बिहार के वो CM जिन्होंने इंदिरा और राजीव दोनों को दी चुनौती, ऐसे शख्स थे भागवत झा 'आजाद'; कभी नहीं किया...

Bhagwat Jha: बिहार की राजनीति में भागवत झा आजाद का नाम उस शख्सियत के रूप में लिया जाता है, जिन्होंने सत्ता में रहते हुए भी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया. इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जैसे दिग्गज नेताओं को चुनौती देने का साहस रखने वाले आजाद को लोग बिहार का 'शेर' कहते थे. उनकी बेहतर प्रशासनिक क्षमता के भी लोग कायल थे.;

By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 21 Aug 2025 3:56 PM IST

Bhagwat Jha Azad: बिहार की राजनीति में कई नेताओं ने सत्ता का स्वाद चखा, लेकिन बहुत कम ऐसे नेता हुए जिन्होंने अपनी सख्त और साफ-सुथरी छवि से जनता के दिलों में जगह बनाई. उन्हीं में एक थे भागवत झा आजाद. कांग्रेस के मजबूत स्तंभ रहे आजाद ने एक ओर जहां मुख्यमंत्री रहते हुए प्रदेश को नई दिशा दी, वहीं पार्टी हाईकमान तक को चुनौती देने का साहस दिखाया. यही वजह थी कि उन्हें बिहार का ‘शेर’ कहा गया.

भारत की राजनीति में कई ऐसे नेता हुए जिन्होंने अपने मजबूत इरादों और सिद्धांतों से अलग पहचान बनाई. उनकी राजनीति का आधार सिर्फ और सिर्फ सिद्धांत और ईमानदारी रही. यही वजह थी कि वे विरोधियों के बीच भी सम्मान पाते रहे.

मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने कई अहम फैसले लिए और विकास की दिशा में काम किया, लेकिन उनकी पहचान केवल एक प्रशासक तक सीमित नहीं थी, बल्कि एक ऐसे नेता की भी थी जो सिद्धांतों के लिए सत्ता तक छोड़ सकते थे. जब इंदिरा गांधी का दौर था, तब भी भागवत झा आजाद ने कई मौकों पर उनके फैसलों पर सवाल उठाए. यही नहीं, राजीव गांधी के समय भी वे बिना डर-भय अपनी राय रखने से पीछे नहीं हटे.

भागवत झा आजाद के जीवन और राजनीति से जुड़े कई रोचक किस्से

1. इंदिरा गांधी से था 36 का आंकड़ा

भागवत झा आजाद कांग्रेस के उन गिने-चुने नेताओं में थे जिन्होंने इमरजेंसी के बाद भी इंदिरा गांधी के सामने खुलकर असहमति जताई। 1977 में जब कांग्रेस का पतन हुआ, तो आजाद ने कहा था कि पार्टी का पुनर्निर्माण तभी संभव है जब अंदर से लोकतंत्र लाया जाए। इंदिरा गांधी को यह बात नागवार गुज़री, लेकिन आजाद अपने स्टैंड पर अडिग रहे।

2. राजीव गांधी को भी नहीं छोड़ा

इंदिरा गांधी के निधन के बाद जब राजीव गांधी पीएम बने तो उन्होंने कई बार संगठन और नीतियों पर सवाल उठाए. वह 'हां-में-हं' मिलाने वाले नेताओं में कभी नहीं रहे. एक बार संसद में उन्होंने राजीव सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए कहा था, “सत्ता में होना और सही होना, दोनों हमेशा एक जैसे नहीं होते.”

3. बेटे को एडजस्ट करने वाली बात मुझे मत बोलिए

भागवत झा की ठसक इतनी थी कि एक बार फिर पूर्व पीएम राजीव गांधी ने जब उन्हें बुलाया और कहा कि बिहार के हालात ठीक नहीं है, आप वहां जाइए और बिहार संभालिए, मैं यहां आपके बेटे को एडजस्ट कर लूंगा तो उन्होंने कहा कि पटना तो मैं चला जाऊंगा, बिहार भी संभाल लूंगा लेकिन, बेटे को एडजस्ट करने वाली बात मुझे मत बोलिए, मैं वैसा आदमी नहीं हूं, जिसकी सोच सिर्फ अपने परिवार तक सीमित होती है.

4. सीएम बने तो भी नहीं किया विचारों से समझौता

साल 1990 में 13 महीने के लिए वह बिहार के मुख्यमंत्री बने. उस दौर में जातीय राजनीति और समझौतावादी रवैया हावी था, लेकिन उन्होंने साफ कहा कि वे सिद्धांतों पर समझौता कर कुर्सी बचाने वालों में नहीं हैं. इसी कारण वे ज्यादा समय तक इस पद पर नहीं रह पाए.

5. जनता के बीच सादगी पसंद नेता

भागवत झा आजाद अपने संसदीय भागलपुर में भी बेहद लोकप्रिय थे. अक्सर वे बिना सिक्योरिटी के पैदल निकल पड़ते और लोगों से सीधी बातचीत करते. उनके बारे में स्थानीय लोगों की राय है कि उनके घर का दरवाजा कभी बंद नहीं रहता था. कोई भी आकर उनसे अपनी समस्या कह सकता था.

