तेजस्वी Vs तेजप्रताप: लालू यादव के घर की जंग, दो बेटों की लड़ाई ने बिहार की राजनीति को दो हिस्सों में बांट दिया

बिहार चुनाव से पहले लालू प्रसाद यादव के दोनों बेटों - तेजस्वी और तेजप्रताप - के बीच खुली सियासी जंग ने राज्य की राजनीति को दो हिस्सों में बांट दिया है. तेजस्वी जहां राजद और महागठबंधन के नेतृत्व में सत्ता की दौड़ में हैं, वहीं तेजप्रताप अपनी नई पार्टी जनशक्ति जनता दल (JJD) के जरिए ‘लालू की असली विरासत’ का दावा कर रहे हैं. द इंडियन एक्‍सप्रेस के अनुसार, यह संघर्ष अब सिर्फ परिवार का नहीं, बल्कि बिहार की राजनीतिक दिशा तय करने वाला बन गया है.;

Edited By :  प्रवीण सिंह
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16 अक्टूबर की दोपहर, बिहार के वैशाली जिले के महुआ अनुमंडल कार्यालय के बाहर एक असामान्य दृश्य था. हाथ में अपनी दादी मरछिया देवी की तस्वीर थामे, तेजप्रताप यादव नामांकन दाखिल करने पहुंचे - उसी सीट से, जहां से 2015 में उनकी राजनीतिक यात्रा शुरू हुई थी. लेकिन इस बार कुछ अलग था. न पिता लालू प्रसाद यादव साथ थे, न मां राबड़ी देवी, न भाई तेजस्वी, न बहन मीसा भारती. तेजप्रताप अकेले पहुंचे थे. उन्होंने पत्रकारों से कहा, “मेरी दादी सर्वोपरि हैं. उनके आशीर्वाद से न सिर्फ महुआ, बल्कि जनशक्ति जनता दल (JJD) की हर सीट पर जीत होगी. महुआ मेरा परिवार है.”

एक दिन पहले तेजस्वी यादव ने राघोपुर सीट से नामांकन भरा था - माता-पिता लालू और राबड़ी देवी के साथ, बहन मीसा भारती भी मौजूद थीं. कभी राजद परिवार के दो अहम चेहरे रहे दोनों भाइयों के बीच की दूरी अब इतनी गहरी हो चुकी है कि इस चुनाव में वे पहली बार आमने-सामने हैं - न सिर्फ राजनीतिक रूप से, बल्कि भावनात्मक और वैचारिक तौर पर भी.

तेजस्वी के लिए यह चुनाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सत्ता से बाहर करने और खुद बिहार की बागडोर संभालने का मौका है. वहीं तेजप्रताप के लिए यह लड़ाई है राजनीतिक अस्तित्व और पहचान बचाने की.

‘भाई’ से ‘प्रतिद्वंदी’ बनने तक की कहानी

मई 2025 में तेजप्रताप को एक सोशल मीडिया पोस्ट के बाद राजद और लालू परिवार से निष्कासित कर दिया गया. इस पोस्ट में उन्होंने एक महिला के साथ अपने “लंबे रिश्ते” का संकेत दिया था, जिसके बाद पार्टी ने सख्त कार्रवाई की. इसके बाद तेजप्रताप ने पांच छोटी पार्टियों का गठबंधन बनाकर ‘टीम तेजप्रताप’ के नाम से नया राजनीतिक मोर्चा बनाया और जल्द ही खुद को जनशक्ति जनता दल (JJD) का अध्यक्ष घोषित कर दिया. उनकी पार्टी ने 243 में से 43 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, खासकर यादव बहुल इलाकों में - यानी वहीं, जो परंपरागत रूप से राजद के गढ़ माने जाते हैं. मोहिउद्दीननगर, बख्तियारपुर और सोनपुर जैसी सीटों पर तेजप्रताप ने उन पूर्व आरजेडी नेताओं को टिकट दिया जिन्हें तेजस्वी की पार्टी ने इस बार मौका नहीं दिया था.

‘पार्टी बनाम परिवार’ की जंग

तेजस्वी यादव ने जब महुआ में आरजेडी प्रत्याशी और मौजूदा विधायक मुकेश रोशन के लिए प्रचार किया, तो उन्होंने बिना नाम लिए भाई पर तंज कसते हुए कहा - “पार्टी ही सब कुछ है. अगर पार्टी रहेगी तो सब रहेगा. हमें निष्ठा दिखानी है लालटेन के प्रति, न कि किसी व्यक्ति या परिवार के प्रति.”

