टीवी-गेमिंग नहीं, सिर्फ सोशल मीडिया बिगाड़ रहा बच्चों का दिमाग, जानिए क्या कहती है न्यूरोसाइंटिस्टों की रिसर्च!

स्वीडन के प्रसिद्ध कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के न्यूरोसाइंटिस्ट्स ने 9 दिसंबर 2025 को एक चौंकाने वाली रिसर्च पब्लिश किया है. 8,300 से अधिक 10-14 साल के बच्चों पर 4 साल तक चले इस स्टडी में साफ पाया गया कि सोशल मीडिया (इंस्टाग्राम, स्नैपचैट, टिकटॉक, फ़ेसबुक) का ज्यादा इस्तेमाल बच्चों की ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को धीरे-धीरे कम कर रहा है. जितना अधिक समय बच्चे सोशल मीडिया पर बिताते हैं, उतना ही उनका 'असावधानी स्कोर' बढ़ता जाता है. चार साल में भारी यूज़र्स का ध्यान 0.15 अंक तक गिर गया.;

( Image Source:  Create By AI Sora )
Edited By :  रूपाली राय
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न्यूरोसाइंटिस्टों ने एक नई रिसर्च के नतीजे बताते हुए चेतावनी दी कि 10 से 14 साल के जो बच्चे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं, उनकी कंसंट्रेशन यानी ध्यान लगाने की ताकत धीरे-धीरे कम होती जा रही है. स्वीडन की मशहूर कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर टॉर्केल क्लिंगबर्ग, जो इस पूरे रिसर्च के मुख्य साइंटिस्ट हैं, ने ब्रिटेन के बड़े अखबार 'द टेलीग्राफ' को बताया. उन्होंने कहा, 'अब तक लोग ज्यादातर बच्चों के कुल स्क्रीन टाइम (यानी मोबाइल-टीवी पर कुल कितना समय) की बात करते थे. लेकिन हमने देखा कि असल फर्क इस बात से पड़ता है कि बच्चा उस स्क्रीन टाइम को किस चीज में खर्च कर रहा है.

इंस्टाग्राम, फेसबुक, स्नैपचैट जैसे सोशल मीडिया ऐप्स का ज्यादा इस्तेमाल करने वाले बच्चों में ध्यान भटकने की समस्या धीरे-धीरे बढ़ती दिखी, जबकि इतना ही समय टीवी देखने या वीडियो गेम खेलने में बिताने वाले बच्चों में ऐसा कोई असर नहीं दिखा यानी सिर्फ स्क्रीन देखना ही समस्या नहीं है, सोशल मीडिया का खास तरीका (बार-बार नोटिफिकेशन, मैसेज, लाइक्स) दिमाग को बार-बार भटकाता है, जो दूसरे कामों में नहीं होता.'  

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टीवी या वीडियो गेम फिर भी सुरक्षित 

रिसर्चर ने 8,300 से ज्यादा बच्चों पर चार साल तक नजर रखी. इन बच्चों में हर नस्ल-जाति के बच्चे शामिल थे गोरे, काले, हिस्पैनिक, एशियाई, मूल अमेरिकी आदि. पता चला कि जितना ज्यादा समय बच्चा सोशल मीडिया पर बिताता है, उतना ही उनका 'ध्यान भटकने' का स्कोर बढ़ता जाता है. चार साल में ज्यादा सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वाले बच्चों का ध्यान स्कोर औसतन 0.15 अंक तक बढ़ गया. हैरानी की बात यह है कि टीवी देखने या वीडियो गेम खेलने से ध्यान पर ऐसा कोई बुरा असर नहीं दिखा. इस रिसर्च के मुख्य वैज्ञानिक प्रोफेसर टॉर्केल क्लिंगबर्ग ने द टेलीग्राफ को बताया, 'पहले हम सोचते थे कि सारा ध्यान 'कुल स्क्रीन टाइम' पर है, यानी बच्चा कितने घंटे फोन-टीवी के सामने बैठता है.  लेकिन अब साफ हो गया है कि असल बात यह है कि बच्चा स्क्रीन का इस्तेमाल किस चीज के लिए कर रहा है. सोशल मीडिया का असर बिलकुल अलग और खतरनाक है. टीवी या गेमिंग में ऐसा नहीं दिखता.' 

क्यों सिर्फ सोशल मीडिया ही नुकसान पहुंचा रहा है?

सोशल मीडिया पर हर पल नोटिफिकेशन, मैसेज, लाइक्स, स्टोरीज़ आते रहते हैं। ये बार-बार ध्यान भटकाते हैं. बच्चा खेलते-खेलते या पढ़ते-पढ़ते भी सोचता रहता है, 'कोई मैसेज आया कि नहीं? बस यही छोटी-छोटी रुकावटें ध्यान की ताकत को खा जाती हैं. दूसरी तरफ वीडियो गेम में बच्चे को लगातार ध्यान देना पड़ता है, इसलिए गेमिंग से ध्यान पर बुरा असर नहीं पड़ता, बल्कि कई बार सुधार भी दिखता है. 

छोटा-छोटा असर, भयानक नतीजा

रिसर्चर्स मानते हैं कि एक अकेले बच्चे पर यह असर बहुत छोटा है शायद उसे तुरंत कुछ समझ भी न आए. लेकिन जब लाखों-करोड़ों बच्चे रोज़ सोशल मीडिया पर घंटों बिताते हैं, तो पूरी की पूरी जनरेशन का ध्यान कमजोर हो जाता है. उदाहरण के लिए अभी दुनिया में 5-11% बच्चे ADHD (ध्यान की कमी और हाइपरएक्टिविटी की बीमारी) की कैटेगिरी में आते हैं. अगर सोशल मीडिया का इस्तेमाल इसी तरह बढ़ता रहा, तो यह आंकड़ा 7-14% तक पहुंच सकता है यानी दोगुना से भी ज्यादा बच्चे ध्यान की गंभीर समस्या में फंस सकते हैं. 

ठीक उसी समय ऑस्ट्रेलिया ने उठाया बड़ा कदम 

इस रिसर्च के ठीक दो दिन बाद ऑस्ट्रेलिया ने दुनिया का सबसे सख्त कानून बनाया. 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर पूरी तरह बैन है. अब वहां दस लाख से ज्यादा बच्चे-किशोर इंस्टाग्राम, टिकटॉक, स्नैपचैट आदि नहीं चला सकेंगे. हालांकि भारत में भी हालत चिंताजनक है. 2021 में 19 राज्यों के 50 स़्डडी रिव्यू में पता चला था कि 20-40% कॉलेज स्टूडेंट्स को इंटरनेट की लत का खतरा है. 2024 में तमिलनाडु में हुए एक सर्वे में एक-चौथाई किशोर रोज़ 2 घंटे से ज्यादा सोशल मीडिया पर बिताते पाए गए. 

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