बिहार में बंपर वोटिंग: क्या SIR ने सच में बढ़ाया वोटर टर्नआउट या सिर्फ आंकड़ों का खेल है?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में 121 सीटों पर रिकॉर्ड 64.66% वोटिंग हुई, जो 2020 और 2024 की तुलना में करीब 9% ज्यादा है. हालांकि, यह बढ़ोतरी चुनाव आयोग की Special Intensive Revision (SIR) प्रक्रिया के बाद मतदाता सूची से 30 लाख नाम हटाए जाने से भी जुड़ी है. हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, इन कटौतियों के बावजूद वास्तविक वोट डालने वालों की संख्या बढ़ी है, जो बताता है कि SIR ने निष्क्रिय वोटरों को हटाकर सक्रिय मतदाताओं की भागीदारी को बढ़ाया.;
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण की वोटिंग खत्म हो चुकी है. गुरुवार को 243 विधानसभा सीटों में से 121 पर मतदान हुआ और शाम 8:30 बजे तक निर्वाचन आयोग (ECI) के आंकड़ों के मुताबिक, इन सभी सीटों पर औसतन 64.66 फीसदी मतदान दर्ज किया गया. यह न केवल 2020 विधानसभा चुनाव और 2024 लोकसभा चुनाव की तुलना में लगभग 9 फीसदी ज्यादा वोटिंग है, बल्कि पिछले 15 सालों में बिहार में हुए किसी भी राज्य या राष्ट्रीय चुनाव की तुलना में सबसे अधिक टर्नआउट है.
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इस शानदार आंकड़े को सीधे तौर पर “मतदाता उत्साह” का संकेत नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसके पीछे एक तकनीकी कारण भी है - SIR यानी Special Intensive Revision Exercise, जिसके तहत चुनाव आयोग ने पिछले महीनों में बिहार की मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर संशोधन किया.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इस विशेष पुनरीक्षण के दौरान राज्य की मतदाता सूची से करीब 30.7 लाख नाम हटाए गए, जो कुल वोटरों का लगभग 4% हिस्सा हैं. 2024 लोकसभा चुनाव और SIR के बाद तैयार अंतिम सूची के बीच यह गिरावट दर्ज की गई थी. केवल पहले चरण की 121 सीटों की बात करें, तो इनमें 15.3 लाख वोटरों के नाम हटाए गए, यानी लगभग 3.9% की कमी आई.
नाम कटे पर मतदाता नहीं घटे
इसके बावजूद, नए आंकड़े बताते हैं कि मतदाता सूची घटने के बाद भी वोट डालने वालों की वास्तविक संख्या में गिरावट नहीं आई, बल्कि उसमें इज़ाफा हुआ है. आयोग के मुताबिक, इन 121 सीटों पर कुल 3.75 करोड़ मतदाता पंजीकृत थे, जिनमें से लगभग 2.43 करोड़ लोगों ने वोट डाला. यह आंकड़ा 2024 लोकसभा चुनाव में इन्हीं सीटों पर वोट डालने वाले 2.15 करोड़ मतदाताओं से लगभग 28 लाख ज्यादा है. इसका मतलब यह हुआ कि मतदाता सूची में कटौती के बावजूद वोट डालने वालों की संख्या बढ़ी, जो यह दर्शाता है कि SIR प्रक्रिया ने संभवतः केवल डुप्लिकेट या निष्क्रिय वोटरों को ही हटाया, न कि सक्रिय मतदाताओं को.
पिछले चुनावों में क्या थी स्थिति?
अगर हम पिछले विधानसभा चुनावों की तुलना करें, तो तस्वीर और साफ होती है. 2010 से 2015 के बीच इन 121 सीटों पर वोटरों की संख्या में 21.7% की वृद्धि हुई थी, जबकि मतदान करने वालों की संख्या में 30.5% की बढ़ोतरी हुई. 2015 से 2020 के बीच दोनों दरें लगभग समान रहीं - वोटरों में 9.2% और मतदाताओं में 9.5% की वृद्धि. लेकिन 2025 में, जहां वोटरों की संख्या केवल 1.1% बढ़ी, वहीं मतदान में 17.1% की वृद्धि दर्ज की गई. यह अंतर बताता है कि बिहार में इस बार वास्तविक मतदाता सक्रियता बढ़ी है, न कि केवल सूची के आकार में बदलाव हुआ.
“कागज़ पर मौजूद मगर ज़मीन पर गायब वोटर”
हिंदुस्तान टाइम्स ने अपनी 1 अगस्त की रिपोर्ट में यह संभावना जताई थी कि SIR के जरिए आयोग ने उन नामों को हटाया जो या तो दूसरे क्षेत्रों में शिफ्ट हो चुके थे या एक से अधिक जगह पंजीकृत थे. इसलिए, हटाए गए नामों में ज्यादातर वे लोग शामिल थे जो पहले भी मतदान में हिस्सा नहीं लेते थे. हालांकि, इस निष्कर्ष पर पूरी तरह पहुंचना अभी जल्दबाजी होगी, क्योंकि चुनाव आयोग यह डेटा सार्वजनिक नहीं करता कि कौन-कौन मतदाता वास्तव में वोट डालने पहुंचे. लेकिन चुनावी विश्लेषकों का कहना है कि SIR ने बिहार में लंबे समय से बनी एक बड़ी समस्या को ठीक किया है - “कागज़ पर मौजूद मगर ज़मीन पर गायब वोटर.”
इसके बावजूद, यह सच है कि बिहार का वोटर टर्नआउट ऐतिहासिक रूप से हमेशा प्रमुख राज्यों में सबसे कम रहा है. उदाहरण के लिए, 2020 के विधानसभा चुनाव में औसत मतदान 56.5% के आसपास था, जबकि इसी अवधि में बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में यह 70% से ऊपर पहुंचा था.
इस बार के आंकड़े यह इशारा करते हैं कि मतदाता अब पहले की तुलना में ज्यादा सजग हैं - खासकर ग्रामीण इलाकों में महिलाओं की भागीदारी में बड़ी बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
विश्लेषण क्या कहता है?
राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, बिहार में पहली बार शहरी-ग्रामीण वोटिंग गैप कम हुआ है. जहां शहरी इलाकों में मतदान दर सामान्य रही, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग ने औसत बढ़ा दिया. इसके अलावा, महिलाओं की भागीदारी इस बार कई सीटों पर पुरुषों से अधिक रही. आयोग के प्रारंभिक डेटा में बताया गया है कि 60 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों में महिला मतदान दर 65% से ऊपर रही.
क्या ये ट्रेंड बाकी चरणों में भी जारी रहेगा?
बड़ा सवाल अब यही है. अगर अगले चरण में भी इसी तरह का रुझान जारी रहता है, तो यह संकेत होगा कि बिहार में चुनावी मतदाता आधार अब अधिक शुद्ध और सक्रिय हो गया है. यानी अब “कागजी मतदाता” नहीं बल्कि “वास्तविक वोटर” चुनाव परिणाम तय कर रहे हैं. फिलहाल, पहले चरण के आंकड़े बताते हैं कि SIR ने वोटिंग प्रक्रिया को संख्यात्मक रूप से नहीं बल्कि गुणवत्ता के स्तर पर सुधार दिया है. चुनाव आयोग के अधिकारी मानते हैं कि इस बार का डेटा आने वाले वर्षों में अन्य राज्यों के लिए एक “मॉडल प्रोजेक्ट” बन सकता है.