स्ट्रॉन्ग रूम में कैसे रहती है EVM सुरक्षित? जानिए कैसे चलता है सेकंड-टू-सेकंड मॉनिटरिंग सिस्टम
बिहार विधानसभा चुनाव में मतदान के बाद EVM मशीनों को स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाता है, जहां सुरक्षा इतनी कड़ी होती है कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता. जानिए क्या होता है स्ट्रॉन्ग रूम, कैसे रखी जाती है EVM की सुरक्षा, कौन कर सकता है एंट्री और CCTV से कैसे होती है 24 घंटे निगरानी. पढ़ें चुनावी लोकतंत्र के इस किले की अंदरूनी कहानी विस्तार से.;
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान शांतिपूर्ण माहौल में संपन्न हुआ और अब सबकी निगाहें दूसरे चरण पर हैं, जो 11 नवंबर को होगा. वोटों की गिनती 14 नवंबर को तय है. लेकिन असली रोमांच तब शुरू होता है जब मतदान के बाद EVM मशीनें एक रहस्यमय जगह स्ट्रॉन्ग रूम में ले जाई जाती हैं. यह वही जगह है जहां लोकतंत्र के फैसले ‘तालों और तालेदारों’ के भरोसे सील हो जाते हैं.
हर चुनाव में यह सवाल उठता है कि क्या EVM सुरक्षित हैं? क्या कहीं छेड़छाड़ संभव है? जब मतदान केंद्रों पर गड़बड़ी की खबरें आती हैं, तो लोगों का ध्यान स्ट्रॉन्ग रूम की ओर जाता है. वो जगह जहां देश के भविष्य का फैसला बंद ताले में सोता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा इतनी सख्त होती है कि वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता?
क्या होता है स्ट्रॉन्ग रूम?
स्ट्रॉन्ग रूम कोई जादुई जगह नहीं, बल्कि एक मजबूत कमरा होता है जहां मतदान के बाद EVM मशीनें रखी जाती हैं. इसकी खासियत यह है कि इसमें एक ही दरवाजा होता है, और यदि खिड़की हो तो उसे लोहे की सलाखों और सील से बंद कर दिया जाता है. यह कमरा हमेशा किसी सरकारी इमारत में बनाया जाता है — जैसे कॉलेज, सरकारी दफ्तर या किसी सुरक्षित पुलिस परिसर में. हर चुनाव आयोग यह सुनिश्चित करता है कि वहां सुरक्षा मानकों का पूरी तरह पालन हो.
कैसे पहुंचती हैं EVM मशीनें स्ट्रॉन्ग रूम तक
जब मतदान समाप्त होता है, तब EVM मशीनों को भारी सुरक्षा घेरे में स्ट्रॉन्ग रूम तक लाया जाता है. पूरे रास्ते की वीडियोग्राफी की जाती है. इस दौरान चुनाव अधिकारियों के साथ-साथ राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि भी मौजूद रहते हैं. मशीनें जब कमरे में रख दी जाती हैं, तो उसे सील कर दिया जाता है, और उसके बाद किसी को भी अंदर जाने की अनुमति नहीं होती.
सुरक्षा का चार-लेयर सिस्टम
स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा आम जगहों जैसी नहीं होती. यहां चार स्तर की सुरक्षा व्यवस्था रहती है.
- पहला और दूसरा स्तर: अर्धसैनिक बलों की निगरानी में होता है.
- तीसरा स्तर: स्थानीय पुलिस और प्रशासन के हवाले रहता है.
- चौथा स्तर: राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में.
ये प्रतिनिधि दिन-रात पहरा देते हैं ताकि किसी भी तरह की गड़बड़ी या शंका की स्थिति न बन सके.
CCTV से लाइव नजर
स्ट्रॉन्ग रूम के अंदर और बाहर CCTV कैमरे लगे होते हैं. इन कैमरों की फुटेज का सीधा प्रसारण जिला नियंत्रण कक्ष तक होता है. इतना ही नहीं, कई जगहों पर राजनीतिक दलों को भी लाइव मॉनिटरिंग की सुविधा दी जाती है ताकि पारदर्शिता बनी रहे. किसी भी संदिग्ध गतिविधि पर तुरंत अलर्ट जारी होता है.
कौन कर सकता है स्ट्रॉन्ग रूम में एंट्री?
स्ट्रॉन्ग रूम के दरवाजे मतगणना से पहले नहीं खुलते. अगर किसी पार्टी को गड़बड़ी का संदेह होता है, तो उसे लिखित शिकायत और सबूत के साथ आवेदन करना पड़ता है. फिर जिला अधिकारी, चुनाव अधिकारी और सभी दलों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में ताला खोला जाता है और जांच के बाद दोबारा सील कर दिया जाता है. इसके अलावा किसी को भी एंट्री नहीं मिलती.
सुरक्षा के पीछे की तकनीकी रणनीति
अब स्ट्रॉन्ग रूम की सुरक्षा में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल बढ़ गया है. इलेक्ट्रॉनिक लॉक्स, बायोमेट्रिक एंट्री सिस्टम और GPS-ट्रैक्ड EVM कंटेनर जैसे उपाय किए गए हैं. इन सबका उद्देश्य एक ही है, “लोकतंत्र के वोट को छूने की हिम्मत किसी में न हो.”
नतीजों से पहले सबसे सख्त पहरेदारी
गिनती से पहले के ये दिन सबसे संवेदनशील माने जाते हैं. स्ट्रॉन्ग रूम की निगरानी चौबीसों घंटे जारी रहती है. हर अधिकारी और सुरक्षा कर्मी के लिए यह गर्व की बात होती है कि लोकतंत्र के फैसले को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर है. शायद इसी वजह से कहा जाता है, “जहां स्ट्रॉन्ग रूम की पहरेदारी होती है, वहां लोकतंत्र चैन से सोता है.”