मखाना बेल्ट में कौन कितने पानी में? एनडीए को होगा ‘मखाना बोर्ड’ का फायदा या महागठबंधन मारेगा बाजी?

बिहार चुनाव 2025 में मिथिलांचल की मखाना बेल्ट सुर्खियों में है. करीब एक दर्जन जिलों में मखाने का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है. केंद्र सरकार की ‘राष्ट्रीय मखाना बोर्ड’ घोषणा के बाद एनडीए को उम्मीद है कि उसे किसानों का समर्थन मिलेगा, लेकिन महागठबंधन भी इस मुद्दे को भुनाने में जुटा है. आइए जानते हैं - किसके पाले में जा सकते हैं मखाना उत्पादक जिले के वोट.;

बिहार का मिथिलांचल सिर्फ अपनी संस्कृति और मधुबनी पेंटिंग के लिए नहीं, बल्कि ‘मखाना उत्पादन’ के लिए भी दुनिया भर में जाना जाता है. मधुबनी, कटिहार, दरभंगा, सीतामढ़ी, सुपौल और अररिया जैसी सीटें प्रमुख मखाना बेल्ट हैं. 2020 में इन जिलों की कई सीटों पर आरजेडी और जेडीयू में कड़ा मुकाबला देखने को मिला था. हालांकि, मखाना बोर्ड क्षेत्र की सीटों पर एनडीए ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब हुई थी. 2025 में एनडीए को ‘मखाना बोर्ड’ की घोषणा पर भरोसा है. जबकि महागठबंधन वाले इसे ‘चुनावी जुमला’ बता रहे हैं.

इन जिलों में होती है मखाने की खेती

वैसे तो कम या ज्यादा बिहार के अधिकांश जिलों में मखाने की खेती होती है, लेकिन एक दर्जन जिलों में बड़े पैमाने पर इसकी खेती होती है. जिन जिलों में मखाने की खेती सबसे ज्यादा होती है उनमें सीतामढ़ी, मधुबनी, दरभंगा, सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, अररिया, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, सहरसा, सुपौल और समस्तीपुर का नाम शामिल है. मधुबनी जिले में इसकी खेती सबसे ज्यादा होती है. दूसरे नंबर पर कटिहार का नाम आता है.

सुपरफूड है मखाना

बिहार में मखाना की खेती सदियों पुरानी परंपरा है. अब भारत के सुपर फूड उद्योग की रीढ़ बन गई है. दुनिया के लगभग 80 से 90% मखाना उत्पादन बिहार से होने के कारण, यह राज्य टिकाऊ खेती, ग्रामीण रोजगार और वैश्विक निर्यात में अग्रणी है. बिहार में 1.2 लाख से ज्यादा किसान सीधे मखाना खेती से जुड़े हैं. यह सेक्टर अब 10 हजार करोड़ रुपये से अधिक की अर्थव्यवस्था बन चुका है.

मिथिलांचल के तालाबों से लेकर अंतर्राष्ट्रीय बाजारों तक, बिहार के मखाना किसान इस पोषक तत्वों से भरपूर फसल, जिसे अक्सर काला सोना कहा जाता है, को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचा रहे हैं.  

मखाना बोर्ड का कितना होगा असर?

2024 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय मखाना बोर्ड (National Makhana Board) की स्थापना की घोषणा की थी, जिसका मुख्यालय दरभंगा में बनेगा. एनडीए इसे अपनी बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश कर रहा है. यह कहते हुए कि इससे मखाना किसानों की आय दोगुनी होगी और एक्सपोर्ट के रास्ते खुलेंगे. एनडीए को इस घोषणा से मखाना बेल्ट की लगभग 25 से 30 सीटों पर 2 से 3 फीसदी वोट स्विंग का फायदा मिल सकता है.

किसे मिलेगा मखाना बोर्ड गठन का लाभ?

मखाना बोर्ड के क्रेडिट को लेकर एनडीए और महागठबंधन, दोनों के नेता लाभ उठाना चाहते हैं. इसको लेकर स्थानीय लोगों का कहना है कि मखाना बोर्ड के गठन से किसानों में उम्मीद जगी है कि सरकार अब खरीद, प्रोसेसिंग और निर्यात में मदद करेगी. ऐसे में मिथिलांचल के मखाना बोर्ड वाले इलाके के लोगों की सहानुभूति जेडीयू और एनडीए उठा सकती है.

बीजेपी-जेडीयू के उम्मीदवार स्थानीय जनसभाओं में इसका प्रचार का मुख्य हिस्सा है. वहीं आरजेडी और कांग्रेस के नेता कह रहे हैं कि बोर्ड बना तो है, लेकिन जमीनी फायदा अभी तक किसी को नहीं मिला है. महागठबंधन की सरकार बनी तो हम किसानों को उसका लाभ भी दिलाएंगे.

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