेंट आर्मी’: सीमांचल में दशकों की पैठ ने बदला चुनावी समीकरण
बिहार चुनाव में NDA की बड़ी जीत के पीछे RSS की साइलेंट लेकिन बेहद संगठित ग्राउंड मशीनरी की अहम भूमिका रही. राज्य के सभी 38 जिलों में संघ ने 100-100 स्वयंसेवक तैनात किए, जबकि ABVP के 5,000 कार्यकर्ता घर-घर पहुंचे. सीमांचल जैसे मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में RSS की 10–15 साल की सामाजिक पैठ ने हिंदू वोट को जाति से ऊपर उठकर एकजुट किया. बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के अभियान ने मुस्लिम घरों तक पहुंचकर वोट ध्रुवीकरण को और मजबूत किया.;
बिहार विधानसभा चुनावों में NDA की भारी जीत के पीछे रात-दिन मैदान में उतरे नेताओं की रैलियों और भाषणों ने जरूर अहम भूमिका निभाई, लेकिन इस जीत की असली “ग्राउंड फोर्स” रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और उससे जुड़े संगठन. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, साइलेंट मोड में काम करने वाली इस संगठनात्मक मशीनरी ने खासकर सीमांचल जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में NDA के लिए वोटों का महत्वपूर्ण ध्रुवीकरण किया. सत्तारूढ़ गठबंधन की जीत में संघ की योजनाबद्ध रणनीति और जमीनी स्तर पर सक्रिय नेटवर्क की अहम भूमिका रही.
संघ और बीजेपी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि इस चुनाव में RSS ने बिहार के हर जिले में संगठित तरीके से कार्यकर्ताओं को तैनात किया. राज्य के 38 जिलों में हर जिले में कम से कम 100 स्वयंसेवक सक्रिय रहे. इसके साथ ही RSS के छात्र संगठन ABVP के करीब 5,000 कार्यकर्ताओं को 5-5 लोगों की टोली में बांटकर चुनावी मैदान में झोंक दिया गया. इन टीमों ने घर-घर जाकर NDA के पक्ष में माहौल बनाने का काम किया.
2020 के मुकाबले इस बार NDA के सभी सहयोगियों - BJP, JDU, LJP (रामविलास), HAM (सेक्युलर) और RLM - का वोट शेयर बढ़ा. BJP का वोट प्रतिशत 42.56% से बढ़कर 48.44%, JDU का 32.83% से 46.2%, LJP(RV) का 10.26% से 43.18%, HAM का 32.28% से 48.39% और RLM का 4.41% से 41.09% हो गया. यह स्पष्ट संकेत है कि RSS का बूथ-स्तर का नेटवर्क NDA के लिए निर्णायक रूप से सक्रिय रहा.
RSS की रणनीति: वोट जाति नहीं, प्रदर्शन और राष्ट्रवाद पर
NDA शुरू से ही आश्वस्त था कि वह विधानसभा में 122 के जादुई आंकड़े को फिर से पार कर लेगा. लेकिन RSS का लक्ष्य केवल जीत तक सीमित नहीं था. संघ की कोशिश यह थी कि बिहार की परंपरागत जातिगत राजनीति को कमजोर कर विकास, सुशासन और राष्ट्रहित को वोटिंग का मुद्दा बनाया जाए. संगठन की सोच थी कि वोट जाति नहीं, बल्कि प्रदर्शन और “राष्ट्रहित” के आधार पर पड़ने चाहिए.
RSS के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि कई स्वयंसेवक तो पहले से बिहार में डटे हुए थे, जबकि देश भर की यूनिवर्सिटीज़ में पढ़ने वाले ABVP के कार्यकर्ता 10–15 दिन की छुट्टियां काटकर बिहार पहुंचे और घर-घर जाकर लोगों को NDA की नीतियों और विकास योजनाओं की जानकारी दी. उन्होंने कहा, “हम राजनीतिक प्रचार नहीं करते. हमारा काम लोगों को यह समझाना था कि जाति-आधारित वोटिंग संकीर्ण सोच है. यह समय शासन और विकास को आधार बनाकर मतदान करने का है.”
सीमांचल: जहां RSS का 10-15 साल का निवेश अब दिखा परिणाम
सीमांचल - अररिया, किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया - ऐसा क्षेत्र है जहां मुस्लिम आबादी 50% से भी अधिक है. लेकिन RSS ने पिछले 10-15 सालों में यहां सेवा कार्य, सामाजिक पहल और स्वयंसेवक नेटवर्क के जरिए उल्लेखनीय पकड़ बनाई है. RSS सूत्र कहते हैं कि यही वजह रही कि संगठन 28 से 32 सीटों पर हिंदू वोटरों को जाति से ऊपर उठाकर एकजुट करने में सफल रहा. इन सीटों पर पहले NDA कमजोर माना जाता था, मगर इस बार समीकरण पूरी तरह बदल गया. एक स्वयंसेवक के अनुसार, “अगर NDA उम्मीदवारों के पक्ष में वोट बढ़े हैं, तो इसका मतलब है कि लोगों ने जाति से ऊपर उठकर सुशासन, विकास और राष्ट्रहित को प्राथमिकता दी है.”
