ओवैसी व प्रशांत किशोर में राजनीतिक समझ का बड़ा फर्क, न तो प्रशांत किसी दल में जाएंगे न ही कोई दल उन्हें बुला रहा है! क्यों?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले प्रशांत किशोर एक बार फिर चर्चा में हैं, लेकिन न तो वे किसी गठबंधन में शामिल होंगे और न ही कोई दल उन्हें बुला रहा है. ओवैसी जैसे अनुभवी नेता को आरजेडी नकार चुका है, ऐसे में किशोर की जनसुराज पार्टी की संभावनाएं कमजोर दिखती हैं. राजनीतिक अनुभव, भरोसे की कमी और व्यवहारिक सीमाएं उन्हें अलग-थलग कर रही हैं. उनकी महत्वाकांक्षा और रणनीति, दोनों ही जमीन से कटे नजर आते हैं.;

By :  संजीव चौहान
Updated On : 11 July 2025 9:09 PM IST

बिहार राज्य आगामी विधानसभा चुनाव (Bihar Vidansabha Election-2025) की ओर ज्यों-ज्यों बढ़ रहा है. त्यों-त्यों वहां राजनीतिक (Bihar Politics), प्रशासनिक, चुनाव आयोग (Election Commission of India), कोर्ट-कचहरी, पार्टी-पॉलिटिक्स की सरगर्मियां भी बढ़ती जा रही हैं. इस सबके बीच अब इस वक्त अगर बिहार की राजनीति में कुछ बाकी बचा है तो वह है 'दल-बदलूगिरी'. मतलब किस पॉलिटिकल-पार्टी का कौन नेता मतलबपरस्ती के लिए किस ‘राजनीतिक-दल’ की गोद में जाकर बैठेगा? भले अंदर ही अंदर यह सब शुरू भी हो चुका होगा. इसमें शक नहीं है. हां, दल-बदलूगिरी का यह 'डर्टी-गेम' फिलहाल खुलकर तो शुरू नहीं हुआ है.

कोई बात नहीं यह डर्टी गेम अगर अभी शुरू नहीं हुआ है तो कुछ दिन बाद शुरू होना तय है, होगा जरूर मगर चाहे कुछ भी हो जाए. क्योंकि भारत में किसी भी राज्य के चुनाव बिना गठबंधन, साझेदारी, दल-बदल की राजनीति के तो संपन्न हो नहीं सकते हैं. ऐसे इन साम-दाम-दण्ड-भेदों के भी अगर भारत में चुनाव होने लगे तब फिर काहे के चुनाव और कैसे चुनाव किसके चुनाव कैसी राजनीति. भारत के परिप्रेक्ष्य में तो राजनीति वही है जिसमें गठजोड़, साझेदारी, दल-बदलू नीति जरूर घुसी हो.

नीतीश के पास लुटाने को सरकारी-खजाना

खैर नीतीश कुमार भाजपा के साथ मिलकर अपनी कुर्सी बचाने में जुट गए हैं. जो योजनाएं उन्होंने अपने बीते 20 साल के मुख्यमंत्रित्वकाल में बिहार की जनता के सामने अब तक नहीं परोसीं वह सब 'लोक-लुभावनी' लाभकारी योजनाओं की भी नीतीश बाबू आजकल आंधी में झड़ते हुए आमों की तरह से लाइन लगाकर कर रहे हैं. आखिर चुनाव जीतना है. उनकी हुकूमत है. उनके पास सरकारी खजाना है जनता के ऊपर खर्च करने के लिए. और फिर अगर सरकारी खजाना नीतीश कुमार अपनी चीफ-मिनिस्टरी बचाने के लिए नहीं लुटाएंगे तब फिर उनके मुख्यमंत्री होने का उन्हें ही भला क्या फायदा?

