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पोस्टिंग ज़ीरो: अब लोग सोशल मीडिया पर कुछ भी शेयर क्यों नहीं करना चाहते?

आजकल एक नया ट्रेंड बहुत तेज़ी से फैल रहा है 'Posting Zero' मतलब लोग सोशल मीडिया पर कुछ भी पोस्ट करना लगभग बंद कर चुके हैं. पहले जहां हर पल की फोटो, स्टोरी, रील डालना ज़रूरी था, अब वही लोग महीनों-महीनों तक एक भी पोस्ट नहीं डालते. जन्मदिन चुपचाप निकल जाता है, घूमने गए तो फोटो कैमरा रोल में रह जाती हैं, दोस्तों के साथ मस्ती की रातें सिर्फ़ यादों में रहती हैं फॉलोअर्स को कुछ नहीं पता चलता.

पोस्टिंग ज़ीरो: अब लोग सोशल मीडिया पर कुछ भी शेयर क्यों नहीं करना चाहते?
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( Image Source:  Create By AI Sora )
रूपाली राय
Edited By: रूपाली राय

Published on: 7 Dec 2025 2:36 PM

आजकल एक अजीब-सा लेकिन शांत बदलाव दिख रहा है. जिन लोगों का फ़ीड कभी फोटो, स्टोरीज़ और रील्स से भरा रहता था, उनके अकाउंट अब ख़ामोश पड़े हैं. बर्थडे बीत जाता है, कोई पोस्ट नहीं घूमने गए, कोई फोटो नहीं. दोस्तों के साथ रात भर हंसी-मज़ाक हुआ, लेकिन उसकी एक झलक भी ऑनलाइन नहीं आई. ऐसा नहीं है कि उनकी ज़िंदगी बोरिंग हो गई है. बस अब ज़िंदगी को जीना और उसे दुनिया को दिखाना इन दोनों में से ज़्यादातर लोग पहला ऑप्शन चुन रहे हैं. बिना कोई अनाउंसमेंट किए, बिना कोई बड़ा बयान दिए, लाखों लोग चुपचाप 'पोस्टिंग ज़ीरो' मोड में चले गए हैं.

2025 की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में सोशल मीडिया अकाउंट बनाने वालों की संख्या में सिर्फ़ 4% का इज़ाफ़ा हुआ. लेकिन असल में प्लेटफ़ॉर्म यूज़ करने वालों की संख्या 1.3% कम हो गई यानी लोग अकाउंट तो रखे हैं, पर रोज़ खोलकर कुछ डालना बंद कर चुके हैं. सबसे बड़ा बदलाव तो मकसद में आया है पहले लोग सोशल मीडिया इसलिए यूज़ करते थे कि 'देखो मैं कहां हूं क्या कर रहा हूं.' अब टॉप कारण ये हैं- दोस्तों-परिवार से बात करना, टाइम पास करना, ख़बरें पढ़ना, मज़ेदार वीडियो-मीम्स देखना. लेकिन 'अपनी ज़िंदगी दूसरों को दिखाना' या 'अपनी राय सबको बताना' अब सबसे नीचे पहुंच गया है. मतलब सोशल मीडिया अब टीवी जैसा हो गया है – हम दर्शक बन गए हैं, हीरो नहीं.

पहले मज़ा था, अब बोझ लगने लगा

शुरुआती दिनों में इंस्टाग्राम-फेसबुक पर फोटो डालना मज़ेदार था. एक साधारण सी सेल्फ़ी भी सौ लाइक्स ले आती थी. लेकिन धीरे-धीरे खेल बदल गया. अब परफ़ेक्ट लाइट, परफ़ेक्ट कैप्शन, परफ़ेक्ट हैशटैग, परफ़ेक्ट ग्रिड चाहिए। एक फोटो डालने में घंटों लगने लगे।ऊपर से आए AI इन्फ़्लुएंसर – जिनकी स्किन बिल्कुल परफ़ेक्ट, बाल बिल्कुल परफ़ेक्ट, ज़िंदगी बिल्कुल परफ़ेक्ट। हम इंसानों को अपनी असली ज़िंदगी और फीकी लगने लगी। हम थक गए।फ़्लेम यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर साईराज पटकी कहते हैं, “लोगों को लगा कि इतनी मेहनत करने के बाद भी जो ख़ुशी या मान्यता मिलनी चाहिए थी, वो नहीं मिल रही। ऊपर से प्लेटफ़ॉर्म भी अब पहले जैसे सच्चे और अपने नहीं लगते। नतीजा – लोग चुपचाप पीछे हटने लगे.'

ये भागना नहीं, अपनी हदें खींचना है

क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. रिम्पा सरकार कहती हैं कि पोस्टिंग ज़ीरो कोई नेगेटिव बात नहीं है. बल्कि ये एक तरह की डिजिटल सीमा रेखा है. उनके बहुत से क्लाइंट अब दो तरह के अकाउंट रखते हैं: पब्लिक अकाउंट ख़ामोश पड़ा रहता है, प्राइवेट या फ़िन्स्टा (फ़ेक इंस्टा) सिर्फ़ 10-20 सबसे क़रीबी दोस्त, जहां बिना मेकअप के फोटो, उदास स्टोरीज़, बेवकूफ़ी भरे जोक्स डालते हैं. डॉ. सरकार कहती हैं, 'ये लोग इंटरनेट से भाग नहीं रहे. वो बस वो जगह वापस चाहते हैं जहां वो बिना जजमेंट के खुद हो सकें. जहां हर पल को परफ़ॉर्म नहीं करना पड़े.' डॉ. सरकार चेताती भी हैं कुछ लोग सचमुच इसलिए चुप हैं क्योंकि उन्हें डर लगता है. कोई ट्रोल कर देगा, जज कर देगा, या पुरानी पोस्ट खोदकर ले आएगा. वो ख़ामोशी अलग होती है उसमें डर और अकेलापन झलकता है. लेकिन ज़्यादातर लोगों की ख़ामोशी में एक हल्कापन है. एक राहत है. जैसे कोई बोझ उतारकर सांस ली हो.

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