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वास्तु शास्त्र में सभी 8 दिशाओं का क्या है महत्व, जानिए किस दिशा में कौन सी चीजों का होना शुभ

वास्तु शास्त्र में घर की हर दिशा का विशेष महत्व माना गया है. माना जाता है कि सही दिशा में रखी गई वस्तुएं जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, सुख-समृद्धि और मानसिक शांति लेकर आती हैं, जबकि दिशाओं का गलत संतुलन समस्याओं और तनाव का कारण बन सकता है. इसलिए घर, ऑफिस या किसी भी स्थान का निर्माण करते समय आठों दिशाओं का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है.

वास्तु शास्त्र में सभी 8 दिशाओं का क्या है महत्व, जानिए किस दिशा में कौन सी चीजों का होना शुभ
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( Image Source:  META AI )
State Mirror Astro
By: State Mirror Astro

Updated on: 19 Dec 2025 6:30 AM IST

हिंदू धर्म में वास्तु शास्त्र एक बहुत ही महत्वपूर्ण विद्या मानी जाती है. वास्तु में दिशाओं का विशेष महत्व होता है और इन दिशाओं के आधार पर सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जाओं का आवागमन होता है. हर एक दिशा का संबंध किसी न किसी ग्रह से अवश्य होता है.

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अगर घर की दिशा अच्छी नहीं यानी उसमें दोष है तो इसका प्रभाव व्यक्ति के जीवन, स्वास्थ्य, करियर, आर्थिक और मानसिक स्थिति पर पड़ता है. वास्तु के अनुसार कुल दिशाएं होती है जिनका अपना खास महत्व होता है. आइए जानते हैं इन 8 दिशाओं के शुभ लाभ और दोषों का प्रभाव.

पूर्व दिशा -सूर्य की दिशा

वास्तु में पूर्व की दिशा को सबसे शुभ और पवित्र दिशा मानी जाती है. पूर्व की दिशा के स्वामी सूर्यदेव होते हैं. वास्तु शास्त्र के अनुसार इस दिशा में घर का मुख्य द्वार और खिड़की का होना सबसे अच्छा माना जाता है. इस दिशा का खुला होना अच्छा माना जाता है. वहीं अगर पूर्व की दिशा में किसी तरह का दोष होता है तो घर में लड़ाई-झगड़े, वाद-विवाद, नौकरी में अड़चनें, मानिसक बीमारियां और स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों का सामना करना होता है.

दक्षिण दिशा -मंगल ग्रह का प्रभाव

दक्षिण दिशा के स्वामी ग्रह मंगलदेव होते हैं. वास्तु शास्त्र के अनुसार इस दिशा में भारी चीजों को रखना वर्जित होता है. इस दिशा में दोष होने पर भाईयों में विवाद, क्रोध और दुर्घटनाओं में वृद्धि. रक्त विकार, कुष्ठ, फोड़े-फुंसी, बवासीर, चेचक आदि रोगों की आशंका रहती है.

उत्तर दिशा -बुध ग्रह

वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर दिशा के स्वामी ग्रह बुध देव होते हैं. इस दिशा में घर का मुख्य द्वार, बालकनी और खिड़की का होना शुभ माना जाता है. ऐसे में अगर इस दिशा में दोष होता है. तो बुद्धि और विद्या में कमी, वाणी दोष, स्मरण शक्ति का ह्रास होता है.

पश्चिम दिशा- शनि ग्रह

पश्चिम दिशा के स्वामी शनि ग्रह होते है और इस दिशा में न्याय और कर्मफलदाता शनि का सबसे ज्यादा प्रभाव होता है. इस दिशा में दोष होने पर नौकरी में संकट, भय, कैंसर, नपुंसकता और पैरों से संबंधित रोगों की संभावना बढ़ जाती है.

ईशान कोण- बृहस्पति ग्रह की दिशा

ईशान कोण घर की पूर्व-उत्तर की दिशा को माना जाता है. ईशान कोण घर का सबसे शुभ और पवित्र दिशा मानी जाती है. इस दिशा के स्वामी ग्रह देव गुरु बृहस्पति होते हैं. इसके अलावा इस दिशा में समस्त देवी-देवताओं का वास होता है. इस दिशा में पूजास्थल, जल स्रोत, स्वीमिंग पूल या मुख्य द्वार होना श्रेष्ठ माना गया है. इस दिशा में दोष होने पर पूजा-पाठ में अरुचि, गुरु और देवताओं पर आस्था में कमी, आय व संचित धन में गिरावट और सेहत में गिरावट का सामना करना होता है.

आग्नेय- शुक्र ग्रह की दिशा

आग्नेय दिशा घर का दक्षिण और पूर्व के बीच स्थित कोण को माना जाता है. इसके स्वामी शुक्र ग्रह हैं. इस दिशा में अग्नि तत्व की प्रधानता रहती है. इस दिशा में रसोईघर, गैस, बॉयलर, ट्रांसफॉर्मर आदि रखना उचित होता है. यदि यह दिशा दोषयुक्त हो जाए तो स्त्री सुख में कमी, वाहन कष्ट, और गर्भाशय संबंधी समस्याएं हो सकती हैं.

नैऋत्य कोण- राहु ग्रह की दिशा

इस दिशा के स्वामी राहु ग्रह माने जाते हैं. इस दिशा में घर के मुखिया का शयनकक्ष, कैश काउंटर या भारी मशीनें रखी जा सकती हैं. इस दिशा में दोष होने पर परिवार में असमय मृत्यु का भय, भूत-प्रेत या जादू-टोने का भय सबसे ज्यादा होता है.

वायव्य कोण- चंद्र ग्रह की दिशा

वायव्य कोण की दिशा के स्वामी चंद्र ग्रह हैं. इस दिशा में शयनकक्ष, गैरेज या गौशाला होना उचित माना गया है. इस दिशा में दोष होने पर माता से संबंधों में तनाव, मानसिक अशांति, जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

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