कोर्ट ने भेजा नोटिस, 85 साल के बेटे ने 50 साल बाद चुकाया पिता का कर्ज, अदालत में इमोशनल हुए लोग
असम के धुबरी जिले से एक ऐसा किस्सा सामने आया है जिसने इंसानियत और रिश्तों की मिसाल कायम कर दी. यहां 85 साल के बुजुर्ग बेटे ने अपने पिता का 50 साल पुराना कर्ज चुकाया. यह मामला तब सामने आया जब कोर्ट ने पुराने केस को लेकर नोटिस भेजा. जब वह कोर्ट पहुंचे, तो उसने अपने पिता का कर्ज चुकाने को कहा गया, जो उन्होंने बकाया राशि दी.;
जिंदगी में कुछ पल ऐसे आते हैं जो बीते वक्त की परतों को हिला देते हैं. धुबरी के 85 साल के तइयब अली के लिए ऐसा ही एक पल तब आया जब उन्हें अपने दरवाजे पर एक अजीब-सा नोटिस मिला. नोटिस उनके नाम पर नहीं था, बल्कि उनके पिता मोहम्मद इस्हाक मियां के नाम पर, जो करीब 50 साल पहले इस दुनिया को छोड़ चुके थे.
यह नोटिस जिला एवं सत्र न्यायाधीश न्यायालय, धुबरी की ओर से आयोजित राष्ट्रीय लोक अदालत से भेजा गया था. तारीख थी 13 सितंबर 2025 और उसमें मृतक पिता को पेश होने के लिए बुलाया गया था, ताकि वह अपना कर्जा चुका सके. 85 साल की उम्र में बेटे ने अपने पिता का बकाया दिया.
कोर्ट ने भेजा मृतक के नाम पर नोटिस
तइयब अली की आंखें अविश्वास से चौड़ी हो गईं. अपने दिवंगत पिता का नाम कानूनी कागज़ पर देखकर वे अंदर तक हिल गए. उत्सुकता और जिम्मेदारी की भावना से भरे, वे शनिवार को कोर्ट पहुंचे. वहां जो सच्चाई सामने आई, वह उतनी ही हैरान करने वाली थी जितनी भावुक. दरअसल, उनके पिता के नाम पर एक मामूली केस लंबित था. मुद्दा था बैंक के करंट अकाउंट में न्यूनतम बैलेंस से जुड़ा एक विवाद. रकम थी महज़ 540 रुपये. यह फाइल दशकों से अलमारी की धूल खा रही थी और लोक अदालत में लंबित मामलों को निपटाने की कवायद के दौरान सामने आई.
बेटे ने चुकाए पिता के पैसे
किसी और के लिए यह मामला छोटा, तुच्छ और शायद हंसी का कारण बन सकता था. आखिर एक मृतक व्यक्ति के नाम पर 50 साल बाद 540 रुपये की अदायगी का क्या मतलब? लेकिन तइयब अली के लिए यह पैसे का नहीं, बल्कि पिता की जिम्मेदारी का सवाल था. न्यायालय में खड़े होकर, जब उनके पिता का नाम पुकारा गया, तो बुजुर्ग बेटे ने एक दृढ़ फैसला लिया. उन्होंने कहा 'मैं अपने पिता का कोई कर्ज अधूरा नहीं छोड़ सकता.' और उसी पल उन्होंने अपने पिता की ओर से 540 रुपये चुका दिए.
भावुक कर देने वाला पल
कोर्ट में बैठे लोग इस नजारे को देखकर भावुक हो उठे. वकीलों और अधिकारियों के लिए यह मामला अब सिर्फ कागज़ी प्रक्रिया नहीं रहा. यह एक बेटे की अटूट निष्ठा और अपने पिता के प्रति प्रेम का प्रतीक बन गया. एक अधिवक्ता ने टिप्पणी की, “यह 540 रुपये नहीं थे, यह उस बेटे की श्रद्धा थी जिसने समय की सीमाओं को पार कर दिया.”
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कर्ज का बोझ, यादों का भार
अक्सर हम सुनते हैं कि परिवार संपत्ति और पैसों को लेकर लड़ पड़ते हैं. लेकिन तइयब अली की कहानी एक अलग और अमूल्य संदेश देती है. उन्होंने दिखाया कि माता-पिता के प्रति सम्मान और जिम्मेदारी केवल जीवन तक सीमित नहीं होती, बल्कि मृत्यु के बाद भी निभाई जा सकती है.