'लेडी पावर' ने बढ़ाई नेताओं की टेंशन! बिहार में बदल चुका है चुनावी खेल, महिला वोटर ही बनाएंगी मुख्यमंत्री?

बिहार की राजनीति में महिलाओं ने चुपचाप बड़ा बदलाव कर दिया है. अब वे सिर्फ वोटर नहीं, बल्कि चुनावी नतीजों की असली दिशा तय करने वाली ताक़त बन गई हैं. 2010 से लेकर 2020 तक महिला मतदान पुरुषों से ज़्यादा रहा है. 2025 का चुनाव उनके मुद्दों पर लड़ा जाएगा और जीता भी.;

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Edited By :  नवनीत कुमार
Updated On : 8 Aug 2025 11:35 AM IST

बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, राजनीतिक दलों की नज़र एक बार फिर महिला वोटर्स पर टिक गई है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा हाल ही में सरकारी नौकरियों में 35% महिला आरक्षण की घोषणा इसी दिशा में एक बड़ा दांव मानी जा रही है. यह कदम बताता है कि अब महिलाएं केवल 'सॉफ्ट टारगेट' नहीं, बल्कि 'किंगमेकर' बन चुकी हैं.

नीतीश ने साइकिल योजना, पोशाक योजना, छात्रवृत्ति और शराबबंदी जैसे फैसलों से महिलाओं के बीच मजबूत पकड़ बनाई. खासकर ग्रामीण महिलाओं में उनके लिए एक सकारात्मक छवि बनी. इसका नतीजा यह रहा कि 2020 के विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने भारी संख्या में मतदान कर सत्ता के संतुलन को प्रभावित किया.

स्थायी फैक्टर हैं महिला वोटर्स

2020 में 243 में से 167 सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों से ज़्यादा वोट डाले. ये संयोग नहीं था, बल्कि एक स्थायी ट्रेंड की पुष्टि थी. पूर्णिया के बैसी में महिलाओं ने पुरुषों से 22% अधिक वोटिंग की. कुशेश्वरस्थान में यह अंतर 21% रहा. इन दोनों सीटों पर एनडीए को जीत मिली, जिससे महिला वोटर्स के महत्व की पुष्टि हुई.

महिला वोटर्स ने तोड़े पुराने आंकड़े, पुरुषों को पीछे छोड़ा

2010 से पहले तक पुरुष वोटर ही चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते थे. लेकिन अब तस्वीर उलट चुकी है. 2020 में पुरुषों का वोट प्रतिशत 54% था, वहीं महिलाओं का 60%. इतना ही नहीं, 2015 में तो महिलाओं ने 60% वोट डाले, जबकि पुरुष सिर्फ 50% पर रुके. यह बदलाव सिर्फ आंकड़ों का नहीं, राजनीति के भविष्य का संकेत है.

उत्तर बिहार बना महिला वोटिंग क्रांति का गढ़

मधुबनी, सुपौल, सीतामढ़ी और दरभंगा जैसे ज़िलों में महिलाओं ने जबरदस्त तरीके से भागीदारी निभाई. मधुबनी की 10 में से 8, सुपौल की सभी 5 और दरभंगा की 10 में से 9 सीटें एनडीए की झोली में गईं. इन जिलों में महिला वोटर्स की बड़ी भूमिका रही, जो अब किसी भी दल की जीत-हार तय कर सकती हैं.

1962 से लेकर 2015 तक आया क्रांतिकारी बदलाव

1962 में सिर्फ 32% महिलाओं ने वोट डाला था. 2000 तक भी लैंगिक अंतर बना रहा. लेकिन 2010 में यह बदल गया. पहली बार महिलाओं ने 54% मतदान किया, पुरुषों के 51% से अधिक. 2015 में यह अंतर और गहरा गया – 60% महिलाएं वोटिंग के लिए निकलीं, जबकि पुरुष सिर्फ 50% पर ही रुके.

महिला वोटर के बिना नहीं जीता जाता चुनाव

आज की तारीख में महिलाओं का वोट सिर्फ नंबर नहीं, बल्कि 'नेरेटिव' तय करता है. कोई भी दल अगर उन्हें नजरअंदाज करता है, तो उसका हारना लगभग तय है. इसीलिए सभी पार्टियां अब महिला एजेंडा लेकर सामने आ रही हैं – चाहे वो आरक्षण हो, योजनाएं हों या महिला सशक्तिकरण की बात.

महिलाओं के मुद्दों पर लड़ा जाएगा अगला चुनाव

बिहार की राजनीति में अब बदलाव साफ नजर आ रहा है. 2025 का चुनाव सिर्फ जाति या धर्म आधारित नहीं होगा, बल्कि शिक्षा, सुरक्षा, रोजगार और महिला हितों जैसे मुद्दों पर केंद्रित रहेगा. और इसमें सबसे अहम भूमिका निभाएंगी – जागरूक, मुखर और संगठित महिला वोटर्स.

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