तेजप्रताप ने भी जवाब देने में देर नहीं लगाई. सोशल मीडिया और जनसभाओं में उन्होंने कहा - “जनता सबसे ऊपर है, न पार्टी, न परिवार. लोकतंत्र में जनता ही सर्वोच्च है. महुआ मेरा कर्मभूमि है, यह किसी पार्टी की जागीर नहीं.” उन्होंने खुद को “अन्याय झेलने वाले बड़े भाई” की छवि में पेश किया, जो “संगठित पार्टी तंत्र के खिलाफ आम मतदाता के लिए लड़ रहा है.” इतना ही नहीं, तेजप्रताप ने राघोपुर जाकर अपने उम्मीदवार प्रेम कुमार यादव के लिए प्रचार भी किया - यानी भाई के गढ़ में सेंध लगाने की कोशिश.

‘असल लालू की पार्टी’ कौन?

तेजप्रताप ने एक सभा में कहा, “हरे झंडे वाली आरजेडी नकली है, असली लालू जी की पार्टी हमारी है - जनशक्ति जनता दल.” यह बयान उनके राजनीतिक प्रतीक और विरासत पर दावा करने की कोशिश थी. दूसरी ओर, तेजस्वी का प्रचार अभियान पूरी तरह संगठित और रणनीतिक है. महागठबंधन के नेता के रूप में वे हेलिकॉप्टर से बिहार भर में दौरे कर रहे हैं, रोज़ाना 10–15 रैलियां कर रहे हैं. उनका संदेश केंद्रित है - बेरोजगारी, शासन व्यवस्था और नीतीश सरकार की विफलताएं. उनके साथ कांग्रेस, सीपीआई(एमएल), वीआईपी जैसी सहयोगी पार्टियां हैं, जिनका बूथ-स्तरीय नेटवर्क चुनाव प्रचार की रीढ़ है.

एक ओर मशीनरी, दूसरी ओर जज्बा

इसके विपरीत, तेजप्रताप की सभाएं छोटी, भावनात्मक और व्यक्तिगत जुड़ाव वाली हैं. वे दिन में 2–3 रैलियां करते हैं, जिनमें जनसेवा, नैतिक राजनीति और “साफ-सुथरी राजनीति” जैसे विषयों पर बात करते हैं. उनकी रैलियों में भावनात्मक अपील ज्यादा है - ‘धोखा खाए बड़े भाई’ की कहानी और ‘जनता ही असली लालू है’ का संदेश. लेकिन संसाधनों और संगठनात्मक ताकत में वे तेजस्वी से कोसों पीछे हैं. तेजस्वी के पास पार्टी की मशीनरी है, जबकि तेजप्रताप का अभियान उनके व्यक्तिगत नेटवर्क और कुछ स्वयंसेवकों पर टिका है, जो “राजनीतिक स्टार्टअप” की तरह काम कर रहा है.

लालू परिवार की दरार, विपक्ष की मुश्किलें

तेजप्रताप की बगावत ने बिहार की राजनीति में राजद वोट बैंक के भीतर विभाजन की आशंका बढ़ा दी है. यादव बहुल सीटों पर अगर यादव वोट का छोटा हिस्सा भी तेजप्रताप के खाते में चला गया, तो नुकसान राजद और महागठबंधन दोनों को होगा, और इसका सीधा फायदा NDA को मिल सकता है. कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह पारिवारिक झगड़ा न सिर्फ लालू परिवार की छवि को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि विपक्षी एकजुटता को भी कमजोर कर रहा है.

हालांकि, राबड़ी देवी ने हाल में एक नरम बयान दिया कि “तेजप्रताप ने पार्टी छोड़ी है, लेकिन हमारे दिल नहीं छोड़े.” यह संकेत है कि परिवार के भीतर भावनात्मक दरार अब भी भरने की गुंजाइश रखती है, भले राजनीतिक तौर पर दोनों भाई अलग राह पर चल पड़े हों.

बिहार की राजनीति में नया मोड़

बिहार के इस चुनाव में तेजस्वी बनाम तेजप्रताप का मुकाबला सिर्फ दो भाइयों का संघर्ष नहीं है - यह लालू युग की राजनीति बनाम नई पीढ़ी की राजनीति का प्रतीक भी है. तेजस्वी सत्ता, संगठन और रणनीति के साथ आधुनिक राजनीति की दिशा में बढ़ रहे हैं, जबकि तेजप्रताप “जनता के दिल” और भावनात्मक अपील पर भरोसा कर रहे हैं.

महुआ और राघोपुर जैसी सीटें अब प्रतीक बन गई हैं - एक तरफ है संगठित “लालटेन”, दूसरी ओर बिखरी हुई “लालू की विरासत”. परिवार का यह संघर्ष आने वाले वर्षों में तय करेगा कि लालू यादव की राजनीतिक विरासत किसके हाथ जाएगी - नीतियों वाले बेटे तेजस्वी के या नाराज़ और भावनात्मक तेजप्रताप के.

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