10% और बढ़ी आबादी तो हाथ से निकल जाएगा असम, बांग्लादेश कनेक्शन पर बोले सीएम हिमंता; कहा- मैं पांच साल से कह रहा हूं
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने अवैध प्रवासन और बदलते जनसंख्यीय संतुलन को लेकर गंभीर चेतावनी दी है. उन्होंने कहा कि अगर बांग्लादेशी मूल की आबादी में 10 प्रतिशत और बढ़ोतरी हुई, तो असम अपने आप बांग्लादेश के प्रभाव में चला जाएगा. सीएम ने इसे “डेमोग्राफिक इन्वेज़न” बताते हुए कहा कि असम की मूल पहचान और अस्तित्व खतरे में है. यह बयान बांग्लादेशी नेताओं की विवादित टिप्पणियों, असम में जारी हिंसा और क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों के बीच आया है, जिसने पूर्वोत्तर भारत की राजनीति और भारत–बांग्लादेश संबंधों पर नई बहस छेड़ दी है.;
असम में एक बार फिर जनसंख्या, पहचान और सुरक्षा को लेकर बहस तेज़ हो गई है. मुख्यमंत्री Himanta Biswa Sarma का ताज़ा बयान न सिर्फ राज्य की आंतरिक राजनीति, बल्कि भारत–बांग्लादेश संबंधों और पूर्वोत्तर की भू-राजनीतिक संवेदनशीलता को भी सीधे छूता है. “अगर बांग्लादेशी मूल की आबादी 10 प्रतिशत और बढ़ी, तो असम अपने आप बांग्लादेश का हिस्सा बन जाएगा.” यह टिप्पणी जितनी चौंकाने वाली है, उतनी ही चेतावनी भरी भी.
सीएम सरमा का यह बयान ऐसे वक्त आया है जब बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता, सीमा पार बयानबाज़ी और असम के कुछ हिस्सों में हिंसक प्रदर्शन एक साथ सामने आ रहे हैं. एक तरफ वे जनसांख्यिकीय बदलाव को “अस्तित्व का संकट” बता रहे हैं, तो दूसरी ओर राज्य में कानून-व्यवस्था बनाए रखने की चुनौती भी सरकार के सामने है. इन दोनों मोर्चों को जोड़कर देखें, तो यह सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि आने वाले वर्षों की राजनीति और नीति की दिशा का संकेत है.
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10% और बढ़े तो असम का भविष्य तय: सीएम का अलर्ट
गुवाहाटी में एक कार्यक्रम के बाद मीडिया से बात करते हुए सीएम सरमा ने कहा कि असम में पहले ही करीब 40 प्रतिशत आबादी बांग्लादेशी मूल की है. यदि इसमें 10 प्रतिशत की और बढ़ोतरी होती है, तो असम “स्वतः” बांग्लादेश के प्रभाव क्षेत्र में चला जाएगा. उनका कहना था कि वे पिछले पांच वर्षों से लगातार इस मुद्दे को उठा रहे हैं, लेकिन इसे अब भी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा.
बांग्लादेशी नेता के बयान से बढ़ी चिंता
सीएम का बयान उस कथित टिप्पणी की पृष्ठभूमि में आया है, जिसमें बांग्लादेश की नवगठित नेशनल सिटिजन पार्टी (NCP) के नेता हसनत अब्दुल्ला ने भारत के पूर्वोत्तर को “अलग-थलग” करने और अलगाववादी तत्वों को समर्थन देने की बात कही थी. उन्होंने सिलीगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) को भारत की भौगोलिक कमजोरी बताया था. सरमा ने इसे हल्के में लेने से इनकार करते हुए इसे रणनीतिक चेतावनी करार दिया.
“डेमोग्राफिक इन्वेज़न” की थ्योरी
सीएम सरमा लंबे समय से असम में अनियंत्रित प्रवासन को “डेमोग्राफिक इन्वेज़न” कहते रहे हैं. उनके मुताबिक, अगर जनसंख्या का संतुलन इसी तरह बदला, तो असम की मूल पहचान खतरे में पड़ जाएगी. वे मानते हैं कि यह सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और राजनीतिक अस्तित्व का सवाल है.
मुस्लिम आबादी 50% पार करने पर चेतावनी
सरमा यह भी कह चुके हैं कि यदि असम में मुस्लिम आबादी 50 प्रतिशत से ऊपर चली गई, तो अन्य समुदाय “जीवित नहीं रह पाएंगे.” उनके अनुसार, 2021 में मुस्लिम आबादी करीब 38% थी, जो 2027 तक 40% तक पहुंच सकती है, क्योंकि 1961 से अब तक हर दशक में 4–5% की स्थिर वृद्धि दर्ज की गई है.
1951 से 2025 तक: आंकड़ों से तर्क
सीएम ने जनगणना के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि 1951 में असम की कुल आबादी 80 लाख थी, जो अब बढ़कर 3.1 करोड़ हो चुकी है. लेकिन चौंकाने वाला दावा यह है कि मूल असमिया आबादी आज भी लगभग 70 लाख के आसपास है. शेष 2.4 करोड़, उनके अनुसार, प्रवासी हैं. सरमा का कहना है कि यही असंतुलन असम की राजनीति को दिशा देता है.
पहचान की राजनीति मजबूरी है, विकल्प नहीं
सरमा का तर्क है कि असम में पहचान की राजनीति कोई चुनावी रणनीति नहीं, बल्कि जीवित रहने की मजबूरी है. वे कहते हैं कि अगर यह मुद्दा नहीं उठाया गया, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए असम सिर्फ एक नाम बनकर रह जाएगा, जिसकी सांस्कृतिक आत्मा खत्म हो चुकी होगी.
पश्चिम कार्बी आंगलोंग में हिंसा
इसी बीच, पश्चिम कार्बी आंगलोंग जिले में दो दिनों से जारी हिंसक प्रदर्शनों में दो लोगों की मौत हो चुकी है. सीएम सरमा ने कहा कि वे हालात पर करीबी नजर रखे हुए हैं और शांति बनाए रखने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किए जाएंगे. उन्होंने एक्स (X) पर पोस्ट कर पीड़ित परिवारों के प्रति संवेदना जताई और हर संभव मदद का भरोसा दिया.
भारत–बांग्लादेश समीकरण पर असर
असम का जनसांख्यिकीय सवाल अब सिर्फ राज्य का नहीं रहा. बांग्लादेश से आए बयानों, सीमा सुरक्षा, आंतरिक हिंसा और पहचान की राजनीति ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीति से जोड़ दिया है. सीएम सरमा का बयान आने वाले समय में केंद्र–राज्य संबंधों, पूर्वोत्तर नीति और भारत–बांग्लादेश समीकरणों पर गहरा असर डाल सकता है.