कैसे धर्मेंद्र प्रधान ने लिखी बिहार में NDA की जीत की पटकथा, इससे पहले कब-कब लिखी स्क्रिप्ट?
बिहार चुनाव 2025 में NDA की प्रचंड जीत के पीछे केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की रणनीति को अहम माना जा रहा है. उन्होंने उम्मीदवार चयन, जातीय समीकरण, बूथ मैनेजमेंट और जेडीयू-बीजेपी तालमेल में क्या भूमिका निभाई कि 2010 की बिहार में एक बार एनडीए ने ऐतिहासिक जीत दर्ज करने में सफल हुई.;
बिहार चुनाव 2025 में एनडीए को मिली भारी जीत ने सभी राजनीतिक विश्लेषकों को हैरान किया, लेकिन इसकी असली ‘पटकथा’ जिसने लिखी उसका खुलासा अब जाकर हुआ है. दरअसल, दिल्ली और पटना के बीच बने एक चुनावी वॉर रूम में, जहां धर्मेंद्र प्रधान ने चुपचान और सटीक चुनावी समझ से पूरा खेल पलट दिया. उम्मीदवार चयन से लेकर जातीय समीकरणों को साधने और बूथ-लेवल माइक्रो मैनेजमेंट तक, प्रधान ने वह किया जो विपक्ष समझ ही नहीं पाया. उनकी रणनीति ने न सिर्फ BJP–JDU गठबंधन को एकजुट रखा बल्कि विपक्ष की योजनाओं को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया.
कैंडिडेट सलेक्शन ‘मैचिंग कैंडिडेट’ फॉर्मूला
इस बार धर्मेंद्र प्रधान ने बिहार के 243 सीटों पर उम्मीदवार चयन में हर सीट पर स्थानीय जातीय समीकरण, पिछले 3 चुनावों का डेटा, बूथ-वार प्रदर्शन और विपक्ष की ताकत का तुलनात्मक अध्ययन कराया. 'विक्ट्री प्रोबेबिलिटी मॉडल' के आधार पर कई पुराने चेहरे हटाए गए और युवाओं व समाज के प्रभावशाली वर्गों को टिकट दिया गया. इसी वजह से कई सीटों पर NDA की जीत का अंतर अप्रत्याशित रूप से बढ़ गया.
टूटे भरोसे को जोड़ने का काम
सुशील मोदी के बाद नीतीश कुमार और भाजपा के रिश्ते बीते कुछ सालों से कड़वे चल रहे थे. चुनाव के दौरान ये दूरी माहौल बिगाड़ सकती थी, लेकिन धर्मेंद्र प्रधान ने वैसा नहीं होने दिया. दोनों दलों के बीच कम्युनिकेशन गैप खत्म कर कोआर्डिनेशन टीम बनाई, जिससे टिकट वितरण, कैम्पेनिंग और रैलियों का शेड्यूल सुचारू रूप से चला. उनकी कोशिशों का असर यह हुआ कि बागी उम्मीदवार कम हुए.
वोट ट्रांसफर
बिहार चुनाव प्रचार के दौरान जेडीयू–बीजेपी के मतदाता पहली बार एकजुट दिखे. अति पिछड़ों (EBC) और महिलाओं के वोट बैंक की सटीक पहचान की. प्रधान ने चुनाव कैंपेन में दो प्रमुख समूहों पर फोकस किया. EBC (अतिपिछड़ा) समुदाय, महिला मतदाता आदि को ध्यान में रखते हुए शौचालय, उज्ज्वला, एलपीजी सब्सिडी, प्रधानमंत्री आवास और कल्याणकारी योजनाओं को इन वर्गों में माइक्रो-टार्गेट किया. NDA को 2025 में मिली भारी महिला समर्थक वोटिंग इन्हीं नीतियों का नतीजा मानी गई.
बूथ मैनेजमेंट
प्रत्येक बूथ पर 11 प्वाइंट प्रोग्राम का क्रियान्वयन किया. धर्मेंद्र प्रधान बूथ मैनेजमेंट के मास्टर माने जाते हैं. बिहार में उन्होंने Panna Pramukh मॉडल, 15 दिन का बूथ फीडबैक, Booth-Level WhatsApp ग्रुप, माइक्रो क्लस्टर रणनीति लागू करवाई. इसके चलते कमजोर माने जाने वाले बूथों पर भी NDA को अच्छी बढ़त मिली.
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कैंडिडेट-नेगेटिविटी के लिए ‘काउंटर नैरेटिव’
इस बार जहां उम्मीदवारों के खिलाफ स्थानीय नाराजगी थी, वहां पर उन्होंने लोकल माइक्रो इवेंट, महिलाओं के साथ बैठक, सरकारी योजनाओं का आकलन, युवा स्वयंसेवकों की टीम लगाकर माहौल संभालने की कोशिश की, जो प्रभावी रही.
विपक्ष की रणनीति को भांपना
इसके अलावा धर्मेंद्र प्रधान ने RJD की कमजोरियों का फायदा उठाया. RJD अपने पारंपरिक MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण पर पूरी तरह निर्भर थी. गैर–Yadav OBC, EBC, महिला वोटर, दलित उपसमूह को जोड़ने पर जोर दिया. यही NDA की जीत का टर्निंग प्वाइंट बना.
ऐसे बने BJP के सफल इलेक्शन मैनेजर
केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने 2022 में यूपी में बीजेपी की जीत में भी बड़ा योगदान दिया था. उससे पहले उन्हें उत्तराखंड भेजकर भी पार्टी उन्हें आजमा चुकी थी. दोनों ही राज्यों को पार्टी की झोली में डालने में वे सहायक बने थे. जब 2021 में बंगाल की नंदीग्राम सीट को पार्टी ने प्रतिष्ठा की सीट बना लिया, तो प्रधान की देखरेख में बीजेपी ने ममता बनर्जी को हार का मुंह दिखा दिखाया था. 2023 में कर्नाटक में इनके चुनाव प्रभारी रहते भी भाजपा को सफलता नहीं मिली. यही वजह है कि धर्मेंद्र प्रधान को बीजेपी में हिंदी हार्टलैंड का सफल चुनावी मैनेजर माना जाता है.
प्रधान हार को जीत में बदलने में माहिर
बीजेपी ने 2024 में उन्हें इनके गृह राज्य ओडिशा में आजमाया. यहां से वे खुद भी चुनाव जीते और पार्टी को लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भी अप्रत्याशित कामयाबी दिलवाने में मददगार बने. फिर हरियाणा का चुनाव आया. बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को लग रहा था कि वहां काम आसान नहीं है. 2024 के लोकसभा चुनाव से उसकी झलक मिली हुई थी. प्रधान को वहां भी भेजा गया और उन्होंने हर चुनौती का मुकाबला करते हुए भी सफलता की ऐसी कहानी लिख दी, जिसने दिग्गज चुनाव विश्लेषकों को भी हैरान कर दिया.