बिहार में चिराग उठाना चाहते हैं नीतीश के खिलाफ 'एंटी इनकंबेंसी' का लाभ! पार्टी नेताओं का सामने आया बड़ा बयान
Chirag Paswan News: लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान की भी मजबूरी वही है, जो बीजेपी और आरजेडी की है. अभी वो अकेले दम पर पूरे प्रदेश में चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं हैं. ऐसे में अहम सवाल यह है कि क्या वो पार्टी के विस्तार के लक्ष्य को पाने के लिए नीतीश कुमार के खिलाफ 'एंटी इनकमबेंसी' का लाभ उठाएंगे. अगर हां तो कैसे?;
Chirag Paswan VS Nitish Kumar: बिहार की राजनीति में गजब का विरोधाभास है. एक तरफ लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिरांग पासवान कहते हैं कि विधानसभा चुनाव बाद प्रदेश के सीएम नीतीश कुमार ही होंगे तो दूसरी तरफ वह ये भी दावा करते हैं कि बिहार में बदलाव की जरूरत है. राज्य की जनता चाहती है कि युवा नेतृत्व सीएम बने. इतना ही नहीं, कभी जेडीयू प्रमुख की तारीफ करते हैं तो अगले ही दिन कानून व्यवस्था को लेकर सवाल भी उठाते नजर आते हैं. इससे साफ है कि वह नीतीश के खराब स्वास्थ्य और कुछ अन्य कमियों को लेकर प्रदेश की जनता में व्याप्त एंटी इनकमबेंसी का लाभ उठाना चाहते हैं.
यहां पर भी चिराग पासवान के सामने यक्ष प्रश्न यह है कि उन्हें इस काम को गठबंधन धर्म के दायरे में रहकर ही करना होगा. असल में चिराग पासवान की भी मजबूरी वही है, जो बीजेपी और आरजेडी की है. वो अकेले दम पर अभी कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं. ऐसे में अहम सवाल यह है कि वो एंटी इनकमबेंसी का लाभ उठा पाते हैं या नहीं. आइए, जानते हैं, क्या कहते हैं एलेजपीआर के नेता?
सभी सीटों पर प्रत्याशी जिताकर दिखाएंगे चिराग - विभय झा
बिहार लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विभय झा ने कहा कि लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास एनडीए गठबंधन में सबसे अहम पार्टी है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान पीएम मोदी के हनुमान हैं. इस बात को देश भर के लोग जानते हैं. लोकसभा सांसदों की संख्या के हिसाब से ही हमारी पार्टी का 30 सीट पर हक बनता है. पार्टी की मांग 40 सीटों की है. उम्मीद है कि एनडीए का शीर्ष नेतृत्व पार्टी की मांग को गंभीरता से लेगा.
विभय झा ने आगे कहा कि एलजेपी की तैयारी यह है कि लोकसभा चुनाव की तरह जो सीटें मिले एलजेपीआर को वो सभी सीटें जीतकर पीएम को सौंप दें. जहां तक बात नीतीश कुमार के एंटी इनकमबेंसी की है, तो उसके लिए चिराग पासवान को सीएम की कमजोरियों का लाभ उठाने की जरूरत नहीं है. वो, प्रदेश की जनता में युवा नेता के रूप में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं और अपने दम पर सभी सीट निकालकर दिखाएंगे.
पार्टी चिंता जनहित में काम करने की है - सोनम
बिहार लोक जनशक्ति पार्टी के प्रवक्ता सोनम का कहना है कि सवाल नीतीश कुमार के एंटी इनकमबेंसी का लाभ उठाने की नहीं है. अहम सवाल बिहार में पार्टी के विस्तार की है. इन्हीं पहलुओं पर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लंबे अरसे से काम कर रहे हैं. वह केंद्र और बिहार सरकार के विकास कार्यों के साथ उन पहलुओं को भी उठा रहे हैं, जो जनता के हित में है. हमारी पार्टी कानून और व्यवस्था के मसले को जमकर उठा रही है. जहां तक सीटों की बात है तो गठबंधन में शामिल दल परफार्मेंस रिपोर्ट जमा करा चुके हैं.
उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी अभी नई है, पर प्रदेश की जनता हमारे साथ है. हमारे नेता केंद्र में रहकर भी बिहार की चिंता करते रहते हैं. वह बिहार में केंद्रीय फूड प्रोसेसिंग एजेंसी शुरू करने की योजना पर जीतोड़ कोशिश में जुटे हैं. इसलिए, हम लोगों को विधानसभा चुनाव में बेहतरी की उम्मीद है.
नीतीश पर हमला, सौदेबाजी नहीं
लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास का अभी उतना विस्तार नहीं हुआ कि वो चुनाव अकेले दम पर लड़ लें. इस बात को वो जानते हैं. पांच साल पहले उन्होंने एनडीए से अलग होकर उनकी पार्टी विधानसभा चुनाव लड़ने का साहसिक फैसला लिया था. इसका जेडीयू को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ, लेकिन चिराग के 135 प्रत्याशी में सिर्फ एक प्रत्याशी चुनाव जीत पाए. वो भी चुनाव के कुछ समय बाद जेडीयू में शामिल हो गए. यानी चिराग पासवान को भी सहारा चाहिए. यही वजह है कि वो इस बार 243 सीटों पर चुनाव की तैयारियों की बात तो करते हैं, लेकिन एनडीए छोड़ने या सीएम नीतीश कुमार का खुलकर विरोध करते नजर नहीं आते.
पार्टी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि चिराग पासवान द्वारा जेडीयू की तीखी आलोचना कोई अचानक की गई प्रतिक्रिया नहीं थी, न ही गठबंधन वार्ता में ज्यादा ज्यादा सीटों के लिए कोई सौदेबाजी की चाल है. यह खुद के अस्तित्व को बनाए रखने और जैसे तैसे पार्टी का लोगों के बीच जनाधार बढ़ाने की कवायद भर है. ऐसा इसलिए कि अक्टूबर-नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में वह अपने हिसाब से सीट चाहते हैं. यानी कानून व्यवस्था को लेकर ताजा हमला मौजूदा हालात का फायदा उठाने की बजाय एक और दांव आजमाने की कोशिश है.
राज्य विधानसभा में 80 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद, भाजपा के पास पूरे राज्य में अपनी पैठ रखने वाला कोई स्थानीय नेता नहीं है जो वफादारी हासिल कर सके. इसके विपरीत, नीतीश (जिन्हें कभी 2005 के बाद बिहार के पुनरुत्थान के सूत्रधार के रूप में सराहा जाता था) अब कमजोर नजर आते हैं. उनके स्वास्थ्य और सत्ता पर उनकी कमजोर होती पकड़ के बारे में कानाफूसी ने नेतृत्व के खालीपन की अटकलों को हवा दे दी है. इसका चिराग पासवान अवसर को अपने पक्ष में भुना सकते हैं. सिर्फ यही विकल्प उनके पास है.
चिराग की सबसे बड़ी सियासी चुनौती
दरअसल, चिराग पासवान अपने दिवंगत पिता रामविलास पासवान की विरासत का वादा और भार दोनों ढो रहे हैं. बिहार की सत्ता की राजनीति में वापसी की उनकी महत्वाकांक्षाएं किसी प्रतिद्वंद्वी को कमजोर करने से कहीं आगे जाती है. लोकसभा चुनाव 2024 में पार्टी का प्रदर्शन असाधारण रही. पांच में से पांच सीटें उनके प्रत्याशी जीतने में कामयाब रहे थे. साल 2019 में छह में से छह और 2014 में केवल 6-8 प्रतिशत वोट शेयर के साथ सात में से छह सीटें जीतीं. फिर भी विधानसभा चुनावों में उसका प्रदर्शन निराशाजनक रहा है. पिछले तीन चुनावों में क्रमशः 3, 2 और 1 सीट हासिल की है. विधानसभा में सीट न निकाल पाना ही चिराग के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. इसे विन ओवर कर आगे निकलना उनके लिए जरूरी है.