6. उनके स्वभाव पर था ‘आजाद’ नाम का असर

भागवत झा का उपनाम ही उनकी राजनीति की पहचान बन गया. लोग कहते थे कि भागवत झा सचमुच ‘आजाद’ मिजाज के व्यक्ति थे. न किसी परिवारवाद से बंधे, न सत्ता लोभ से और न ही दलगत दबाव से.

7. ‘मृत्युंजयी’ आजाद की आस्था जगाने वाली किताब

भागवत झा आजाद जितने बेहतरीन राजनेता थे, उतने ही शानदार साहित्यकार भी थे. ‘मृत्युंजयी’ उनकी लिखी किताब है, जिसमें उन्होंने लोक दृष्टि विकसित करने के लिए जन संघर्ष को अनिवार्य माना है.

8. नहीं की पढ़ाई की चिंता, मन हुआ तो कूद गए स्वतंत्रता आंदोलन में

भागवत झा की गुलामी से लड़ने की जीवटता का ही प्रतीक है कि उन्होंने अपनी पढ़ाई की चिंता किए बगैर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गए. जबकि वह बेहतरीन छात्र थे. परिस्थितियां कैसी भी रही, अपने मनोबल को गिरने नहीं दिया. यहीं से ‘आजाद’ शब्द उनके नाम के साथ जुड़ गया.

9. आजादी के लिए जेल भी गए आजाद

भागवत झा आजाद भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ थे. 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान एक प्रदर्शन में भाग लेने के समय आजाद 20 वर्ष के कॉलेज छात्र थे. आंदोलन में भाग लेने के दौरान पुलिस ने लोगों को तितर-बितर करने के लिए गोलियां चलाई थी. उनके पैर में गोली लगी थी. बाद में आजाद को अंग्रेजों ने कई बार गिरफ्तार भी किया. वह स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जेल भी गए थे.

10. गांधी और टैगोर के​ विचारों के प्रति था झुकाव

बिहार के पूर्व सीएम भागवत झा आजाद के मन पर रवीन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू का पर गहरा प्रभाव था. देश आजाद हुआ तो उन्होंने राजनीति को नहीं राजनीति ने उन्हें चुना.

11. आजाद 6 बार सांसद चुने गए 

कांग्रेस के नेता रहे और पूर्व सीएम भागवत झा आजाद की समाज में लोकप्रियता इतनी थी कि पहली बाद गोड्डा से सांसद बने. फिर भागलपुर से पांच बार सांसद रहे चुने गए. आजाद ने लोकसभा में भागलपुर निर्वाचन क्षेत्र का पांच बार प्रतिनिधित्व किया. वे तीसरी, चौथी, पाचवीं, सातवीं और आठवीं लोकसभा के लिए चुने गए. 1967 से 1983 तक कृषि, शिक्षा, श्रम एवं रोजगार, आपूर्ति एवं पुनर्वास, नागरिक उड्डयन और खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्रालयों में केंद्रीय राज्य मंत्री के रूप में काम किया.

12. राज्यमंत्री पद की शपथ लेने से कर दिया था इंकार

इंदिरा गांधी के सबसे करीबी और उनकी सरकार में मंत्री रहे भागवत झा के आजाद ख्याल होने का अंदाजा इस बात से लगाइए कि उन्होंने इंदिरा गांधी के कैबिनेट में राज्य मंत्री का दर्जा संभाला था, लेकिन एक बार फिर उन्हें इसी राज्यमंत्री पद की शपथ दिलाया जाना तय हुआ तो उन्होंने शपथ लेने से साफ इंकार कर दिया था और समारोह से बिना कुछ बोले खिसक गए थे.

13. महादेवी , दिनकर और धर्मवीर से थे आत्मीय सरोकार

ये तो राजनीतिक सफर चल रहा था, लेकिन आजाद के अंदर का साहित्यकार भी उमड़ता था. महादेवी वर्मा से उनका संवाद और पत्राचार लगातार होता था. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के साथ उनके संबंध बेहद आत्मीय थे. धर्मवीर भारती, योगेन्द्र सिंह, भवानी प्रसाद मिश्र, कन्हैयालाल नन्दन, डॉ. रघुवंश सरीखे साहित्यकारों से उनका आत्मीय सरोकार था.

14. कांग्रेस युवा तुर्क गुट में रखते थे दखल

आजाद बिहार के राजनेताओं के एक प्रभावशाली समूह का हिस्सा थे, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद के दौर में राष्ट्रीय मंच पर प्रमुखता हासिल की, जिन्हें "युवा तुर्क" के रूप में जाना जाता था. वे बिंदेश्वरी दुबे, अब्दुल गफूर, चंद्रशेखर सिंह, सत्येंद्र नारायण सिन्हा और केदार पांडे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भावी राष्ट्रीय अध्यक्ष सीताराम केसरी के समकालीन थे.

15. ऐसे बने बिहार के सीएम

वे एक वरिष्ठ कांग्रेसी थे और 14 फरवरी 1988 से 10 मार्च 1989 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. तत्कालीन पीएम राजीव गांधी ने उन्हें बुलाकर कहा था कि अब आप बिहार की बागडोर संभालिए. भागवत झा आजाद का 2011 में 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया. वे कई वर्षों से बीमार थे.

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