नीतीश को टक्कर देने को तैयार ये दल

ऐसे में अब नीतीश कुमार को राजनीति के अखाड़े में संभावित हार का स्वाद चखाने के लिए उनके सामने चुनावी अखाड़े में बाकी बचे हैं, धुर-विरोधी राजनीतिक दल कांग्रेस, राजद और जनसुराज पार्टी. इन सबके पास मौजूदा वक्त में चुनाव में जनता के ऊपर लुटाने के लिए न तो सरकारी खजाना है. न ही जनता के ऊपर लुटाने के लिए और न ही जिनके पास सरकारी ताकत है. ताकि उसका बेजा इस्तेमाल करके जनता को प्रभावित किया जा सके. खैर, बिहार की मौजूदा राजनीति में अपने सुनहरे भविष्य की तलाश में भटक रहे जनसुराज पार्टी वाले प्रशांत किशोर का क्या होगा? क्या सत्ता का स्वाद चखने के लिए वह नीतीश कुमार की ही तरह किसी दल का दमखम हासिल करने के लिए किसी के साथ गठबंधन कर सकते हैं?

बिहार में राजनीतिक-जमीन तलाशते प्रशांत किशोर

जनसुराज पार्टी के जो प्रशांत किशोर अब तक जिस जिस राजनीतिक दल के ‘गाइड’ या ‘निर्देशक’ बने उसी दल, और उसके नेता का राजनीतिक-भट्ठा बैठ गया है? इस बार के बिहार के सत्ता-सिंहासन के अखाड़े में प्रशांत किशोर खुद अपनी ही किस्मत आजमाने को उतर रहे हैं. ऐसे में जहां असादुद्दीन ओवैसी को राजद यानी आरजेडी ने ‘मिल-जुलकर’ चुनाव लड़ने के मसले पर दुत्कार कर भगा दिया हो. तो क्या बिहार की राजनीति का नया खिलाड़ी होने के नाते प्रशांत किशोर अपने राजनीतिक भविष्य की बेहतरी के लिए किसी दल के साथ साझेदारी करेंगे?

 

पूछने पर बिहार के वरिष्ठ पत्रकार और जॉर्ज फर्नांडिस जैसे कद्दावर नेता के पूर्व सहयोगी मुकेश बालयोगी कहते हैं, “पहले तो यह समझ लीजिए कि ओवैसी और प्रशांत किशोर की राजनीतिक करने के तौर-तरीकों में जमीन-आसमान का फर्क है. ओवैसी जहां सिर्फ वोट और मुस्लिम राजनीतिक करते हैं. वे राजनीति की नब्ज पलक झपकते पकड़ने के मास्टर हैं. कब कहां क्या करना है? किसके साथ राजनीतिक समीकरणों के मद्देनजर कब हाथ मिलाना है? यह ओवैसी बखूबी जानते हैं.”

प्रशांत किशोर जमीन की तलाश में भटक रहे

ओवैसी और प्रशांत किशोर के राजनीतिक अनुभव में जमीन-आसमान का फर्क है. प्रशांत किशोर दूर-दूर तक ओवैसी के आगे-पीछे कहीं नहीं टिकते हैं. सोच लीजिए कि आगामी विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर और उनकी जनसुराज पार्टी का क्या होगा जब, ओवैसी जैसे राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी तक को राजद प्रमुख लालू यादव ने अपने पास नहीं फटकने दिया. दरअसल प्रशांत किशोर एक ‘फ्लॉप-राजनीति-प्रबंधक’ का ठप्पा अपने ऊपर लगवा कर खुद के लिए राजनीति की जमीन तलाशने की बेजा जिद कहिए या हठ पाले हुए भटक रहे हैं. जोकि उनके किसी भी तरह से हित में हो ही नहीं सकता है.

अपनी राजनीतिक हैसियत प्रशांत किशोर जानते हैं

लेकिन यह पॉलिटिक्स करने का जो कीड़ा है न, यह जब किसी इंसान को काटने लगता है तो, उस इंसान को इस कीड़े से खुद को बार-बार कटवाने में ही शांति का अहसास होने लगता है. फिर चाहे ऐसे लालसावान इंसान के बदन में राजनीति की कीड़ा भले ही जहर कितना ही क्यों न भर दे. इससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है. प्रशांत किशोर का भी हाल कुछ इसी तरह का है. उनके सपने तो बड़े हैं. इन बड़े सपनों में कितने सपने और कैसे साकार होंगे? असल सवाल तो यह है. लालू प्रसाद यादव ने आगामी विधानसभा चुनाव में जब असदुद्दीन ओवैसी जैसे राजनीतिक खिलाड़ी को साथ लेने से साफ दुत्कार दिया. तो ऐसे में प्रशांत किशोर के बारे में किसी को कुछ बताने या समझाने की जरूरत नहीं है. प्रशांत किशोर ओवैसी के सामने राजनीति की सड़क पर कहां खड़े हैं? खुद प्रशांत किशोर को भी यह बात पता है.

