Bihar Election 2025: जॉर्ज फर्नांडिस अगर होते तो आज बिहार की राजनीति में चमक रहे कई ‘दीए’ बुझे पड़े होते!

बिहार की राजनीति में ‘जॉइंट किलर’ कहे जाने वाले जॉर्ज फर्नांडिस की मौजूदगी आज भी महसूस की जाती है. मंगलौर में जन्मे इस ईसाई नेता ने बिहार की जातिवादी राजनीति को चुनौती दी और नीतीश कुमार जैसे नेताओं को राजनीतिक गुर सिखाए. जेल में रहते हुए चुनाव जीतने वाले फर्नांडिस को जनता की ताकत का असल प्रतीक माना गया. राज्‍य की राजनीति को करीब से जानने वालों का मानना है कि अगर वे आज होते, तो बिहार की राजनीति का चेहरा और चरित्र पूरी तरह बदल चुका होता.;

वक्त के साथ सबकुछ नहीं तो काफी कुछ तो बदल ही जाता है. जो वक्त के साथ चल लिया वही मैदान में ‘सिकंदर’ कहलाता है. मैदान में बाकी जिंदा बचे या लाश बन चुके तमाम लोग इतिहास के पन्नों में सिकुड़-सिमट कर गायब हो जाते हैं. बीते कई दशक से अब तक बिहार की बेहद ‘पेचीदा’ कहिए या फिर ‘उलझी’ हुई राजनीति पर नजर दौड़ाई जाए. बीते वक्त की बिहार की राजनीति पर पैनी नजर दौड़ाई जाए तो, एक नाम जरूर आज भी जिंदा है जॉर्ज फर्नांडिस.

मंगलौर (कर्नाटक) के मछुआरा परिवार और पादरी (ईसाई समुदाय-जाति) कौम में जन्मे जॉर्ज फर्नांडिस. जिन्होंने दक्षिण भारत में जन्म लेने के बाद जब, बिहार की राजनीति में अपना खूंटा जाकर गाड़ा, तो वह वहां पॉलिटिक्स की दुनिया में ‘जॉइंट-किलर’ के नाम से चर्चित हो गए. वही जाइंट-किलर जॉर्ज फर्नांडिस जिन्होंने बिहार से दिल्ली तक खोदे गए राजनीति के अखाड़ों में मौजूद विरोधियों को न जीने दिया न मरने ही दिया.

जॉर्ज फर्नांडिस के सामने आज कहां होते नीतीश?

वही जॉर्ज फर्नांडिस जिन्होंने बिहार में उस जमाने से लेकर अब तक फैली, ऊंची जाति-नीची जाति, अगड़ी-पिछड़ी जाति, राजपूत-भूमिहार की राजनीति पर लंबे समय के लिए ‘ब्रेक’ लगाए रखा. वही जॉर्ज फर्नांडिस जिनकी संगत में रहकर आज बिहार से लेकर दिल्ली तक ‘गठजोड़’ की राजनीति के ‘कॉकटेल’ में पूरी तरह समाए या कहिए डूबे बैठे हैं, राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. सोचिए आज अगर बिहार के राजनीतिक अखाड़े में जॉर्ज फर्नाडिस सीना तानकर कहीं दूर से भी खड़े दिखाई दे रहे होते तब, कहां होती आज के बिहार की राजनीति और कहां होता सूबे के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक वर्तमान और भविष्य?

जॉर्ज फर्नांडिस की ‘हनक’ हलकी न होती तो...

अब जब आगामी दो-तीन महीने में ही बिहार में राज्य विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट सुनाई देने ही लगी है. तब इस तरह के सवाल जेहन में आना और जॉर्ज फर्नांडिस जैसे राजनीति की ‘जॉइंट-किलर’ समझी जाने वाली शख्शियत को याद करना जरूरी है. इन्हीं तमाम बातों पर बेबाक चर्चा के लिए “स्टेट मिरर हिंदी” (State Mirror Hindi) के नई दिल्ली में मौजूद एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन ने बात की बिहार में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बालयोगी (Patna Journalist Mukesh Bal Yogi) से. पत्रकारिता की नजर से बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड की राजनीति पर बीते कई साल से पैनी नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बालयोगी बोले, “अगर बिहार और देश के राजनीतिक पटल पर जॉर्ज फर्नांडिस के सितारे की रोशनी कहिए या फिर चमक हल्की या फीकी न पड़ी होती, तो शायद आज के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार किसी और ही आलम में कहीं होते.