BJP अल्पसंख्यक मोर्चे की भूमिका: मुस्लिम घरों तक पहुंची सीधी बात
RSS के रणनीतिक अभियान को BJP के अल्पसंख्य मोर्चा ने भी मजबूत किया. BJP ने सीमांचल में मुस्लिम घरों तक लक्षित पहुंच (Targeted Outreach) शुरू की, जो जुलाई से ही चल रही थी. घर-घर जाकर उन्हें बताया गया कि मोदी सरकार की योजनाएं सभी के लिए हैं. उज्ज्वला, आवास, DBT और कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मुसलमानों को भी मिला.
NDA “टिकाऊ” शासन का भरोसा देता है
बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी के अनुसार, “मुस्लिम मतदाता विकास की राजनीति से जुड़ गए हैं. हमने उन्हें बताया कि योजनाएँ धर्म नहीं देखतीं. इसका असर वोटों पर साफ दिखा.” NDA ने 243 में से सिर्फ पांच मुस्लिम उम्मीदवार उतारे - BJP ने एक भी टिकट नहीं दिया, JDU ने चार, और LJP ने एक. इसके बावजूद नतीजे चौंकाने वाले रहे.
32 मुस्लिम बहुल सीटों में से 21 पर NDA की जीत
सीमांचल और आसपास की 32 ऐसी सीटें हैं जहां मुस्लिम आबादी अन्य समुदायों से अधिक है. इन सीटों पर इस बार NDA ने 21 सीटें जीत लीं.
इनके जातीय-सांप्रदायिक गणित को देखते हुए यह बहुत बड़ा बदलाव माना जा रहा है.
विजेता पार्टीवार गणित:
- BJP - 10 सीटें
- JDU - 8 सीटें
- LJP(RV) - 2 सीटें
- RLM - 1 सीट
2020 में NDA इन 32 सीटों में सिर्फ 18 सीटें जीत पाया था. मतलब इस बार मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में NDA ने 3 सीटों का अतिरिक्त फायदा हासिल किया.
इन सीटों में शामिल हैं: मधुबनी, बिस्फी, शिवहर, हरलाखी, बेनीपट्टी, खजौली, बाबूबरही, केओटी, नरपतगंज, जाले, अररिया, जोकिहाट, सिकटी, बहादुरगंज, ठाकुरगंज, किशनगंज, कोचाधामन, रानीगंज, फारबिसगंज, कटिहार, कदवा, बलरामपुर, प्रणपुर, मनिहारी, बरारी, कसबा, बनमंखी, रुपौली, धमदाहा, पूर्णिया, अमौर और बैसी.
इनमें से कई सीटों पर NDA ने विपक्ष से सीटें छीनी भीं, जैसे:
- शिवहर - JDU ने RJD से ली
- ठाकुरगंज - JDU ने RJD से छीनी
- कदवा - JDU ने कांग्रेस से जीती
- किशनगंज LS क्षेत्र: अल्पसंख्यक वोट-बेस में सेंध का सबसे बड़ा उदाहरण
बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के उपाध्यक्ष एस.एम. अकरम के मुताबिक, किशनगंज लोकसभा सीट के भीतर आने वाली 6 विधानसभा सीटों पर NDA की पकड़ मजबूत हुई है. इन क्षेत्रों में वर्षों से महागठबंधन का प्रभाव था, लेकिन इस बार NDA ने अपनी सीटें बढ़ाईं और अपना वोट शेयर स्थिर ही नहीं रखा बल्कि बढ़ाया भी. साथ ही कई सीटें विपक्ष से छीन लीं. यह परिणाम संघ और BJP के संयुक्त अभियान की सफलता का बड़ा उदाहरण माना जा रहा है.
संघ की 'साइलेंट मशीनरी' बनी NDA की जीत की रीढ़
यह चुनाव बिहार की राजनीति में एक बड़ा संकेत छोड़ गया है - वोटर जाति से ऊपर उठकर “परफॉर्मेंस मॉडल” की तरफ जा रहा है. NDA की जीत के पीछे - RSS का बूथ-स्तर पर महीनों चला साइलेंट अभियान, सीमांचल में वर्षों का सोशल इन्वेस्टमेंट, बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा का मुस्लिम समाज में सीधा संवाद और “सुशासन-विकास” का मजबूत नैरेटिव - सब मिलकर एक संगठित रणनीति के रूप में सामने आए. RSS और BJP दोनों का मानना है कि यह मॉडल आगे राष्ट्रीय चुनावों और अन्य राज्यों के लिए भी एक टेम्पलेट साबित हो सकता है - जहां जाति की जगह विकास और स्थिरता राजनीति की नई धुरी बन सकेगी.