छठ पर बिहार लौटे वोटर NDA या RJD में से किसको देंगे वोट? SIR से किसका होगा फायदा, क्या है पिछला रिकॉर्ड?

छठ पर्व के दौरान लाखों प्रवासी बिहार लौटते हैं. यह महज सामाजिक मेलजोल नहीं बल्कि हर पांच साल पर राजनीतिक शक्ति दिखाने का बड़ा अवसर भी होता है. ऐसा इसलिए कि बिहार विधानसभा का चुनाव 2005 से छठ महापर्व के आगे या पीछे होता है. ऐसे बिहार लौटे प्रवासी मतदाता मतदान भी करते हैं. हर बार जीत और हार को प्रभावित करते हैं. इस बार एसआईआर के तहत मतदाता सूची तैयार हुआ है, जिसका असर भी देखने को मिल सकता है.;

छठ महापर्व बिहार वालों का सबसे बड़ा पर्व है. यह बिहार की आत्मा, सूर्य की आराधना, और एक ऐसा त्योहार जो हर घर को जोड़ता है, लेकिन छठ सिर्फ एक धार्मिक रिवाज भर  नहीं है. इसके पीछे एक राजनीतिक आयाम भी छिपा है. बिहार छोड़कर शहरों—दूरदराज इलाकों में बसे लाखों लोग इस त्योहार पर अपने पैतृक गांव लौटते हैं. इस दौरान, उनका मतदाता दर्जा, वोटिंग की तैयारी और संपर्क रुकावटें सब मिलकर चुनावी परिणाम को प्रभावित करत सकती हैं. आइए, जानते हैं, प्रवासी बिहार मतदाता चुनाव को कैसे प्रभावित करते हैं? 

बिहार के सियासी जानकारों का कहना है कि चुनाव छठ पर्व के करीब यानी 28 अक्तूबर के दो से तीन दिन के भीतर करवाए जाते तो बेहतर होता, क्योंकि प्रवासी बिहारियों को मत देने का मौका मिलता. लेकिन, चुनाव आयोग ने अब जब छठ के एक हफ्ते बाद चुनाव करवाने की घोषणा की है, इससे बिहार के बाहर अन्य प्रदेशों में रहने वाले या काम पर जाने वाले लोगों के लिए रुक कर वोट डालने में मुश्किल हो सकती है. ऐसा इसलिए कि लोगों की अपने काम धंधे होते हैं, बच्चों के स्कूल और परीक्षाएं और वयस्कों की नौकरियां होती हैं, ऐसे में जो प्रवासी आएंगे वह बिना मतदान में हिस्सा लिए ही वापस लौटने को आतुर रहेंगे.

चुनावी परिणाम को बदलने की क्षमता

बिहार में राजनीतिक दलों के आंकड़ों में करीब 3 से 5 करोड़ लोग बिहार से बाहर प्रवास करते हैं. इनमें से अधिकांश संख्या में लोग छठ महापर्व मनाने के लिए बिहार लौटते हैं.  एक विधानसभा सीट में अक्सर विजेता और उपविजेता के बीच कुछ हजार मतों का अंतर होता है. यदि प्रत्याशियों को 5,000–10,000 मतों का अंतर है, और उस क्षेत्र में छठ लौटकर 3,000–4,000 प्रवासी मतदान करें तो यह अंतर चुनाव का रुझान को बदल सकता है.

'पॉलिटिकल फोर्स का काम करते हैं प्रवासी बिहारी

छठ पर बिहार लौटने वाले प्रवासी मतदाता अधिक जागरूक होते हैं. वे स्थानीय शिकायतों, विकास योजनाओं, स्वास्थ्य और रोजगार पर केंद्रित सवाल लेकर आते हैं. उसी आधार पर मतदान करते हैं. उनका वोट प्रत्याशियों के लिए 'प्रत्याशा वोट' हो सकता है. यानी जो नेता व प्रत्याशी वादे पूरे करें, उन पर विश्वास करने वाला वोट. ऐसे में छठ में घर लौटने वाले प्रवासी, इतने बड़े पैमाने पर होते हैं, जो चुपचाप चलने वाला 'पॉलिटिकल फोर्स' का काम करते हैं. यदि उनकी मतदाता स्थिति सही तरह से संरक्षित हो और उन्हें मतदान में सुविधा मिले तो यह शक्ति चुनाव के रुझान बदल सकती है.

छठ पूजा का सियासी कनेक्शन

छठ पूजा के करीब चुनाव होने पर सियासी गणित बदल जाता है. फरवरी 2005 में हुए चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिल सका, इसलिए उस साल दोबारा अक्टूबर में चुनाव कराए गए थे. फरवरी में आरजेडी को 75, जेडीयू को 55, बीजेपी को 37 जबकि लोक जनशक्ति पार्टी को 29 सीटें मिली थीं. जब अक्टूबर-नवंबर में हुए मतदान में यही आंकड़ा बदल गया. जेडीयू को 88, बीजेपी को 55 सीटें मिलीं जबकि आरजेडी 54 सीटों पर सिमट गई. छठ पर्व के समय का मतदान जेडीयू-बीजेपी के लिए फायदेमंद रहा. अगले विधानसभा चुनावों में भी यही मिजाज देखने को मिला.

प्रवासी मतदाताओं का मतदान का रुझान ज्यादा

2005 में करीब 45 फीसदी मतदान दर्ज किया गया था लेकिन 2010 में करीब 7 फीसदी वोट शेयर बढ़कर 52 फीसदी हो गया. 2015 में त्योहारी चुनाव होने पर फिर 4 फीसदी वोट शेयर बढ़ा तो 2020 में वोट शेयर बढ़कर 57 फीसदी हो गया. इस साल एनडीए को 125 सीटें मिलीं और महागठबंधन को 110 सीटें मिल सकीं. 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में बहुमत के लिए 122 सीटों की जरूरत होती है. 2025 विधानसभा चुनाव में मामला केवल छठ पर निखरने वाली सियासी छटा भर नहीं है. इस बार बिहार में मतदान के लिए चुनाव आयोग बड़े परिवर्तन की मुनादी कर चुका है.

SIR को किसे मिलेगा लाभ?

विपक्षी दलों के नेताओं में तेजस्वी यादव, राहुल गांधी ने एसआईआर को लेकर वोट चोरी का बड़ा मुद्दा बनाया है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर दिखा. आधार मान्य हुआ. नई सूची में 21 लाख नए मतदाता जोड़े गए. करीब 69 लाख मतदाताओं के वोट कट गए. ये सारे समीकरण क्या गुल खिलाते हैं, यह जानना इस बार दिलचस्प रहेगा. देखना होगा कि इस बार छठ त्योहार और एसआईआर दोनों का बिहार चुनाव पर कैसा प्रभाव पड़ेगा है.

ट्रेंड क्या है?

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बाहर रहने वाले मतदाताओं में अब तक ज्यादातर एनडीए समर्थक होते रहे हैं. पिछले दो दशक के दौरान जब छठ महापर्व के आसपास मतदान हुआ, तो यह एनडीए यानी JDU-BJP गठबंधन के लिए लाभदायक रहा. बिहार चुनाव विश्लेषणों में आमतौर पर यह माना जाता रहा है कि प्रवासी बिहारियों के पास 'बदलाव की उम्मीद' या 'विकास' वाले एजेंडे पर वोट करते हैं. वे राष्ट्रीयदलों को महत्व देते हैं.

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