उम्र तो बस एक नंबर है... विपक्ष कुछ भी कह ले, फर्क नहीं पड़ता साहब! NDA में नीतीश कुमार अब भी बेजोड़
बिहार चुनाव 2025 के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर एनडीए का सबसे मजबूत चेहरा बनकर उभरे हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक उम्र और विपक्ष की आलोचनाओं के बावजूद उन्होंने यह साबित किया है कि बिहार की सियासत में उनका अनुभव और विश्वसनीयता अब भी बेजोड़ है. विकास, सुशासन और स्थिरता की छवि के साथ नीतीश एक बार फिर मतदाताओं के भरोसे की कसौटी पर खरे उतरने की कोशिश में हैं. उनके लिए उम्र बस एक नंबर है, असर अब भी वही पुराना है.;
बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले तक नीतीश कुमार को एनडीए की 'कमजोर कड़ी' के रूप में देखा जा रहा था. उनकी उम्र, फिटनेस और हालिया चूकों को लेकर विपक्ष उन्हें निशाने पर लिए हुए था. पुलों के गिरने और चर्चित हत्याओं ने उनके 'सुशासन बाबू' वाले ब्रांड पर सवाल खड़े किए, जिससे आरजेडी और महागठबंधन को हमला बोलने का मौका मिला.
इसके साथ 30 अक्टूबर को जब महागठंबधन ने घोषणा पत्र जारी किया तो तेजस्वी यादव ने कहा कि नीतीश को भाजपा पुतला बना दिया और दोबारा मुख्यमंत्री नहीं होंगे लेकिन जैसे-जैसे चुनावी माहौल गर्म हुआ, नीतीश कुमार ने एक बार फिर अपनी राजनीतिक पकड़ का एहसास कराया. विपक्ष के तमाम दावों और अफवाहों के बीच बीजेपी और एनडीए के सहयोगी दलों ने साफ कहा- मुख्यमंत्री वही रहेंगे- नीतीश कुमार!
बीजेपी और सहयोगी दलों का एकजुट संदेश- 'नीतीश ही रहेंगे मुख्यमंत्री'
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने आधे चुनाव अभियान तक दावा किया कि अगर एनडीए सत्ता में लौटी तो बीजेपी नीतीश को सीएम नहीं बनाएगी. लेकिन जवाब में डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने दो टूक कहा कि “नीतीश कुमार ही बिहार के मुख्यमंत्री रहेंगे.” बीजेपी के चुनाव प्रभारी और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी कहा कि 'सीएम की कुर्सी खाली नहीं है.' यह समर्थन तब और अहम हो गया जब चिराग पासवान और जीतनराम मांझी जैसे सहयोगियों ने भी नीतीश की लीडरशिप पर भरोसा जताया.
'पलटू राम' का टैग और ‘जंगलराज’ की याद
लालू प्रसाद यादव ने एक दौर में नीतीश को 'पलटू राम' कहा था, उनके गठबंधन बदलने की राजनीति पर तंज कसते हुए. लेकिन नीतीश समर्थकों के लिए वे आज भी वही नेता हैं जिन्होंने बिहार को लालू-राबड़ी के ‘जंगलराज’ से बाहर निकाला. बीते 20 वर्षों में (जीतनराम मांझी के नौ महीने को छोड़कर) उन्होंने बिहार को प्रशासनिक स्थिरता, बेहतर सड़कों, बिजली और कानून-व्यवस्था का उपहार दिया.
विकास की राह पर ‘सुशासन बाबू’ की पहचान
2016 तक राज्य के लगभग हर गांव तक बिजली पहुंचाने का काम नीतीश की सरकार ने पूरा किया. सड़क नेटवर्क में सुधार, स्कूल शिक्षा में सुधार और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच उनके शासन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में गिनी जाती है.
रोजगार और पलायन चुनौती बने, पर ‘सुशासन’ अब भी ब्रांड
बेरोजगारी, पलायन और युवाओं की निराशा भले नीतीश के सामने बड़ी चुनौती हैं, लेकिन उनकी स्वच्छ छवि, प्रशासनिक अनुभव और बीजेपी का मजबूत वोट बैंक उनके लिए कवच साबित हो रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी रैलियों में बार-बार चेताया- “बिहार को फिर से जंगलराज में मत जाने देना.”
महिलाओं और पिछड़ों के बीच नीतीश का भरोसा कायम
नीतीश ने महिलाओं के बीच अपने वोट बैंक को मजबूत किया है. सरकारी नौकरियों में 35% और स्थानीय निकायों में 50% आरक्षण, साथ ही हाल ही में 1.20 करोड़ महिलाओं के खातों में ₹10,000 की सीधी ट्रांसफर योजना ने उन्हें ‘महिला समर्थक नेता’ के रूप में स्थापित किया है. साथ ही उन्होंने गैर-यादव ओबीसी, ईबीसी और महादलित वर्गों के बीच राजनीतिक पकड़ बनाई, जिससे उन्हें आरजेडी के परंपरागत जातीय समीकरणों के मुकाबले बढ़त मिली.
बिना परिवारवाद के राजनीति करने वाला नेता
लालू यादव जैसे नेताओं के विपरीत, नीतीश कुमार ने अपने परिवार को राजनीति से दूर रखा. न तो कोई बेटा या बेटी राजनीति में है, न ही भ्रष्टाचार के कोई आरोप लगे हैं. यही सादगी और स्वच्छ छवि आज भी उन्हें बिहार की सियासत का सबसे भरोसेमंद चेहरा बनाती है.