कैसे हुआ ब्रह्मपुत्र घाटी में अहोम साम्राज्य का उदय? सिउ-का-फा बने असम की ऐतिहासिक विरासत के निर्माता

सिउ-का-फा केवल एक विजेता ही नहीं थे, बल्कि एक ऐसे शासक भी थे जिन्होंने स्थानीय भाषाओं और संस्कृति का सम्मान किया. उनके शासनकाल में 39 वर्षों तक ब्रह्मपुत्र घाटी में अहोमों की सत्ता मजबूत हुई. अहोम साम्राज्य की स्थापना सिउ-का-फा की दूरदर्शिता और नेतृत्व कौशल का प्रमाण है.;

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Edited By :  विशाल पुंडीर
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13वीं शताब्दी में असम में एक दूरदर्शी राजकुमार का आगमन हुआ, जिसने अहोम साम्राज्य की नींव रखी और छह शताब्दियों तक चलने वाले अहोम शासन का मार्ग प्रशस्त किया. सिउ-का-फा की दूरदर्शिता, राजनयिक कौशल और सामरिक प्रतिभा ने ब्रह्मपुत्र घाटी के इतिहास को एक नया आयाम दिया. उनके योगदान की भव्यता इतनी अद्वितीय थी कि आज भी अहोम शासन की विरासत लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती है.

सिउ-का-फा केवल एक विजेता ही नहीं थे, बल्कि एक ऐसे शासक भी थे जिन्होंने स्थानीय भाषाओं और संस्कृति का सम्मान किया. उन्होंने अपनी भाषा थोपने के बजाय लोगों की भाषा को अपनाया और धार्मिक ग्रंथों तथा प्रशासनिक दस्तावेजों में इसका प्रयोग सुनिश्चित किया.

सिउ-का-फा का आगमन और अभियान

ऊपरी बर्मा के मौलुंग में जन्मे सिउ-का-फा ने 1215 ईस्वी में अपनी मातृभूमि छोड़ दी और 2 दिसंबर 1228 को ब्रह्मपुत्र घाटी में प्रवेश किया. उनके साथ 300 घुड़सवार, 1,080 सैनिक, कई अधिकारी और शाही पुजारी आए. सिउ-का-फा अपनी पत्नियों को साथ नहीं लाए, बल्कि विजय प्राप्त क्षेत्रों से महिलाओं को अपने साथ लाया. सिउ-का-फा ने जब सौमार की भूमि पर आक्रमण किया, तो मोरान, मटाक, बोराही और छोटे शासक दलों को अपने सामरिक कौशल और बुद्धिमत्ता के बल पर समझौते के लिए बाध्य किया.

अहोम साम्राज्य की स्थापना

सिउ-का-फा ने अपने छोटे से राज्य का नाम मुंग-दुन-सुन-खाम रखा, जिसका अर्थ था सुनहरे बगीचों से भरा देश. उन्होंने 1253 में चरैदा पर कब्जा कर अपनी राजधानी स्थापित की. उनके शासनकाल में 39 वर्षों तक ब्रह्मपुत्र घाटी में अहोमों की सत्ता मजबूत हुई और इस अवधि में अनेक अनुष्ठानों और प्रशासनिक संरचनाओं को लागू किया गया.

सांस्कृतिक और भाषाई योगदान

सिउ-का-फा ने स्थानीय भाषाओं और संस्कृति का सम्मान किया. उन्होंने केवल अपनी भाषा का प्रयोग धार्मिक ग्रंथों में किया, लेकिन प्रशासन और आम जीवन में स्थानीय भाषा का सम्मान करते हुए लोगों के विश्वास और सहयोग को सुनिश्चित किया. उनके इस दृष्टिकोण ने अहोम साम्राज्य को सांस्कृतिक दृष्टि से भी मजबूत बनाया.

सिउ-का-फा की विरासत

अहोम साम्राज्य की स्थापना सिउ-का-फा की दूरदर्शिता और नेतृत्व कौशल का प्रमाण है. यदि उन्होंने यह कदम नहीं उठाया होता, तो आज असम में अहोम वास्तुकला और संस्कृति के अद्भुत चमत्कार मौजूद नहीं होते. 1268 में उनकी मृत्यु हुई, लेकिन उनकी विरासत आज भी ब्रह्मपुत्र घाटी में अहोम संस्कृति की छाप छोड़ती है.

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