चिराग की चुप्पी में छिपा बड़ा दांव! BJP के लिए कितने फायदेमंद साबित होंगे ‘मोदी के हनुमान’

बिहार की सियासत में पिछले कुछ दिनों से एलजेपीआर प्रमुख चिराग पासवान की चुप्पी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. NDA के भीतर चल रहे समीकरणों के बीच चिराग का 'मौन' कहीं रणनीति का हिस्सा तो नहीं? जानिए एलजेपी रामविलास चीफ के इस कदम से बीजेपी को क्या फायदा होगा और विपक्ष को कितना नुकसान हो सकता है?;

( Image Source:  ANI )
Curated By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 8 Oct 2025 4:00 PM IST

बिहार चुनाव 2025 जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में अंदरूनी खींचतान और समीकरण तेजी से बदल रहे हैं. ऐसे में एलजेपी रामविलास के अध्यक्ष चिराग पासवान की रहस्यमयी चुप्पी चर्चा में है. कभी खुद को 'मोदी का हनुमान' कहने वाले चिराग का इस वक्त बयानबाजी से बचना क्या एक सोची-समझी चाल है? या फिर वे अंतिम समय में बड़ा राजनीतिक दांव खेलने की तैयारी में हैं.

चिराग पासवान की चुप्पी के मायने

चिराग पासवान पिछले कुछ समय से किसी बड़े राजनीतिक बयान से दूरी बनाए हुए हैं. वे न तो सीट शेयरिंग को लेकर कोई टिप्पणी कर रहे हैं, न ही बीजेपी या जेडीयू के खिलाफ कोई तीखा रुख दिखा रहे हैं. जानकारों का मानना है कि उनकी यह ‘साइलेंट पॉलिटिक्स’ एनडीए के भीतर बड़ी रणनीति का हिस्सा है. वहीं, एनडीए गठबंधन में शामिल बीजेपी के सहयोगी दल और विरोधी दल यह समझ नहीं पा रहे हैं कि चिराग का इरादा क्या है? ऐसा इसलिए कि सीएम नीतीश कुमार, चिराग के रुख पर जनसुराज पार्टी के प्रमुख प्रशांत किशोर, तेजस्वी यादव यहां तक कि कांग्रेस की भी नजर कुछ हद तक उनके रुख टिकी हुई है.  

दरअसल, चिराग पासवान ने बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में डिमांड के अनुरूप कम सीटें मिलने पर एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ा था. उन्होंने 135 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. केवल एक सीट पर उनके प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल हुए थे. जेडीयू को उनकी इस रणनीति की वजह से जेडीयू को करीब डेढ़ से दो दर्जन सीटों पर नुकसान हुआ था.

 BJP के लिए क्यों फायदेमंद चिराग

साल 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने भले ही अलग राह पकड़ी थी, लेकिन उनके उम्मीदवारों ने नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को भारी नुकसान पहुंचाया था, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से बीजेपी को फायदा हुआ. इस बार यदि एलजेपी (रामविलास) NDA के साथ मजबूती से खड़ी रहती है, तो बीजेपी को दलित और युवा वोटरों में बड़ा लाभ मिल सकता है. पिछली बार बिखरे वोट इस बार एकतरफा एनडीए की तरफ जाएंगे.

30 सीटों पर बीजेपी को फायदे की उम्मीद

बिहार में पासवान (दलित) वोटर करीब 6-7 प्रतिशत हैं, जो 30 से ज्यादा सीटों पर निर्णायक प्रभाव रखते हैं. चिराग का युवा, ऊर्जावान और मोदी-भक्त चेहरा इस वर्ग में लोकप्रिय है. पहले यह वोट कुछ हद तक आरजेडी और लोजपा (पारस गुट) में बंटा था,

लेकिन इस बार मोदी का नाम जोड़ने से वोट का ध्रुवीकरण संभव है. यानी बीजेपी को पासवान वोटों का लगभग पूरा ट्रांसफर मिल सकता है.

‘मोदी का हनुमान’ कितना फायदेमंद

चिराग पासवान ने पांच साल पहले खुद को 'मोदी का हनुमान' कहा था. इस बयान ने उन्हें बीजेपी समर्थक चेहरा बना दिया. बीजेपी के लिए यह छवि चुनावी तौर पर फायदेमंद साबित हो सकती है. चिराग की हनुमान वाली इमेज बीजेपी समर्थक वोटरों में विश्वास और भावनात्मक जुड़ाव पैदा करती है. प्रचार के दौरान जब मोदी और चिराग साथ मंच पर होंगे, तब 'डबल करिश्मा' (मोदी + युवा चेहरा) का असर युवाओं और दलित वोटरों पर दिखेगा.

क्या चाहते हैं चिराग?

एलजेपीआर और बीजेपी के बीच सीट बंटवारे को लेकर लगातार बातचीत जारी है. चिराग पासवान 243 सीटों में से 40 सीटों की मांग कर रहे हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने 5 में से 5 सीट जीती थीं. इस आधार पर उनका दावा है कि एलजेपीआर को अधिक सीटें मिलनी चाहिए. बीजेपी कथित तौर पर अधिकतम 25 सीटें देने के पक्ष में है.' वहीं चिराग की पार्टी के नेताओं को नाम बताने की शर्त पर कहना है कि राजनीति में दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं.' इसलिए, इस तरह का गठबंधन पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता.

चिराग पासवान चाहते हैं कि उनकी पार्टी को 'क्वालिटी सीटें' मिले. उनका कहना है, 'मैं सार्वजनिक मंच पर सीटों का नाम नहीं बताऊंगा, क्योंकि वह नैतिक रूप से गलत होगा.'

फिर चिराग पासवान ने ‘अबकी बार, युवा बिहारी’ का नारा दिया है, जो बीजेपी के लोकसभा चुनाव वाले नारे से मिलता-जुलता है. इससे उन्होंने खुद को नीतीश कुमार के संभावित उत्तराधिकारी के रूप में पेश करने की कोशिश की है. LJP की रणनीति अब पासवान को राज्य में मजबूत नेता के रूप में स्थापित करने पर केंद्रित है.

विपक्ष के लिए मुश्किल क्यों?

आरजेडी और कांग्रेस गठबंधन के लिए चिराग की चुप्पी और संभावित रणनीति परेशानी का सबब बन रही है. अगर एनडीए में सीट बंटवारा सुचारू रहा, तो एलजेपीआर के उम्मीदवार कई सीटों पर विपक्षी वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं.

NDA में चिराग की भूमिका

बीजेपी चाहती है कि चिराग को एनडीए के 'दलित चेहरा' के रूप में प्रोजेक्ट किया जाए. वहीं, चिराग अपने पिता रामविलास पासवान की विरासत को एक नए अंदाज में आगे बढ़ाने की तैयारी में हैं. उनकी चुप्पी के पीछे गठबंधन के भीतर बड़ी डील या रणनीतिक टाइमिंग भी हो सकती है.

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