India Out से India In तक... पीएम मोदी की मालदीव यात्रा से भारत को क्या होगा फायदा? जानिए क्यों खास है ये दौरा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय मालदीव दौरे पर हैं, जहां वे राष्ट्रपति मुइज्जू के निमंत्रण पर स्वतंत्रता दिवस समारोह में मुख्य अतिथि होंगे. इस यात्रा के दौरान आर्थिक सहयोग, समुद्री सुरक्षा और विकास परियोजनाओं पर अहम समझौते होंगे. यह दौरा भारत-मालदीव संबंधों को फिर से प्रगाढ़ करने और चीन के प्रभाव को संतुलित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मालदीव यात्रा केवल एक औपचारिक दौरा नहीं, बल्कि भारत-मालदीव संबंधों में आई तल्ख़ी को सुधारने की रणनीतिक पहल है. राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के सत्ता में आने के बाद मालदीव की विदेश नीति में चीन के प्रति झुकाव देखा गया था, जिसने नई दिल्ली को चिंतित कर दिया था. मोदी की यह यात्रा मुइज्जू सरकार के साथ संवाद की एक नई शुरुआत मानी जा रही है.
25 से 26 जुलाई तक हो रही इस यात्रा में मोदी मालदीव के स्वतंत्रता दिवस समारोह में मुख्य अतिथि होंगे. किसी भी राष्ट्राध्यक्ष को मुख्य अतिथि बनाना केवल राजनयिक औपचारिकता नहीं, बल्कि मजबूत साझेदारी का प्रतीक होता है. मालदीव ने जिस तरह मोदी को यह सम्मान दिया है, वह भारत के लिए रणनीतिक जीत और चीन को परोक्ष संदेश माना जा सकता है.
दोनों देशों के बीच क्या होगी बातचीत?
मोदी और राष्ट्रपति मुइज्जू के बीच जो बातचीत प्रस्तावित है, उसमें आर्थिक सहयोग, समुद्री सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता प्रमुख मुद्दे होंगे. हिंद महासागर में चीन की बढ़ती गतिविधियों के बीच भारत और मालदीव के बीच समुद्री निगरानी और सुरक्षा साझेदारी को और गहरा किया जा सकता है. यह बातचीत केवल द्विपक्षीय नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक संतुलन से भी जुड़ी है.
भारत की सॉफ्ट पावर का विस्तार
प्रधानमंत्री मोदी अपनी यात्रा के दौरान भारत द्वारा वित्तपोषित अनेक विकास परियोजनाओं का उद्घाटन करेंगे. इसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढांचे और यातायात से जुड़ी योजनाएं शामिल हैं. ये परियोजनाएं भारत की 'Neighbourhood First' नीति और सॉफ्ट पावर की मिसाल हैं, जिनके माध्यम से वह चीन की आर्थिक घुसपैठ का जवाब दे रहा है.
किन MoUs पर होंगे हस्ताक्षर?
यात्रा के दौरान कई MoUs पर हस्ताक्षर होंगे, जिससे द्विपक्षीय संबंधों को संस्थागत रूप मिलेगा. इनमें रक्षा, व्यापार, जलवायु परिवर्तन और डिजिटल कनेक्टिविटी जैसे क्षेत्रों की भागीदारी को मज़बूत किया जाएगा. ये समझौते भारत-मालदीव संबंधों को दीर्घकालीन स्थिरता देने की दिशा में अहम साबित हो सकते हैं.
मुइज्जू सरकार का संदेश साफ़
राष्ट्रपति मुइज्जू द्वारा प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा को अपनी पहली राजकीय यात्रा के रूप में स्वीकार करना यह दर्शाता है कि मालदीव भारत के साथ संबंधों को पुनर्स्थापित करने का इच्छुक है. इसे चीन के प्रभाव से बाहर निकलने की एक कूटनीतिक चाल के तौर पर भी देखा जा रहा है, जिससे यह संदेश जाए कि मालदीव 'भारत-प्रथम' नीति की ओर लौट रहा है.
चीन को लगेगा झटका
हिंद महासागर में भारत की रणनीति में मालदीव का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है. चीन की ‘String of Pearls’ नीति और उसकी बढ़ती नौसैनिक उपस्थिति को देखते हुए भारत के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वह अपने समुद्री पड़ोसियों के साथ रिश्तों को मज़बूत बनाए. मोदी की यह यात्रा इसी समुद्री रणनीति का हिस्सा है.
राजनयिक यात्रा या संदेशवाहक राजनीति?
हालांकि यह यात्रा एक कूटनीतिक औपचारिकता के रूप में प्रस्तुत की गई है, लेकिन इसके संदेश गहरे हैं. भारत यह जताना चाहता है कि वह अपने पड़ोसियों के साथ रिश्तों को लेकर सजग है और किसी भी चीनी रणनीति को चुनौती देने में सक्षम है. मोदी की मालदीव यात्रा इसी राजनयिक आत्मविश्वास और क्षेत्रीय नेतृत्व की अभिव्यक्ति है.