क्या बद्रीनाथ में शंख बजाने से असुरों का होता है वास? जानें पवित्र धाम में क्यों नहीं बजाया जाता शंख
बद्रीनाथ का स्थान भगवान विष्णु के लिए अत्यंत प्रिय है. यहां पर भगवान विष्णु ने अपनी तपस्या से धरती पर शांति और समृद्धि की कामना की थी. बद्रीनाथ का मंदिर अब एक प्रमुख तीर्थ स्थल बन चुका है, जहां लाखों भक्त भगवान विष्णु के दर्शन के लिए आते हैं.

हिंदू धर्म में शंख बजाने का विशेष धार्मिक महत्व है. शंख को एक पवित्र आस्था और शक्ति का प्रतीक माना जाता है और इसे पूजा-अर्चना में विशेष रूप से उपयोग किया जाता है. शंख बजाने से मंदिर की वातावरण में एक दिव्य और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.
इसे विशेष रूप से भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु का शंख जिसे 'पद्मध्वज' भी कहा जाता है, उनकी दिव्य शक्ति का प्रतीक है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि बद्रीनाथ धाम में शंख नहीं बजाया जाता है. चलिए जानते हैं इसका कारण.
राक्षसों से जुड़ी है कहानी
पौराणिक कथा के मुताबिक, अगस्त्य मुनि राक्षसों का वध कर रहे थे. उस समय दो राक्षस अतापी और वतापी अपनी जान बचाने के लिए भागने लगे. अतापी ने मंदाकिनी नदी की मदद से अपनी जान बचाई, जबकि वतापी शंख के अंदर छिप गया. कहा जाता है कि अगर उस समय कोई शंख बजाता, तो असुर शंख से बाहर निकलकर भाग जाता. इसलिए, यह माना जाता है कि बद्रीनाथ में शंख नहीं बजाया जाता है, ताकि राक्षसों को फिर से जीवित होने का मौका न मिले.
बद्रीनाथ धाम का महत्व
भगवान विष्णु ने बद्रीनाथ में तपस्या करने का निर्णय लिया. उन्होंने अलकनंदा नदी के किनारे एक स्थान चुना और तपस्या में लीन हो गए. तपस्या के दौरान भगवान विष्णु को कठोर मौसम और ठंड से बचाने के लिए माता लक्ष्मी ने बद्री वृक्ष का रूप धारण किया और उनकी रक्षा की.
जब मां लक्ष्मी ने लिया वृक्ष का रूप
बद्री वृक्ष की छाया में भगवान विष्णु ने अपनी तपस्या पूरी की और बद्रीनाथ में रहने लगे. माता लक्ष्मी की भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने बद्रीनाथ में रहने का निर्णय लिया और माता लक्ष्मी के साथ वहीं रहने लगे.