AI से एक सवाल और 1 बोतल पानी खत्म! ChatGPT जैसे AI ऐप के चलते धरती पर कम हो रहा वाटर लेवल, जानें कैसे

आज हम डिजिटल दुनिया में जितना आगे बढ़ रहे हैं, उतना ही हमारे संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है. ChatGPT और अन्य AI ऐप्स के चलते सिर्फ डेटा प्रोसेसिंग और सर्वर ऑपरेशन ही नहीं, बल्कि लाखों लीटर पानी भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से खर्च हो रहा है. हर बार जब हम AI से सवाल पूछते हैं या कोई मॉडल रन होता है, तो इसके पीछे विशाल सर्वर फार्म चलते हैं, जिनमें ठंडक बनाए रखने और संचालन के लिए भारी मात्रा में पानी का उपयोग होता है. जानिए कैसे हमारी टेक्नोलॉजी की तेजी धरती के पानी को प्रभावित कर रही है.;

( Image Source:  AI SORA )
Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 18 Dec 2025 5:38 PM IST

आज की दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) हर जगह नजर आ रही है. चाहे चैटबॉट्स हों या मौसम और क्लाइमेट मॉडल, AI हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन चुका है. लेकिन इस तेजी से बढ़ते AI के पीछे एक बड़ी चुनौती है, जिस पर अभी तक ध्यान कम गया है. वह पानी की खपत है. 

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क्या आप जानते हैं कि आपके एक एआई सर्च के चलते धरती पर पानी कम हो रहा है. यह उस समय चिंताजनक है जब दुनिया कई जगह पानी की कमी का सामना कर रही है. भारत जैसे देश पहले ही सूखे और पानी की कमी जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं, और AI की बढ़ती मांग इन दबावों को और बढ़ा सकती है.

AI सर्च से कम हो रहा धरती पर पानी

नई स्टडी बताती है कि AI को चलाने के लिए बहुत बड़े डेटा सेंटर बनाए जाते हैं. इन सेंटरों में हजारों सर्वर लगे होते हैं, जो चौबीसों घंटे काम करते रहते हैं. लगातार काम करने से ये सर्वर बहुत ज्यादा गर्म हो जाते हैं, इसलिए इन्हें ठंडा रखना जरूरी होता है. ज्यादातर डेटा सेंटर अभी भी सर्वरों को ठंडा करने के लिए साफ यानी ताजे पानी का इस्तेमाल करते हैं. इस प्रक्रिया में काफी पानी भाप बनकर उड़ जाता है और जो पानी बचता है, वह इस्तेमाल के बाद अक्सर दोबारा काम का नहीं रहता. स्टडी में यह भी बताया गया है कि दुनिया भर में करीब 45 फीसदी डेटा सेंटर ऐसे नदी क्षेत्रों में बने हैं, जहां पहले से ही पानी की कमी है. इससे वहां रहने वाले लोगों और दूसरे सेक्टरों के लिए पानी की समस्या और बढ़ सकती है.

डेटा सेंटर और पानी की कमी

स्टडी के मुताबिक, सिर्फ अमेरिका में ही साल 2023 के दौरान डेटा सेंटरों ने करीब 66 अरब लीटर पानी खर्च किया. चिंता की बात यह है कि मामला केवल सीधे इस्तेमाल होने वाले पानी तक सीमित नहीं है. डेटा सेंटरों को चलाने के लिए बहुत ज्यादा बिजली चाहिए होती है और बिजली बनाने में भी बड़ी मात्रा में पानी लगता है. बताया गया है कि किसी एक डेटा सेंटर की कुल पानी की खपत में से लगभग 75 फीसदी हिस्सा बिजली उत्पादन से जुड़ा होता है.

AI में बढ़ते निवेश के चलते अब बड़े-बड़े डेटा सेंटर एशिया, यूरोप और अमेरिका जैसे इलाकों में बनाए जा रहे हैं. ये वही क्षेत्र हैं, जहां पहले से ही सूखा, पानी की कमी और जमीन के नीचे के जल स्तर में गिरावट की समस्या मौजूद है.

भारत और पानी का संकट

भारत में पानी की कमी पहले से ही एक गंभीर समस्या है. कई इलाकों में लोगों को पीने और रोज़मर्रा के कामों के लिए भी पानी जुटाने में दिक्कत होती है. दूसरी तरफ, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI की मांग तेजी से बढ़ रही है और इसके साथ ही बड़े-बड़े डेटा सेंटर भी बढ़ते जा रहे हैं. इन डेटा सेंटरों को चलाने और ठंडा रखने के लिए बहुत ज्यादा पानी इस्तेमाल होता है. इसका सीधा असर जल संसाधनों पर पड़ता है और खेती, उद्योग व आम लोगों की जरूरतों के लिए पानी और कम हो जाता है.

1 सर्च और 1 पानी की बोतल गायब

शोध के अनुसार, AI का यह पानी खर्च बहुत कम नहीं है. चौंकाने वाली बात यह है कि सिर्फ 100 शब्दों का एक छोटा-सा AI सवाल या कमांड प्रोसेस करने में ही लगभग एक बोतल पानी खर्च हो जाता है. मतलब साफ है कि जैसे-जैसे AI का इस्तेमाल बढ़ेगा, वैसे-वैसे पानी पर दबाव भी बढ़ता चला जाएगा.

अनदेखा पहलू: पारदर्शिता की कमी

रिपोर्ट में सबसे बड़ा सवाल उठाया गया है-पारदर्शिता की कमी. अब तक कोई वैश्विक नियम नहीं हैं, जो AI या डेटा सेंटर कंपनियों को पानी की खपत, पानी के जोखिम या स्थानीय पर्यावरणीय प्रभाव बताने के लिए बाध्य करें. इससे सरकार, निवेशक और स्थानीय समुदाय लंबी अवधि के जोखिम का सही आकलन नहीं कर पाते. शोधकर्ताओं का कहना है कि सिर्फ ऊर्जा की बचत अब पर्याप्त नहीं है. इसके लिए जरूरी है:

  • डेटा सेंटर के स्थान का स्मार्ट चुनाव
  • पानी की खपत और स्थानीय जल संकट की जानकारी का अनिवार्य खुलासा
  • पानी बचाने वाली तकनीक का इस्तेमाल

AI और टिकाऊ भविष्य

शोध का निष्कर्ष साफ है: AI दुनिया में लो-कार्बन भविष्य बनाने में मदद कर सकता है, लेकिन केवल तभी जब इसके इंफ्रास्ट्रक्चर की योजना प्राकृतिक संसाधनों को ध्यान में रखकर बनाई जाए. AI अब केवल स्मार्ट होने का सवाल नहीं है, बल्कि यह भी सवाल है कि इसके पीछे की संसाधन संरचना कितनी टिकाऊ है.

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