Bihar Polls 2025: नीतीश के आखिरी रण में तेजस्वी टेस्ट! 20 साल में सबसे छोटा चुनाव, प्रशांत किशोर पर रहेंगी सबकी निगाहें
बिहार में अगले महीने होने वाला विधानसभा चुनाव न सिर्फ 20 साल का सबसे छोटा चुनावी दौर है, बल्कि एक युग के अंत की शुरुआत भी माना जा रहा है.मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आख़िरी रण में तेजस्वी यादव, नरेंद्र मोदी और प्रशांत किशोर तीनों अपने-अपने दांव चला रहे हैं.एनडीए की सौगातें, महागठबंधन के आरोप और जन सुराज की नई राजनीति सब मिलकर बिहार की सियासत को ऐतिहासिक मोड़ पर ला खड़ा कर रहे हैं.सवाल एक है सत्ता किसके पास जाएगी?;
बिहार अगले महीने अपने दो चरणों वाले विधानसभा चुनाव में मतदान करेगा. यह चुनाव पिछले 20 वर्षों में राज्य का सबसे छोटा चुनावी दौर साबित होगा. लेकिन इस बार का चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि एक युग के अंत का संकेत भी है. क्योंकि यह चुनाव संभवत- मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का आख़िरी चुनाव माना जा रहा है. वह नेता जिन्होंने लगभग 19 साल तक बिहार की बागडोर संभाली और राज्य को एक नई पहचान दी.
वहीं, राजद (RJD) में अब कमान लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव के हाथ में है. 2020 के चौंकाने वाले प्रदर्शन के बाद अब तेजस्वी की नज़र सीधे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है. उधर, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी (JSP) इस चुनाव का सबसे बड़ा 'डार्क हॉर्स' मानी जा रही है, जिसने पारंपरिक राजनीति के बीच नई उम्मीदें जगाई हैं.
नीतीश कुमार की तबीयत और नेतृत्व पर सवाल
74 वर्षीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सेहत अब चुनावी बहस का केंद्र बन चुकी है. विपक्षी महागठबंधन का आरोप है कि अब नीतीश सरकार की बागडोर उनके हाथ में नहीं रही, बल्कि '7-8 अफसरों और नेताओं' का एक गुट राज्य चला रहा है. तेजस्वी यादव, जो नेता प्रतिपक्ष हैं, लगातार ऐसे वीडियो साझा कर रहे हैं जिनमें नीतीश कार्यक्रमों में थके या असहज दिखते हैं. विकासशील इंसान पार्टी (VIP) प्रमुख मुकेश सहनी ने कहा कि 'नीतीश कुमार को अब आराम करना चाहिए, उन्होंने अपनी पारी खेल ली है.' हालांकि, जदयू (JD(U)) और भाजपा (BJP) दोनों इस दावे को नकारते हैं.
जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि 'मुख्यमंत्री सभी फैसले खुद ले रहे हैं, उनकी तबीयत विपक्ष की कल्पना का हिस्सा है. भाजपा की रणनीति फिलहाल नीतीश की साख को केंद्र में रखकर चुनाव लड़ने की है, क्योंकि बिहार में अब भी “नीतीश फैक्टर” का असर बरकरार है.
वोटरों को रिझाने के लिए सियासी तोहफों की बरसात
सरकार विरोधी लहर को रोकने के लिए एनडीए सरकार ने मतदाताओं के लिए सोप्स की बौछार कर दी है. अब तक 1.21 करोड़ महिलाओं को मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत ₹10,000 दिए जा चुके हैं.
- इसके अलावा-
- 1.89 करोड़ परिवारों को 125 मेगावाट मुफ्त बिजली
- सामाजिक सुरक्षा पेंशन ₹400 से बढ़ाकर ₹1,100 प्रति माह-
- जीविका, आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं का मानदेय बढ़ाया गया-
- और 18-25 वर्ष के बेरोजगार युवाओं को ₹1,000 मासिक भत्ता दो साल तक देने का ऐलान किया गया है.
- इन योजनाओं को लेकर विपक्ष का कहना है कि यह 'चुनावी रिश्वत' है, लेकिन सरकार का दावा है कि ये पहले से चल रही योजनाओं का विस्तार हैं.
‘वोट चोरी’ बनाम ‘घुसपैठिया’ का आरोप
चुनाव आयोग द्वारा वोटर लिस्ट की स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन ड्राइव शुरू होने के बाद विपक्ष ने केंद्र सरकार पर “वोट चोरी” का आरोप लगाया. राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की वोटर अधिकार यात्रा (17 अगस्त–1 सितंबर) में भारी भीड़ उमड़ी, जिसने इस मुद्दे को सियासी रंग दे दिया. दूसरी ओर, एनडीए ने पलटवार करते हुए महागठबंधन पर “घुसपैठियों को बढ़ावा” देने का आरोप लगाया. हालांकि, चुनाव आयोग के आंकड़े दोनों ही दावों को ठंडा करते हैं ज्यादातर डिलीशन मृत्यु, डुप्लिकेशन या स्थान परिवर्तन के कारण हुए हैं, न कि किसी समुदाय विशेष के खिलाफ.
मोदी के चेहरे पर टिकी एनडीए की उम्मीदें
भले ही आधिकारिक रूप से नितीश कुमार एनडीए के चेहरा हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर गठबंधन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर ही टिका है. दूसरी तरफ, राहुल गांधी कांग्रेस अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं, जिससे यह मुकाबला फिर एक बार मोदी बनाम गांधी का रूप ले चुका है.
भाजपा के राज्य नेता जैसे सम्राट चौधरी और दिलीप जायसवाल, या जदयू के संजय कुमार झा और राजीव रंजन सिंह, राज्यव्यापी अपील रखने में नितीश या मोदी के सामने फीके नज़र आते हैं. पहली बार चुनावी मैदान में उतर रहे प्रशांत किशोर (PK) और उनकी पार्टी जन सुराज (JSP) ने बिहार की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है. हाल के दिनों में पीके ने शीर्ष भाजपा नेताओं पर कई आरोप लगाए, जिससे एनडीए को बचाव की मुद्रा में आना पड़ा.
उनका संदेश साफ है कि बिहार को प्रवासन, बेरोज़गारी और शिक्षा जैसी बुनियादी समस्याओं से निकालने के लिए नई राजनीति की ज़रूरत है. राज्य में सोशलिस्ट थकान (Socialist Fatigue) की बात करते हुए उन्होंने कहा कि 1990 से अब तक जो नेता समाजवाद की विचारधारा से आए, वही सत्ता में बने रहे और अब बदलाव जरूरी है. विश्लेषकों के अनुसार, एनडीए की योजनाओं की झड़ी भी कहीं न कहीं पीके के दावों को संतुलित करने की कोशिश है.