कार्तिगई दीपम का क्या है महत्त्व? थिरुपरणकुंद्रम पहाड़ी पर दीप जलाने को लेकर बवाल, धारा 144 लागू, क्या है विवाद की वजह

तमिलनाडु के थिरुपरणकुंद्रम पहाड़ी पर पुराने दीप स्तंभ (Deepathoon) पर कार्तिगई दीप जलाने को लेकर विवाद छिड़ गया है. कोर्ट की हरी झंडी और विरोध-प्रदर्शन के बीच अयोजित दीपोत्सव ने कानून, धर्म और सामाजिक संतुलन पर सवाल उठाए जा रहे हैं. जानिए पूरी कहानी.;

( Image Source:  @SuryahSG )
Curated By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 4 Dec 2025 2:46 PM IST
तमिलनाडु के मैदुरै जिले की थिरुपरणकुंद्रम पहाड़ी हमेशा से विश्वास और आस्था का केंद्र रहा है. यह दुनिया में लाइव सिटी क के नाम से भी जाना जाता है. इस साल Madras High Court (Madurai Bench) ने आदेश दिया कि इस पर्वत पर पुराने पत्थर के दीप स्तंभ (Deepathoon) पर कार्तिगई दीप जलाना चाहिए, क्योंकि यह स्थान पारंपरिक रूप से दीपांजन के लिए माना जाता था. इस आदेश ने एक शांतिपूर्ण पूजा से ज्यादा समुदायों, धर्मों, और कानून के बीच टकराव की स्थिति पैदा कर दी है.

कार्तिगई दीपम का महत्त्व

कार्तिगई दीपम तमिलनाडु का सबसे पुराना और पवित्र दीपोत्सव मनाया जाता है. यह प्रकाश, पवित्रता, आध्यात्मिक जागरण और भगवान शिव-मुरुगन की आराधना का महापर्व है. इसे “तमिल दीपावली” भी कहा जाता है.

कार्तिगई दीपम का सबसे बड़ा आध्यात्मिक अर्थ है भगवान शिव की अनंत, असीम ज्योति (Jyothi Swaroopa). माना जाता है कि शिव ने इसी दिन अनंत अग्नि स्तंभ के रूप में दर्शन दिए थे. इसलिए पर्वत, मंदिरों और घरों के बाहर दीप जलाकर इस अनादि प्रकाश का स्वागत किया जाता है.

 भगवान मुरुगन का जन्म दिवस

तमिल मान्यता के अनुसार यह पर्व भगवान मुरुगन (कार्तिकेय) का जन्मदिन भी माना जाता है. इसलिए, तमिलनाडु में इसे मुरुगन भक्ति के महापर्व के रूप में मनाया जाता है.

क्‍या है पेच?

कोर्ट ने माना कि Deepathoon (पहाड़ी का पुराना पत्थर स्तंभ) मंदिर भूमि का हिस्सा है, न कि उस मस्जिद/दरगाह से जुड़ा है. इसलिए, वहां दीप जलाना न्यायसंगत है. अदालत ने स्पष्ट किया कि मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों  अर्थात् दरगाह की सुरक्षा या पवित्रता पर दीप जलाने से कोई असर नहीं पड़ेगा. कोर्ट ने निर्देश दिया कि मंदिर प्रबंधन और स्थानीय पुलिस इस आदेश को लागू करे.

क्यों विवाद हुआ?  

 मैदुरै जिले की थिरुपरणकुंद्रम पहाड़ी, जिस पर मंदिर और दरगाह दोनों हैं, सदियों से सामूहिक समन्वय का प्रतीक रही है, लेकिन दीप जलाने की इस मांग ने धार्मिक और सामाजिक संतुलन को ही दांव पर लगा दिया. कई लोग मानते हैं कि दीपोत्सव रूप में यह कदम नई परंपरा शुरू करने का प्रयास है.  

विरोधी पक्ष का तर्क था कि यह पहाड़ी जिस हिस्से पर दीप जलाने की बात हो रही है, वहां पहले यह परंपरा नहीं रही, इसलिए यह धार्मिक भावना और सामाजिक शांति के लिए जोखिम है.

