क्या है हैदराबाद गजट, जिसके सहारे खत्म हुआ मराठा आरक्षण आंदोलन?
मराठा आरक्षण को लेकर लंबे समय से चली आ रही जद्दोजहद में अब एक नए मोड़ आ गया है. महाराष्ट्र सरकार ने 'हैदराबाद गजट' को लागू करने पर सहमति दे दी है. इस फैसले से मराठा समुदाय के लोगों को बड़ा लाभ मिल सकता है. इससे मराठा आरक्षण को कानूनी हक मिलने का रास्ता साफ हो गया है. मनोज जरांगे पाटिल के नेतृत्व वाले आंदोलन के समाधान की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है.;
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन पिछले कई दशकों से बड़ा राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा रहा है. समय-समय पर अदालतों और सरकार के फैसलों से यह मामला अटकता और सुलझता रहा है. अब 'हैदराबाद गजट' को लागू करने के राज्य सरकार के निर्णय ने इस आरक्षण की राह को आसान बना दिया है. इससे मराठा समाज के लाखों युवाओं को शिक्षा और नौकरियों में लाभ मिल सकता है. इतना ही नहीं, हैदराबाद गजट के आधार पर मराठवाड़ा में मराठा समुदाय अब अपनी कुनबी स्थिति स्थापित कर सकेंगे. यह रियायत मनोज जरांगे पाटिल के नेतृत्व वाले आंदोलन के समाधान की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है.
दरअसल, महाराष्ट्र सरकार ने 2 सितंबर को मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल की 'हैदराबाद गजट' को लागू करने की मांग को स्वीकार कर लिया. इसे मराठा समुदाय को ओबीसी कोटा लाभ देने की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों के साथ जारी गतिरोध समाप्त करने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है.
हैदराबाद गजट क्या है?
भारत की स्वतंत्रता से पहले मराठवाड़ा क्षेत्र में शामिल महाराष्ट्र के 8 सूखाग्रस्त जिले पहले हैदराबाद के निजाम का अधिकार क्षेत्र में आता था. इस क्षेत्र को लेकर हैदराबाद गजट 1918 में हैदराबाद के तत्कालीन निजाम ने एक आदेश जारी किया था. इसमें मराठा समाज को पिछड़ा वर्ग मानकर उन्हें आरक्षण का हक देने की बात दर्ज है. इस आदेश में क्षेत्र की जनसंख्या, जातियों और समुदायों, व्यवसायों, कृषि आदि से संबंधित सभी जानकारी और अभिलेख शामिल हैं. मराठा आरक्षण को लेकर आंदोलन मनोज जरांगे व स्थानीय लोगों उसी गजट के आधार पर आरक्षण को लागू करने की मांग करते आए हैं. सरकार के इस फैसले से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लोग भी आरक्षण का लाभ उठा पाएंगे.
हैदराबाद गजट से पता चलता है कि मराठा, जो कृषि में लगे हुए थे, मराठवाड़ा में एक बड़ा समुदाय थे, लेकिन उन्हें आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ा माना जाता था. वे यह भी बताते हैं कि मराठा समुदाय को कुनबी समुदाय के समान ही माना जाता था. निजाम की सरकार ने शिक्षा और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को आरक्षण देने का आदेश जारी किया था. यह निर्णय आधिकारिक राजपत्र में दर्ज है.
महाराष्ट्र सरकार क्यों हुई राजी?
हाल के महीनों में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन तेज हुआ. पाटीदारों और ओबीसी समाज की तर्ज पर मराठों ने भी आरक्षण का हक मांगा. अदालत में जब कानूनी चुनौती आई, तब "हैदराबाद गजट" एक मजबूत आधार के रूप में सामने आया. राज्य सरकार ने अब इसे लागू करने का निर्णय लिया है. ताकि आरक्षण पर कानूनी शिकंजा न कसा जा सके.
मराठा आरक्षण महाराष्ट्र की राजनीति में हमेशा बड़ा मुद्दा रहा है. 'हैदराबाद गजट' लागू होने से न केवल मराठा समाज संतुष्ट होगा बल्कि सरकार को भी स्थिरता मिलेगी. हालांकि, ओबीसी वर्ग में नाराजगी की संभावना बनी हुई है क्योंकि वे इसे अपने हिस्से पर अतिक्रमण मान सकते हैं.
मनोज जरांगे का तर्क क्या है?
1884 के एक पुराने दस्तावेज में भी 'मराठा' का उल्लेख नहीं है. इसकी जगह 'कुनबी' का उल्लेख है, जिससे पता चलता है कि उस समय मराठों को कुनबी के रूप में वर्गीकृत किया जाता था. स्वतंत्रता के बाद, मराठवाड़ा महाराष्ट्र राज्य का हिस्सा बन गया और इस समुदाय को मराठा कहा जाने लगा.
मनोज जरांगे पाटिल का कहना है कि मराठों की प्रामाणिक वंशावली का पता लगाने के लिए 1884 के दस्तावेज पर विचार किया जाना चाहिए. जरांगे के उसी तर्क को आधार मानते हुए हैदराबाद राजपत्र को प्रामाणिक रिकॉर्ड मानते हुए, सरकार अब मराठवाड़ा में मराठों को कुनबी का दर्जा और इसके साथ ही ओबीसी आरक्षण का लाभ देने पर सहमत हो गई है.
सीएम देवेंद्र फडणवीस सरकार का हमेशा से मानना रहा है कि मराठा आरक्षण से संबंधित किसी भी निर्णय को संवैधानिक और कानूनी जांच से गुजरना होगा. अभी तक सरकार दस्तावेजी साक्ष्यों के आधार पर महाराष्ट्र भर के मराठों को कुनबी प्रमाण पत्र जारी करने की जरांगे पाटिल की मांग को मानने में सावधानी बरतती रही है.
बता दें 29 अगस्त से मुंबई के आजाद मैदान में धरना दे रहे जरांगे पाटिल ने मंगलवार को संकेत दिया कि महाराष्ट्र के मंत्रियों के एक प्रतिनिधिमंडल, जिनमें से अधिकांश मराठा समुदाय से हैं, ने धरना स्थल पर उनसे मुलाकात के बाद वह अपना आंदोलन वापस लेने के लिए तैयार हैं. मंत्रिमंडलीय उप-समिति ने आश्वासन दिया है कि यदि प्रदर्शनकारी प्रस्ताव पर सहमत होते हैं, तो सरकार मराठवाड़ा क्षेत्र के मराठों को कुनबी का दर्जा देने के लिए एक सरकारी प्रस्ताव (जीआर) जारी करेगी.