उपराष्ट्रपति एन्क्लेव सील हुआ था या नहीं! सचिवालय में लगा ताला, अचानक कहां गए सभी अधिकारी-कर्मचारी?

74 वर्षीय उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे के बाद वीपी एन्क्लेव खाली कर दिया गया। सत्ता से टकराव, विपक्षी प्रस्ताव और सरकार की चुप्पी ने इस घटनाक्रम को रहस्य से भर दिया है। अब सवाल है- ये स्वास्थ्य कारण थे या राजनीतिक दबाव? क्या एनडीए नया चेहरा जल्द लाएगा?;

Edited By :  नवनीत कुमार
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74 वर्षीय उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का अचानक इस्तीफा देना जितना चौंकाने वाला था, उतना ही कई राजनीतिक संकेतों से जुड़ा हुआ भी दिखा. उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपना पद छोड़ा, लेकिन जिस तेज़ी से इस्तीफे के बाद सचिवालय खाली कराया गया और अधिकारी हटाए गए, उससे यह स्पष्ट हुआ कि यह कदम कई दिनों से तैयारी में था. यह सिर्फ स्वास्थ्य का मामला नहीं, बल्कि सत्ता के गलियारों में गहराती खींचतान का परिणाम भी प्रतीत होता है.

नवनिर्मित उपराष्ट्रपति एन्क्लेव जहां कभी सत्ता का दूसरा सबसे बड़ा पद सुशोभित था, अब सन्नाटा ओढ़े हुए है. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, धनखड़ के सचिवालय को तीन दिन के भीतर बंद कर दिया गया और अधिकतर अफसरों को उनके मूल कैडर में वापस भेज दिया गया. चाबियां सौंप दी गईं और एन्क्लेव को एक प्रतीकात्मक विराम दे दिया गया. हालांकि, किसी कमरे को ‘सील’ नहीं किया गया, लेकिन एक युग की समाप्ति की तस्वीर ज़रूर उभर आई.

पद छोड़ने के पीछे की अनकही कहानी

धनखड़ के अचानक कदम के पीछे स्वास्थ्य नहीं, बल्कि सत्ता के गलियारों में उनकी बढ़ती "अलग राय" मानी जा रही है. राज्यसभा में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ विपक्षी महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार करना, सरकार की रणनीति के विपरीत था. यह कदम भाजपा नेतृत्व के लिए चौंकाने वाला था, जिसने उनके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी तक कर ली थी. अंततः उन्हें "या इस्तीफा दो या प्रस्ताव झेलो" की सूचना भेजी गई.

विपक्ष से दूरी, सत्ता से कटाव

धनखड़ के इस्तीफ़े के बाद न तो सत्ता पक्ष और न ही विपक्ष ने कोई विशेष सहानुभूति दिखाई. मल्लिकार्जुन खड़गे, शरद पवार जैसे विपक्षी नेता उनसे मिलना चाहते थे, लेकिन उन्होंने किसी को समय नहीं दिया. विपक्ष के साथ उनके संबंध पहले ही विवादों से भरे थे. राहुल गांधी ने तो उनकी भूमिका को "पक्षपातपूर्ण" करार दिया था, जिससे वे हमेशा एक टकराव की स्थिति में रहे.

‘स्वस्थ विदाई’ या ‘राजनीतिक निकासी’?

धनखड़ ने अपने पत्र में "स्वास्थ्य देखभाल" को इस्तीफ़े का कारण बताया, लेकिन अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक उनके पास कोई विकल्प नहीं था. सत्ता के केंद्र में बने रहने के लिए सत्ता के साथ तालमेल ज़रूरी होता है, और धनखड़ इस संतुलन को खो चुके थे. सरकार के भीतर की नीतिगत असहमतियां उनके विरुद्ध लामबंदी में बदल गईं.

सत्ता की ‘चुप्पी’ बहुत कुछ कहती है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर एक संक्षिप्त पोस्ट करके धनखड़ के "स्वास्थ्य" की कामना की, लेकिन एनडीए के अन्य नेता मौन ही रहे. न समर्थन, न श्रद्धांजलि. यह सत्ता पक्ष की ओर से एक संदेश था: "आप अब हमारे साथ नहीं हैं." यहां तक कि उनकी पोस्ट को भी अधिकतर भाजपा नेताओं ने साझा नहीं किया.

इस्तीफा को लिया गया सामान्य

भारत के उपराष्ट्रपति का इस्तीफा कोई सामान्य घटना नहीं होती, लेकिन संसद की कार्यवाही में इसे एक मामूली खबर की तरह लिया गया. मानसून सत्र में उनके स्थान पर कोई विशेष श्रद्धांजलि नहीं दी गई. उनकी गैरमौजूदगी संसद में "व्यवधानों की सामान्य दिनचर्या" से ज्यादा चर्चा का विषय नहीं बनी. इससे स्पष्ट है कि उनका इस्तीफा राजनीतिक दृष्टिकोण से स्वीकार्य था.

कौन लेगा धनखड़ की जगह?

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि धनखड़ की जगह कौन लेगा? क्या भाजपा सत्ता के प्रति पूरी तरह से समर्पित चेहरा लाएगी, या कोई संतुलित चेहरा सामने आएगा? विपक्ष इस घटनाक्रम को भुनाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अब सत्ता पक्ष जल्दी ही उपराष्ट्रपति के नए उम्मीदवार की घोषणा कर अपनी स्थिति मजबूत करेगा. यह एक नई नियुक्ति ही नहीं, बल्कि नई सत्ता रणनीति की भी शुरुआत होगी.

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