बिहार की इन पांच विधानसभा सीटों पर 80 प्रतिशत से ज्यादा हैं हिंदू वोटर, लेकिन जीते मुस्लिम उम्मीदवार; आखिर क्या हुआ खेला?
बिहार चुनाव में एनडीए की प्रचंड जीत हुई है, लेकिन महागठबंधन की करारी हार हुई है. मुस्लिम बहुल सीटों पर भी एनडीए ने जीत दर्ज की है, लेकिन बिहार में 11 मुस्लिम विधायक जीतकर विधानसभा तक पहुंचे हैं. खास बात यह है कि इनमें पांच विधायक हिंदू बहुल सीट से चुनाव जीतने में सफल हुए. आइए, जानते हैं हिंदू बहुल सीटों के बारे में जहां से जीते मुस्लिम प्रत्याशी.;
बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 में कुछ ऐसी सीटें भी हैं जहां मुस्लिम उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की. ये उम्मीदवार कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू के हैं. जबकि इनमें से अधिकांश सीटों पर बीजेपी प्रत्याशी की हार हुई है. जबकि इन सीटों को हिंदू आबादी बहुल मानी जाती है. यह एक दिलचस्प मामला है, जो सिर्फ धार्मिक पहचान तक सीमित न होकर जातीय, विकास-मुद्दों और रणनीतिक गठबंधनों पर भी निर्भर है. चैनपुर, ढाका, बिस्फी, रघुनाथपुर और अररिया ऐसे विधानसभा क्षेत्रों में शामिल हैं. जानें, क्या है मुस्लिम प्रत्याशियों के जीत की वजह क्या है?
1. चैनपुर
कैमूर जिले के चैनपुर विधानसभा सीट से जनता दल यूनाइटेड के मोहम्मद जमा खान ने चुनावी जीत दर्ज की है. उन्होंने आरजेडी के ब्रिज किशोर बिंद को हराया है. जबकि चैनपुर विधानसभा सीट हिंदू बहुल सीट है और यहां पर केवल 15 फीसदी मुस्लिम आबादी है.
चैनपुर क्षेत्र में अल्पसंख्यक (मुस्लिम) मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. जेडीयू ने जमा खान को मौका दिया और उन्होंने मुस्लिम वोट को लामबंद करने के साथ-साथ अन्य जातियों के मतदाताओं को भी खुद से जोड़ लिया. जमा खान पिछली बार बसपा की टिकट पर जीत चुके थे और उनकी क्षेत्र में लोकप्रियता अच्छी है. वह हिंदुओं को अपना पूर्वज मानते हैं. चैनपुर में ब्राह्मण, यादव, कोइरी, कुर्मी जैसे अन्य जातियां भी हैं, इसलिए जीत के लिए केवल मुस्लिम वोट बैंक पर्याप्त नहीं है.
2. ढाका
बिहार के पूर्वी चंपारण जिले में स्थित ढाका विधानसभा सीट से आरजेडी के फैसल रहमान ने जीत दर्ज की है. उन्होंने भाजपा के पवन कुमार जायसवाल को महज 178 वोटों से हराया. ढाका विधानसभा सीट भी हिंदू बहुल सीट है, लेकिन यहां पर मुस्लिम आबादी निर्णायक है. इस सीट पर 32 फीसदी मुस्लिम आबादी है. 2020 में इस सीट से बीजेपी के उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी.
ढाका हिंदू बहुल सीट है, लेकिन मतदाता केवल धार्मिक पहचान तक सीमित नहीं हैं. इस सीट पर स्थानीय विकास, कैंडिडेट की लोगों के बीच छवि और उम्मीदवार की क्षेत्र में खुद की पकड़ भी मायने रखती है. भाजपा और आरजेडी के बीच कड़ी टक्कर थी और फैसल रहमान ने अपनी जमीनी पैठ और जमीनी संगठन का बेहतर उपयोग किया. फिर इस सीट पर इस बार वोट विभाजन और पार्टी गठबंधन की भूमिका भी अहम रही.
3. बिस्फी
मधुबनी जिले के आरजेडी उम्मीदवार आसिफ अहमद ने जीत दर्ज की है. उन्होंने भाजपा के हरिभूषण ठाकुर को हराया है. 2020 में हरिभूषण ठाकुर बीजेपी के उम्मीदवार थे और उन्होंने जीत दर्ज की थी. बिस्फी विधानसभा सीट हिंदू बहुल सीट है. हालांकि, मुस्लिम आबादी यहां पर 40 फीसदी है.
बिस्फी में भी मुस्लिम मतदाता काफी संख्या में है. धर्म-आधारित पहचान प्रभावी हो, लेकिन यह एक सामान्य सीट है. आरजेडी ने पिछली चुनाओं में इस सीट पर अपनी मजबूत पकड़ बनाई थी. विकास मुद्दे और स्थानीय नीतिगत वादों ने भी मुस्लिम और गैर-मुस्लिम मतदाताओं पर असर डाला.
4. रघुनाथपुर
रघुनाथपुर विधानसभा सीट आरजेडी का गढ़ मानी जाती है. यहां से मोहम्मद शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा साहब ने जीत दर्ज की है. यह हिंदू बहुल सीट है और इस सीट पर मुस्लिम आबादी केवल 17 फीसदी है. इसके बावजूद यह शहाबुद्दीन का गढ़ मानी जाती है. इस क्षेत्र में यादव–मुस्लिम (MY) समीकरण बहुत मायने रखता है. रघुनाथपुर पर यह गठबंधन चुनाव का निर्णायक फैक्टर साबित हुआ.
ओसामा शहाब की पृष्ठभूमि और उनका नामांकन शहाबुद्दीन की विरासत से जुड़ा है, जिससे स्थानीय मुस्लिम मतदाता में उनकी स्वीकार्यता अधिक है. वहीं यादव वोट भी उन्हें समर्थन देता है क्योंकि राजद (RJD) परंपरागत रूप से यादव-मुस्लिम गठबंधन को महत्व देता है.
5. अररिया
अररिया विधानसभा सीट कांग्रेस का गढ़ है और यहां पर 2015 से अब्दुर रहमान जीत रहे हैं. यह सीट हिंदू बहुल है और यहां पर मुस्लिम आबादी करीब 32 फीसदी है. इस बार अब्दुर रहमान ने 12000 से अधिक वोटों से जीत दर्ज की है. अररिया सीट पर कांग्रेस के आबिदुर रहमान ने बढ़त बनाई है. अररिया सीमांचल क्षेत्र में आता है, जहां मुस्लिम आबादी काफी महत्वपूर्ण है.
इस सीट पर वोट ध्रुवीकरण का फैक्टर निर्णायक माना जाता है. अररिया में तीन मुस्लिम उम्मीदवारों (कांग्रेस, JDU, AIMIM) के बीच मुकाबला था. इस बार कांग्रेस का उम्मीदवार जीत दर्ज करने में सफल हुआ.