फुरफुरा शरीफ वाले ISF की लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन में वापसी की आहट, TMC के खिलाफ मोर्चा, क्या ममता के लिए साबित होंगे भस्मासुर?
इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) पश्चिम बंगाल में अपने अस्तित्व में आने के समय से ही टीएमसी कट्टर विरोधी है. राज्य में एक बार फिर विधानसभा चुनाव निकट आते ही उसने लेफ्ट और कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने की तैयारी शुरू कर दी है. इसके लिए वामपंथी पार्टी के नेताओं को एक चिट्ठी भी उसने लिखी है. अगर यह गठबंधन होता है तो विधानसभा चुनाव 2026 ममता बनर्जी की राह आसान नहीं होगी. विपक्षी खेमे के लिए यह गठबंधन अहम साबित हो सकता है.;
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव मार्च-अप्रैल 2026 में होगा, लेकिन अभी से वहां की राजनीति में बदलाव के संकेत मिलने लगे हैं. इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) जो अब तक तृणमूल कांग्रेस (TMC) की कट्टर विरोधी रही है, वह एक बार फिर लेफ्ट और कांग्रेस गठबंधन में वापसी की तैयारी में जुटी है. अगर यह गठबंधन होता है तो ममता बनर्जी की राह आसान नहीं होगी और यह विपक्षी खेमे के लिए 'गेम चेंजर' साबित हो सकता है.
दरअसल, बंगाल की अल्पसंख्यक राजनीति में फुरफुरा शरीफ के कर्ताधर्ताओं द्वारा स्थापित आईएसएफ मुस्लिम बहुल इलाकों में अहम प्रभाव है. खासकर ग्रामीण इलाकों और दक्षिण 24 परगना जैसे जिलों में ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के नेताओं पर एआईएसएफ के नेता लगातार अल्पसंख्यकों की अनदेखी और ‘मुस्लिम वोट बैंक’ की तरह इस्तेमाल करने का आरोप लगाते आए हैं.
वाम मोर्चा के अध्यक्ष को लिखी चिट्ठी
सूफी मौलवी अब्बास सिद्दीकी द्वारा गठित और नौशाद सिद्दीकी के नेतृत्व वाली ये आईएसएफ का मकसद मुसलमानों और दलितों को 'सामाजिक न्याय' दिलाना है. पार्टी ने 2026 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए एक बार फिर वामपंथियों और कांग्रेस के साथ गठबंधन बनाने पर पर विचार कर रही है. आईएसएफ के एकमात्र विधायक नौशाद सिद्दीकी ने इस बात को ध्यान में रखते हुए माकपा के वरिष्ठ नेता और वाम मोर्चा के अध्यक्ष बिमान बोस को एक पत्र भेजा है, जिसमें वामपंथियों के साथ गठबंधन और चुनावों के लिए 'सीटों के बंटवारे पर शीघ्र बातचीत' की मांग की है. इसके जवाब में माकपा नेतृत्व ने संकेत दिया है कि उनके नेता नौशाद के प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार करेंगे. यानी आगामी चुनावों में आईएसएफ वामपंथियों और कांग्रेस से फिर हाथ मिला सकते हैं.
ISF की बंगाल में अलग पहचान
आईएसएफ ने 2021 के विधानसभा चुनावों में वाम मोर्चा और कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था. वाम मोर्चा और कांग्रेस अपना खाता भी नहीं खोल पाए, लेकिन आईएसएफ ने एक सीट हासिल की, जिसमें नौशाद ने कोलकाता के पास दक्षिण 24 परगना जिले के मुस्लिम बहुल भांगर निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की. केवल चार वर्षों में आईएसएफ ने पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों में पार्टी का विस्तार किया है. साथ ही राज्य की राजनीति में अपनी अलग छाप छोड़ी है.
साल 2023 में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने भारी जीत हासिल की थी. जिसमें वाम-कांग्रेस गठबंधन का आईएसएफ के साथ समझौता था. नौशाद के नेतृत्व वाले संगठन ने राज्य भर के कई मुस्लिम इलाकों में अच्छा प्रदर्शन किया और 336 सीटें जीतीं. ग्राम पंचायतों में 325 सीटें, पंचायत समितियों में 10 सीटें और जिला परिषद की एक सीट.
