कौन हैं अमीर खान मुत्ताकी, जिनकी भारत यात्रा से चीन-पाकिस्तान में मची खलबली? अमेरिका की भी उड़ी नींद

अफगानिस्तान के तालिबान विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी अपने पहले आधिकारिक भारत दौरे पर पहुंचे हैं, जहां वे विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात कर भारत-तालिबान संबंधों को नई दिशा देंगे. यह यात्रा ऐसे समय हो रही है जब भारत ने तालिबान शासन को औपचारिक मान्यता नहीं दी है, लेकिन बदलते क्षेत्रीय समीकरणों और चीन-पाकिस्तान की बढ़ती भूमिका के बीच नई दिल्ली सतर्क संवाद की नीति पर आगे बढ़ रही है. मुत्ताकी की इस यात्रा से अफगानिस्तान में भारत की रणनीतिक उपस्थिति और मानवीय सहयोग को नया आयाम मिलने की उम्मीद है.;

( Image Source:  ANI )
Edited By :  अच्‍युत कुमार द्विवेदी
Updated On : 9 Oct 2025 10:52 PM IST

Who is Amir Khan Muttaqi, India Taliban relations: अफगानिस्तान के तालिबान शासन के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी पहली आधिकारिक यात्रा पर भारत पहुंचे हैं. 9 से 16 अक्टूबर तक चलने वाले इस दौरे के दौरान वह विदेश मंत्री एस. जयशंकर से शुक्रवार को मुलाकात करेंगे और आगरा व देवबंद के मदरसों का दौरा भी करेंगे. यह यात्रा ऐसे समय हो रही है जब भारत ने तालिबान को औपचारिक मान्यता नहीं दी है, लेकिन भू-राजनीतिक समीकरण और सुरक्षा हितों को देखते हुए नई दिल्ली 'सावधानीपूर्वक संवाद' (cautious engagement) की नीति पर आगे बढ़ रही है.

क्यों अहम है मुत्ताकी का भारत दौरा

भारत के लिए अफगानिस्तान सिर्फ एक पड़ोसी देश नहीं, बल्कि रणनीतिक गहराई और क्षेत्रीय स्थिरता का सवाल है. तालिबान शासन से भारत की सीधी बातचीत अब तक सीमित और सतर्क रही है, लेकिन बदलते अंतरराष्ट्रीय हालात, जिनमें पाकिस्तान से तालिबान के तनाव, चीन की सक्रियता और अमेरिका-रूस के नए समीकरण शामिल हैं, ने नई दिल्ली को इस दिशा में कदम बढ़ाने पर मजबूर किया है.

कौन हैं अमीर खान मुत्ताकी?

मुत्ताकी का जन्म 1970 में अफगानिस्तान के हेलमंद प्रांत में हुआ. सोवियत आक्रमण के बाद उनका परिवार पाकिस्तान में शरणार्थी बनकर रहने लगा, जहां उन्होंने धार्मिक शिक्षा प्राप्त की. 1994 में जब तालिबान आंदोलन उभरा, मुत्ताकी उससे जुड़े और कंधार रेडियो स्टेशन के निदेशक बने. बाद में वे तालिबान की उच्च परिषद में शामिल हुए. मार्च 2000 में वे शिक्षा मंत्री बने और 2021 में तालिबान की सत्ता वापसी के बाद उन्हें कार्यवाहक विदेश मंत्री बनाया गया.

भारत-तालिबान संवाद का इतिहास

भारत और तालिबान के बीच शुरुआती संपर्क 1999 के आईसी-814 विमान अपहरण के समय हुआ था. उस वक्त तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह तालिबान विदेश मंत्री वकील अहमद मुत्तवाकिल से संपर्क में थे. 2000 में तालिबान दूत मुल्ला अब्दुल सलीम ज़ईफ ने इस्लामाबाद स्थित भारतीय राजदूत विजय के. नांबियार से भी मुलाकात की थी, हालांकि बातचीत का कोई ठोस परिणाम नहीं निकला.

2021 में तालिबान के काबुल कब्जे के बाद भारत ने धीरे-धीरे तालिबान से संपर्क बढ़ाना शुरू किया. अगस्त 2021 में भारत के क़तर राजदूत दीपक मित्तल ने दोहा में तालिबान के प्रतिनिधि शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई से मुलाकात की, जो कभी भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून के प्रशिक्षु रह चुके हैं. इसके बाद 2022 में जेपी सिंह के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल काबुल गया और मुत्ताकी से बातचीत की. उसी वर्ष भारत ने काबुल में एक 'तकनीकी टीम' भी तैनात की.

भारत की अफगान जनता को भेजी गई मानवीय और विकास सहायता

भारत ने तालिबान शासन के दौरान भी अफगान जनता की मदद जारी रखी. अब तक भारत ने भेजा है,

  • 50,000 मीट्रिक टन गेहूं,
  • 300 टन दवाएं,
  • 27 टन भूकंप राहत सामग्री,
  • 40,000 लीटर कीटनाशक,
  • 100 मिलियन पोलियो वैक्सीन,
  • 1.5 मिलियन कोविड डोज़,
  • और खेल (क्रिकेट) में सहयोग बढ़ाने का प्रस्ताव.

साथ ही, दोनों देशों के बीच चाबहार बंदरगाह के उपयोग पर भी सहमति बनी है ताकि व्यापार और मानवीय सहयोग को गति दी जा सके.

तालिबान की मांगें और भारत की रणनीति

तालिबान ने भारत से व्यवसायियों, छात्रों और मरीजों को वीज़ा जारी करने की अपील की है, लेकिन सुरक्षा कारणों और भारत के औपचारिक मान्यता न देने की नीति के चलते यह फिलहाल कठिन है. फिर भी भारत ने संकेत दिया है कि वह अफगानिस्तान के सभी 34 प्रांतों में विकास परियोजनाएं आगे बढ़ाने को तैयार है.

पाकिस्तान और क्षेत्रीय समीकरण

तालिबान और पाकिस्तान के रिश्तों में आई दरार ने भारत के लिए अवसर पैदा किया है. पाकिस्तान द्वारा अफगान शरणार्थियों की वापसी और सीमा तनाव के बीच भारत ने मानवीय सहायता देकर काबुल के साथ भरोसे का माहौल बनाने की कोशिश की है. अब जबकि चीन अफगानिस्तान में दूतावास खोल चुका है, रूस अपने युद्ध में उलझा है और अमेरिका ट्रंप 2.0 नीति के तहत अप्रत्याशित रवैया अपना रहा है, भारत मानता है कि यह सही समय है तालिबान से सीधी बातचीत बढ़ाने का.

भारत और तालिबान के बीच संबंधों का यह नया अध्याय यथार्थवादी कूटनीति (Realpolitik) की मिसाल है. नई दिल्ली अब यह समझ चुकी है कि अफगानिस्तान से दूरी नहीं, बल्कि सीमित संपर्क और सतर्क सहयोग ही दक्षिण एशिया में स्थिरता और भारत की सुरक्षा हितों की कुंजी है.

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