Akshaya Tritiya 2025: अक्षय पात्र में कभी खत्म नहीं होता भोजन, आखिर क्यों भगवान कृष्ण ने इसे पांडवों को दिया था?

अक्षय पात्र का विशेष वरदान भगवान कृष्ण ने पांडवों को दिया था, ताकि वे वनवास के कठिन समय में भोजन के लिए परेशान न हों. भगवान कृष्ण ने यह सुनिश्चित किया कि जब भी पांडवों को भूख लगे, यह पात्र उन्हें पर्याप्त भोजन प्रदान करेगा. यह पात्र कभी खाली नहीं होता था, भले ही वह कितना भी भोजन क्यों न खा लें.;

Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 28 April 2025 6:05 PM IST

पांडवों को 13 वर्षों का वनवास करना था, जिसमें पहला साल विशेष रूप से अज्ञातवास (गुप्तवास) के रूप में था. इस दौरान पांडवों को अपनी असली पहचान छिपानी थी. पांडवों ने इस साल को बिताने के लिए अपनी पहचान छिपाई और विभिन्न रूपों में जंगलों में घूमते रहे. पांडवों के इस अज्ञातवास के दौरान उनकी पत्नी द्रौपदी भी उनके साथ थी.

अक्षय पात्र का इतिहास

अक्षय पात्र की कहानी महाभारत के वनवास और अज्ञातवासी काल से जुड़ी हुई है. पांडवों को अपने 13 वर्षों के वनवास के दौरान कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. वनवास के दौरान, पांडवों के पास संसाधनों की कमी थी और उन्हें भोजन की समस्या अक्सर होती थी. इसी समय भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों की मदद करने के लिए उन्हें अक्षय पात्र दिया था.

अक्षय पात्र का महत्व

अक्षय पात्र का विशेष वरदान भगवान कृष्ण ने पांडवों को दिया था, ताकि वे वनवास के कठिन समय में भोजन के लिए परेशान न हों. भगवान कृष्ण ने यह सुनिश्चित किया कि जब भी पांडवों को भूख लगे, यह पात्र उन्हें पर्याप्त भोजन प्रदान करेगा. यह पात्र कभी खाली नहीं होता था, भले ही वह कितना भी भोजन क्यों न खा लें.

द्रौपदी और अक्षय पात्र

जब पांडवों के साथ उनकी पत्नी द्रौपदी भी वनवास में थीं. एक दिन पांडवों को भूख लगी और द्रौपदी ने अक्षय पात्र से भोजन निकालने की कोशिश की, लेकिन उस दिन द्रौपदी ने एक अनोखी स्थिति का सामना किया. जैसे ही द्रौपदी ने अक्षय पात्र से भोजन निकाला, तो उसने देखा कि पात्र में एक भी दाना नहीं बचा है. यह देखकर द्रौपदी चिंतित हो गई. लेकिन फिर भगवान कृष्ण ने वहां आकर द्रौपदी को सांत्वना दी और उन्हें अपनी दिव्यता का एहसास कराया. कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि अगर वे पूरे मन से उन्हें पुकारें, तो यह पात्र फिर से भरेगा. द्रौपदी ने भगवान कृष्ण का ध्यान किया, और चमत्कारी रूप से अक्षय पात्र में पुनः भोजन आ गया. यह घटना उस समय पांडवों के लिए एक आशीर्वाद सिद्ध हुई.

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