इन जिलों में रहा उम्मदा प्रदर्शन
हिंसा से प्रभावित पंचायत चुनावों में आईएसएफ ने उत्तर और दक्षिण 24 परगना, हावड़ा और मालदा जिलों में अच्छा प्रदर्शन किया. पार्टी को हुगली, पूर्वी मिदनापुर, नादिया और मुर्शिदाबाद जिलों में भी सीटें मिलीं. अपने गढ़ भांगर में आईएसएफ ने 43 सीटें जीतीं. जबकि पूरे पंचायत चुनाव के दौरान इस क्षेत्र में आईएसएफ और टीएमसी कार्यकर्ताओं के बीच बड़े पैमाने पर झड़पें हुईं. इन झड़पों में तीन लोगों की जान चली गई. मतगणना के दिन (11 जुलाई, 2023) को भी इस क्षेत्र में हिंसा भड़की थी जिसमें दो आईएसएफ समर्थकों सहित तीन युवकों की मौत हुई थी.
लोकसभा चुनाव में परिणाम रहा शिफर
आईएसएफ ने 2024 के लोकसभा चुनावों की पूर्व संध्या पर वाम-कांग्रेस गठबंधन से अपने संबंध तोड़ लिए और कुछ प्रमुख सीटों पर माकपा और कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार उतारे. इनमें से केवल कांग्रेस ही एक सीट जीत पाई. जबकि टीएमसी ने 29 सीटें जीतीं. जबकि मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने राज्य की 42 सीटों में से 12 सीटें जीतीं।
यहां मिले मनोबल बढ़ाने वाले वोट
लोकसभा चुनावों में आईएसएफ को बारासात और श्रीरामपुर जैसे कुछ क्षेत्रों में मनोबल बढ़ाने वाले वोट मिले. आईएसएफ के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "हमने बंगाल के विभिन्न हिस्सों में लोकसभा चुनावों में अकेले चुनाव लड़ने का प्रयोग किया. इससे अब हमें 2026 के विधानसभा चुनावों के लिए अपने संभावित गठबंधन सहयोगियों के साथ सौदेबाजी करने में मदद मिलेगी."
बंगाली भाषी मुसलमान में हैं गहरी पैठ
बंगाल के हुगली जिले के श्रीरामपुर उप-मंडल में स्थित फुरफुरा शरीफ दरगाह के बंगाल में बड़ी संख्या में अनुयायी हैं. इस क्षेत्र में लगभग 30% मुस्लिम आबादी है, जिनमें से 50 प्रतिशत से ज्यादा बंगाली भाषी मुसलमान हैं. कहा जाता है कि आईएसएफ का समर्थन मुख्यतः बंगाली भाषी मुसलमानों के एक वर्ग में है.
TMC और बीजेपी का विरोधी पार्टी
सिद्दीकी बंधु भी एक राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उनके चाचा तोहा सिद्दीकी के टीएमसी से घनिष्ठ संबंध रहे हैं. दोनों भाइयों ने आईएसएफ की स्थापना एक ऐसी पार्टी के रूप में की थी जो टीएमसी और भाजपा दोनों का विरोध करेगी. साथ ही गरीब मुसलमानों, दलितों और आदिवासियों की भलाई के लिए काम करेगी.
ममता ने मुसलमानों के लिए कुछ नहीं किया
आईएसएफ की शुरुआत करते हुए अब्बास सिद्दीकी ने कहा था, "बंगाल में वर्षों तक कांग्रेस के शासन, उसके बाद माकपा और फिर तृणमूल कांग्रेस के शासन ने मुसलमानों या गरीब लोगों के लिए कुछ नहीं किया."
टीएमसी मांगे माफी
आगामी विधानसभा चुनावों का जिक्र करते हुए आईएसएफ के एक नेता ने कहा, "भाजपा को रोकने के अपने प्रयासों में, हमारी पार्टी गैर-भाजपा दलों के साथ चुनाव पूर्व या चुनाव बाद किसी भी गठबंधन के लिए तैयार है, लेकिन टीएमसी को पहले बंगाल के मुस्लिम समुदाय की उपेक्षा के लिए माफी मांगनी चाहिए. जिन निर्वाचन क्षेत्रों में आईएसएफ के उम्मीदवार नहीं हैं, वहां वह भाजपा के खिलाफ अन्य उम्मीदवारों का समर्थन करेगी. फुरफुरा शरीफ की हिंदू समुदाय में भी बड़े पैमाने पर स्वीकार्यता है."
ऐसे अस्तित्व में आया था ISF
आईएसएफ की स्थापना फुरफुरा शरीफ सूफी दरगाह के मौलवी पीरजादा अब्बास सिद्दीकी और नौशाद ने मुसलमानों और दलितों के लिए "सामाजिक न्याय" सुनिश्चित करने के उद्देश्य से की थी. साल 2021 के विधानसभा चुनाव में लेफ्ट-कांग्रेस-आईएसएफ गठबंधन बना था, लेकिन बाद में मतभेदों की वजह से आईएसएफ अलग हो गई थी.