 अदालत के आदेश के बाद मंदिर प्रबंधन ने इसे लागू न कर दीप को रूटीन स्थान (उची पिल्लैयार मंदिर के पास) पर जलाने का फैसला किया. इससे नाराज समूहों जो Deepathoon पर दीप जलाना चाहते थे, में असंतोष चरम पर है.

पुलिस और सुरक्षा बलों,  जिनमें Central Industrial Security Force (CISF) शामिल है, के मौके पर तैनात करना पड़ा है. इस बीच विवादित क्षेत्र में विरोध-प्रदर्शन के दौरान हिंसा, पत्थरबाजी घटना सामने आई है.

मदुरई जिला प्रशासन ने हालात को भांपते हुए कानून-व्यवस्था के मद्देनजर बंदी आदेश (prohibitory orders) लागू कर दिए है.

 कोर्ट का आदेश क्या है?

कोर्ट ने यह कहा कि दीप जलाना धार्मिक परंपरा का हिस्सा है.  किसी की धार्मिक भावना आहत नहीं होगी. अगर यह परंपरा उचित स्थान पर हो. प्रस्‍तुत स्थान (Deepathoon) पर दीप जलाना सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि मंदिर की जमीन और अधिकारों की रक्षा का भी मामला है. हालांकि, मंदिर प्रशासन की चुप्पी और विरोधियों की नाराजगी दोनों ने इस उत्सव को एक संवेदनशील विवाद में बदल दिया.

क्या है पूरा मामला?

मदुरै की थिरुपरनकुंद्रम पहाड़ी पर कार्तिगई दीपम त्योहार के दौरान उस समय तनाव बढ़ गया, जब सिकंदर दरगाह के पास एक विवादित दीपदान पर पारंपरिक दीपक न जलाने का विरोध कर रहे हिंदू संगठनों की पुलिस से झड़प हो गई. हालांकि, उची पिल्लैयार मंदिर में हमेशा की तरह दीपदान जलाया गया था, लेकिन मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन ने याचिकाकर्ता रामा रविकुमार और दूसरों को दरगाह से 15 मीटर दूर दीपदान करने की इजाजत दी थी. इस दौरान सुरक्षा के लिए CISF के जवानों को तैनात किया गया था.

बावजूद इसके पुलिस ने धारा 144 के तहत रोक का हवाला देते हुए लोगों को अंदर जाने से रोक दिया. इस पर बीजेपी, हिंदू मुन्नानी, हिंदू मक्कल काची और दूसरों ने बैरिकेड हटा दिए, बैरियर फेंके और हाथापाई की, जिसमें एक पुलिसकर्मी घायल हो गया, जिसका इलाज एक लोकल अस्पताल में हुआ. 16 खंभों वाले मंडपम और मंदिर के एंट्रेंस जैसी जगहों पर नारे और विरोध के बीच 1,000 से ज्यादा पुलिसवालों की भारी तैनाती की गई थी.

हिंदू  संगठनों ने लगाए गंभीर आरोप

करीब 50 की संख्या में लोग थोड़ी देर के लिए पहाड़ी की चोटी पर घुसे, फिर उन्हें हटा दिया गया. हिंदू मुन्नानी के स्टेट प्रेसिडेंट कुंडेश्वर सुब्रमण्यम और BJP के जोनल लीडर वेलमुरुगन ने प्रदर्शनों को लीड किया और अधिकारियों पर कोर्ट की बात न मानने और हिंदू रीति-रिवाजों में दखल देने का आरोप लगाया.

स्टेट गवर्नमेंट ने ऑर्डर के खिलाफ अपील की, जस्टिस जयचंद्रन ने 4 दिसंबर से सुनवाई तय की है. मदुरै पुलिस कमिश्नर जे. लोगनाथन ने कन्फर्म किया कि पाबंदियों की वजह से पहाड़ी पर जाने की इजाजत नहीं है.

 न्यायिक जांच की मांग

तमिलनाडु BJP प्रेसिडेंट नैनार नागेंद्रन ने इस अशांति की निंदा करते हुए इसे थिरुपरनकुंद्रम की पवित्रता को खराब करने और भक्तों पर हमला करने की कोशिश” बताया और सदियों पुरानी परंपरा के खिलाफ पुलिस की कथित ज्यादती की ज्यूडिशियल जांच की मांग की.

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