नीतीश के सबसे भरोसेमंद ‘आरसीपी’ अब प्रशांत किशोर के साथ, क्या कुर्मी वोट बैंक टूटेगा?
कभी नीतीश कुमार के सबसे करीबी रहे आरसीपी सिंह अब प्रशांत किशोर के जन सुराज से जुड़ गए हैं. अपनी पार्टी 'आसा' से असफल रहने के बाद उन्होंने नया राजनीतिक ठिकाना तलाशा है. जन सुराज में उनका आना कुर्मी वोट बैंक की नई लड़ाई की शुरुआत मानी जा रही है, जिससे 2025 का बिहार चुनाव दिलचस्प हो सकता है.;
कभी नीतीश कुमार के सबसे भरोसेमंद नेता रहे आरसीपी सिंह ने अब प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी का दामन थाम लिया है. साथ ही अपनी पार्टी का जन सुराज में विलय कर लिया है. यह कदम बिहार विधानसभा चुनाव से पहले उठाया गया है, इसलिए इसे बड़ा सियासी झटका माना जा रहा है. आरसीपी, कुर्मी समाज के कद्दावर चेहरे हैं और जन सुराज को ग्रामीण इलाकों में पैर जमाने के लिए ऐसे ही चेहरे की तलाश थी.
31 अक्टूबर 2024 को आरसीपी सिंह ने ‘आप सब की आवाज’ यानी ‘आसा’ नाम की नई पार्टी लॉन्च की थी. दीपावली वाले दिन पार्टी का नाम रख कर उन्होंने उम्मीद जगाई, पर संगठन खड़ा नहीं हुआ. न वित्त मिला, न ज़मीनी कैडर. नतीजा यह हुआ कि कुछ ही महीनों में पार्टी हाशिए पर चली गई और आरसीपी फिर विकल्प खोजने लगे.
नीतीश से नज़दीकी से लेकर दूरी तक का सफर
2010 में आईएएस से वीआरएस लेकर राजनीति में आए आरसीपी सिंह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री तक बने. पर 2021 में बिना नीतीश की मर्जी केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने की कहानी ने दरार बढ़ा दी. 2022 में जदयू ने उन्हें राज्यसभा से दोबारा नहीं भेजा और यहीं से दोनों के रिश्ते ठंडे पड़ गए.
बीजेपी भी बन गई दूर की साथी
नीतीश से रिश्ते बिगड़े तो आरसीपी ने 2023 में बीजेपी का दामन थाम लिया, उम्मीद थी लोकसभा टिकट मिलेगा. लेकिन वही साल राजनीतिक पलटफेर का निकला. नीतीश फिर एनडीए में लौट आए और बीजेपी ने आरसीपी पर दांव नहीं लगाया. उनके पास अपनी ‘आसा’ के अलावा कोई ठोस मंच नहीं बचा.
कुर्मी वोट की चाबी और प्रशांत किशोर की गोटी
प्रशांत किशोर लंबे समय से कुर्मी वोट बैंक में सेंध लगाने का रास्ता खोज रहे थे. आरसीपी सिंह उनके लिए तैयार‐मौका हैं, पहचान भी है और प्रशासनिक अनुभव भी. दूसरी ओर, नीतीश कुमार उसी वोट बैंक के सबसे बड़े दावेदार रहे हैं. अब इसी समाज को लेकर असली मुकाबला दिलचस्प हो जाएगा.
बिहार चुनाव पर पड़ सकता है फर्क
अगर आरसीपी वास्तव में जन सुराज को सक्रिय तौर पर मजबूत करते हैं तो नीतीश कुमार की परंपरागत पकड़ ढीली पड़ सकती है. हालांकि यह भी सच है कि नई पार्टी को संगठन, संसाधन और विश्वसनीय चेहरा तीनों चाहिए होते हैं. आरसीपी के जुड़ने से पहला और आखिरी हिस्सा भरा गया, पर जन सुराज को अब तेज़ी से मैदान में काम दिखाना होगा, तभी इस गठजोड़ का असर 2025 के चुनाव में दिखेगा.