मानसरोवर के पास है रहस्यों से भरा राक्षस ताल, महादेव के सबसे बड़े भक्त रावण से खास संबंध
एक पौराणिक कथा के अनुसार, रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत उठाने की चेष्टा करता है. जब वह विफल होता है, तो मानसरोवर झील के किनारे तप करता है और शिवजी को प्रसन्न कर लेता है. तब शिवजी उसे अतुल बल और शिवदर्शन का वरदान देते हैं.

जब सृष्टि की रचना आरंभ हो रही थी, तब भगवान ब्रह्मा जी ने अपने मन में एक ऐसी जगह की कल्पना की जहां सच्चे भक्त, देवता और योगी तपस्या कर सकें और ईश्वर के समीप जा सकें. उन्होंने अपनी मानस शक्ति (मन की शक्ति) से एक पवित्र झील की रचना की, जिसे "मानसरोवर" कहा गया.
यह झील भगवान शिव के निवास स्थान कैलाश पर्वत के पास स्थित है. कहा जाता है कि देवता, ऋषि-मुनि और सिद्ध योगी यहा. आकर स्नान करते हैं और ध्यान लगाते हैं. यह झील इतना पवित्र मानी जाती है कि इसके दर्शन मात्र से पापों का नाश हो जाता है. इस झील के पास राक्षस ताल मौजूद है, जिसका रावण से संबंध है.
राक्षस ताल पर किया था तप
मान्यता है कि लंका के राक्षस राजा रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए राक्षस ताल के तट पर वर्षों तक कठोर तपस्या की थी. इस दौरान उसने अपने सिर एक-एक कर काटकर शिव को अर्पित किए. रावण का यह तप शक्तिशाली लेकिन अहंकार से भरा हुआ था. कहा जाता है कि उस तप की नकारात्मक ऊर्जा आज भी इस ताल के आसपास मौजूद है.
शिव ने दिया रावण को वरदान
जब वह आखिरी सिर काटने ही वाला होता है, तब भगवान शिव प्रकट होते हैं और अत्यंत प्रसन्न होकर उसे वरदान देते हैं. शिव जी रावण को "चंद्रहास" नामक दिव्य तलवार देते हैं और उसकी भक्ति से इतने प्रसन्न होते हैं कि कैलाश पर्वत को रावण की भक्ति का प्रतीक भी माना जाता है.
झील के पास नहीं जाते तिब्बती लोग
तिब्बती लोग आमतौर पर राक्षस ताल के पास जाने से बचते हैं और इसके पीछे ये मान्यताएं हैं. झील के आसपास नकारात्मक ऊर्जा महसूस होती है, ध्यान लगाना मुश्किल होता है.कुछ लोगों को यहां भयावह सपने, अनजान आवाज़ें और मनोवैज्ञानिक बेचैनी होती है. तिब्बती लामाओं का कहना है कि यहां कोई दैवीय शक्ति नहीं, बल्कि पुरानी राक्षसी ऊर्जा आज भी सक्रिय है. यह भी मान्यता है कि जो लोग ज्यादा समय वहां बिताते हैं, वे मानसिक रूप से विचलित हो सकते हैं.