नीतीश कुमार कहां होते मैं नहीं जानता

नीतीश कुमार आज कहां होते? मैं यह बताना नहीं चाहता हूं. हां, मैं इतना कह सकता हूं कि जॉर्ज की संगत ने ही नीतीश कुमार को भारत के रेलमंत्री (India Rail Minister) से लेकर बिहार (Bihar Chief Minster) के चीफ मिनिस्टर की कुर्सी तक पहुंचने का रास्ता बनाया या गुर सिखाए, यह जरूर कह सकता हूं. अब यह बात नीतीश कुमार जी आज की तारीख में मानते हैं नहीं मानते हैं. कितनी मानते हैं, उनके दिल-मन में जॉर्ज फर्नांडिस साहब के प्रति क्या और कैसी भावना है? इन सब सवालों का जवाब तो उन्हें (नीतीश कुमार) ही मालूम होगा. हां, जो मैंने अपनी आंख से देखा और कानों से सुना उसके मुताबिक तो आज, जॉर्ज फर्नांडिस की मौजूदगी में शायद नीतीश कुमार साहब अपने अस्तित्व को बचाने और अपनी पहचान बनाने की जद्दोजहद से जरूर जूझ रहे होते. यह मैं नहीं कह रहा हूं. बिहार की मौजूदा राजनीति में दिल्ली तक मची उठा-पटक से सब जाहिर है.”

 

 

हथकड़ी लगे पोस्टर ने चुनाव जितवा दिया

जो जॉर्ज फर्नांडिस बाहरी (मंगलौर, कर्नाटक) और ईसाई जाति-समुदाय के होने के बाद भी, बिहार की अगड़-पिछड़ी, जाति-पांति, राजपूत-भूमिहार की ‘राजनीति’ की बिसात को ‘फटे हुए कागज की मानिंद’ फैला या बिखरा देते हैं. जो जॉर्ज फर्नांडिस इंदिरा गांधी द्वारा जेल में जबरिया ही ठूंस दिए जाने के चलते, अपने चुनाव क्षेत्र मुजफ्फरपुर का दौरा तक नहीं कर सके थे. जिन जॉर्ज फर्नांडिस की हाथों में हथकड़ियां तस्वीरें उनके चुनाव प्रचार का बिहार में सबसे प्रभावी-ताकतवर ‘पोस्टर’ बन गया था. मुजफ्फरनगर चुनाव में जिन जॉर्ज फर्नांडिस की जेब से जनता ने उनके समर्थकों ने, उन्हें उनकी जेब से फूटी कौड़ी भी खर्च नहीं करने दी? क्या ऐसे जॉर्ज फर्नांडिस को आज के बिहार की राजनीति में कहीं कोई जगह देने को राजी होता?

जॉर्ज के सामने खड़े होने का सलीका चाहिए था

स्टेट मिरर हिंदी के पूछने पर बिहार राज्य पुलिस सेवा के रिटायर्ड आईजी जितेंद्र मिश्र कहते हैं, “जिस तरह गैर-बिहारी होने के बाद जॉर्ज फर्नांडिस साहब बिहार की राजनीति में आकर जम गए. वह सब कर पाना भारत में हर किसी के बूते की बात नहीं है. आज उनकी अनुपस्थिति में भले ही चाहे कोई कुछ भी लंबी-ऊंची-ऊंची डींगे क्यों न हांके या मारे. जॉर्ज फर्नाडिस के साथ बैठने की बात तो दूर की है. उनके सामने खड़े होने का भी सलीका चाहिए होता था. वह भड़-भड़-भागदौड़ वाली पॉलिटिक्स का कभी हिस्सा नहीं रहे. न ही उन्होंने अपने निजी स्वार्थों के लिए सत्ता-राजनीति का कभी दामन थामा.

जॉर्ज की मौजूदगी में राजनीति का चेहरा-चरित्र दोनों...

उनकी इमेज ही ऐसी थी कि वह जो करते हैं गरीब-मजलूमों, पीड़ितों, श्रमिकों के लिए करते हैं. तो ऐसे जॉर्ज फर्नांडिस जी को किसी की जरूरत क्यों होगी? उनकी जरूरत नेता से आम-आदमी तक तो थी. तो वह हर जायज के साथ खडे भी होते. हां, आज जब जॉर्ज फर्नांडिस जी नहीं है हमारे बीच तब लगता है कि अगर वह आज भी बिहार और देश की राजनीति में मौजूद होते, तब राजनीति का चरित्र और चेहरा दोनों ही एकदम आज की मौजूदा दशा से बदले हुए होते. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि आज अगर फिर कोई जॉर्ज फर्नाडिस जैसी किस्मत वाला ईमानदार और गरीबों के मसीहा के रूप में बिहार और देश को फिर कोई मिल जाएगा, तो जनता हर पार्टी और व्यक्ति विशेष का दामन छिटक कर उसके साथ हो लेगी.