एक नहीं, प्रशांत किशोर के साथ हैं कई समस्‍याएं

प्रशांत किशोर के साथ समस्याएं कई हैं. पहली, राजनीति करने के अनुभव की कमी. हर तबके के वोटर को अपनी ओर आकर्षित कर पाने की कलाकारी की कमी. हर-वर्ग की नब्ज न पकड़ पाने की विवशता. सामने वाले की ऊंची हैसियत देखकर खुद को उसी की तरह तुरंत बना डालने की मैली मंशा या हसरत. कम समय में सबकुछ हासिल कर लेने की अति-महत्वाकांक्षा. खुद के अलावा साथ चलने वाले किसी भी दूसरे इंसान पर आंख मूंदकर विश्वास न कर पाने की कमजोरी. हर किसी को शक की नजर से देखना. पिछड़े-ऊंचे के बीच खुलकर न सही तो दबी जुबान ही फर्क करने की कमजोरी. खुद के आगे किसी को भी अपने से कमतर ही आंकने में अपनी सफलता देखना...आदि-आदि. प्रशांत किशोर के अंदर यह तमाम अव्यवहारिक बातें कूट-कूट कर भरी हैं. यही वजह है कि प्रशांत किशोर को आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में न तो कोई दल उन्हें अपने गठबंधन में शामिल करेगा. और न ही प्रशांत किशोर किसी भी राजनीतिक दल के साथ गठबंधन में खुद को सहज ही महसूस कर सकेंगे. मतलब, भले ही प्रशांत किशोर का राजनीतिक भविष्य कितने ही ईंट-पत्थरों से भरा क्यों न पड़ा हो. मगर वह किसी के साथ अपने राजनीतिक भविष्य को संवारने की उम्मीद में गठबंधन करेंगे, या कोई उन्हें अपने दल में मिलाएगा, इसकी संभावना तो निर्मूल ही समझिए.

 

प्रशांत किशोर का अपना भला हो न हो मगर...

नई दिल्ली में मौजूद और स्टेट मिरर हिंदी से खास बातचीत में बिहार की राजनीति की नब्ज पर बीते 5 दशक से हाथ रखकर उसे बेहद करीब से जानने-समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार कुमार नरेंद्र सिंह कहते हैं, “दरअसल बिहार में अगड़ा-पिछड़ा, गरीब-अमीर, जाति-पांति की राजनीति का जबरदस्त वर्चस्व रहा है. ऐसे में मुझे लगता है कि कहीं न कहीं जनसुराज पार्टी के सर्वेसर्वा प्रशांत किशोर अपना भला भले ही न कर सकें. हां, वह आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और उसके गठबंधन के लिए तो मुसीबत साबित हो ही सकते हैं.

बिहार में जनसुराज पार्टी BJP को दुखदायी हो सकती

क्योंकि जिस बिहार की राजनीति की नींव ही जाति-पांति, गरीब-अमीर, सवर्ण-पिछड़ा की बैसाखियों पर घिसट रही हो. वहां प्रशांत किशोर अपने लिए कुछ ज्यादा हासिल नहीं कर सकेंगे. हां, प्रशांत किशोर चूंकि सवर्ण और उच्च शिक्षित वर्ग तक ही सिमट कर रह गए हैं. लिहाजा ऐसे में वह यानी जनसुराज पार्टी बिहार विधानसभा 2025 के चुनाव में प्रशांत किशोर बीजेपी और उसके समर्थित दल का कुछ वोट प्रतिशत तो काटेंगे ही. भले ही इसके बाद भी वह बिहार की राजनीति में तो इस इलेक्शन में खुद बहुत कुछ हासिल न कर सकें.”

(पटना, बिहार से वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बालयोगी और नई दिल्ली में मौजूद बिहार की राजनीति पर बीते 50 साल से पैनी नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार कुमार नरेंद्र सिंह से विशेष बातचीत के आधार पर)

Full View

Similar News