जॉर्ज के जज्बे का लोहा इंदिरा गांधी ने भी माना

वर्तमान समय में मुश्किल यह है कि अपना जन-प्रतिनिधि चुनने के लिए मतदाता के पास बहुत ऑप्शन नहीं है. जो हैं उनमें से अधिकांश आड़े-तिरछे स्वार्थी चेहरा-चरित्र वाले पॉलिटिशियन हैं. ऐसे में अगर जनता मुझे वोट नहीं देगी तो उसे मेरे जैसे किसी दूसरे को न चाहते हुए भी वोट देने की मजबूरी होगी. जॉर्ज साहब के साथ तो वोट कोई खेला ही नहीं था. उनका अपना वोट कभी न कटने वाला वोट था. यही वजह थी कि बिहार की राजनीति में पांव रखते ही उन्होंने, जेल में रहते हुए भी रिकॉर्ड तीन लाख मतों से चुनाव जीतकर (मुजफ्फरपुर), इंदिरा गांधी जैसी शख्यित को 1970 के दशक में अहसास करा दिया था कि, जनता की ताकत के सामने जेल और दुरुपयोगी कानून की कुंठित ताकत हमेशा बौनी ही होती हैं. आज अगर बिहार की राजनीति में जॉर्ज फर्नांडिस की नाममात्र के लिए भी उपस्थिति होती तो राज्य की राजनीति में खुद को चमकता सितारा समझने वाले, कई तथाकथित स्टार-पॉलिटिशियंस का दीया बुझा पड़ा होता. मैं नाम किसी का नहीं लूंगा.”

नेताओं की भीड़ से अलग थे जॉर्ज फर्नांडिस

बिहार के मौजूदा राजनीतिक परिदृष्य पर प्रकाश डालते हुए वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बालयोगी कहते हैं, “दरअसल जॉर्ज फर्नांडिस राजनीति अपने लिए नहीं गरीबों-पिछड़ों जरूरतमंदों के लिए करते थे. उनका न कोई अपना था न दुश्मन. उन्हें जो जायज और जरूरतमंद लगता था. वह उसका साथ देते थे. आज नीतीश कुमार हों, ललन सिंह या फिर घर की चार दीवारी में सिमटी बैठी राबड़ी देवी-लालू प्रसाद यादव. जॉर्ज फर्नांडिस की मौजूदगी तक यह सभी हलकान रहे हैं. नीतीश कुमार थोड़ा बहुत इसलिए सुरक्षित बचे रहे क्योंकि जॉर्ज के साथ समता पार्टी से जुड़े थे.

वक्त के साथ सब बदलते गए और...

हां, इतना जरूर कह सकता हूं कि जैसे ही जॉर्ज फर्नांडिस का वक्त ने साथ छोड़ना शुरू किया. वैसे ही उन कई मक्कारों ने अपने अपने रास्ते धीरे से ही सही मगर जॉर्ज से अलग बनाना शुरू कर दिया था, जो राजनीति के अखाड़े में अपनी-अपनी किस्मत चमकाने के लिए जॉर्ज फर्नांडिस की ओर लार टपकाए देखते नहीं थकते थे. इनमें मैं यहां किसी का नाम नहीं लूंगा मगर, एक ऐसे भी पलटूराम नेता बिहार की राजनीति में निकल कर सामने आए, जो आज भी सिर्फ कुर्सी वह भी चीफ मिनिस्टर की कुर्सी के लिए, बिहार से दिल्ली तक सब कुछ करने को तैयार हैं.

लालू, राबड़ी नीतीश के अलावा जनता कहां जाए?

अपनी बात जारी रखते हुए मुकेश बालयोगी आगे कहते हैं, “फिर चाहे बिहार की जनता उन्हें कितना भी क्यों न कोसे-गरिआए. इससे उनकी चमड़ी पर कोई फर्क नहीं पड़ता है. जनता की मजबूरी यह है कि एक तरफ लालू प्रसाद यादव राबड़ी देवी का जंगलराज था. अब नीतीश कुमार जब सुशासन लाए तो उन्होंने सूबे में शराबबंदी लागू करके, पूरे सूबे मे ही शराब तस्करी के काले-कारोबार को किसी दावानल की मानिंद बढ़ा-पौंडा डाला है. अब सवाल यह है कि आखिर जनता या वोटर जाए तो कहां जाए? या तो उसकी किस्मत में लालू राबड़ी देवी लिखे हैं या फिर नीतीश कुमार जी. हां, इतना जरूर कह सकता हूं कि मौजूदा बिहार की राजनीति में जॉर्ज फर्नाडिंस की मौजूदगी, आज महारथी बने बैठे तमाम कथित बड़े मठाधीश-राजनेताओं का हुक्का-पानी बंद कर देती. और बिहार का रंग-रूप-चेहरा-चरित्र छवि सबकुछ एकदम अलग व बेहतर ही बने होते.”

Full View

Similar News