विद्रोह जिनकी सांसों में था, जेल मंच बना और कलम अस्त्र; बग़ावत का दूसरा नाम थे वीर सावरकर

28 मई को वीर सावरकर की जयंती पर हम उनके साहस, विचारधारा और क्रांतिकारी को जानेंगे. विदेशी कपड़ों की होली से काला पानी की कालकोठरी तक, उनका हर कदम आजादी की लौ जलाता रहा. ‘मित्र मेला’ की नींव, 1910 का समुद्री पलायन और 1857 पर लिखित पुस्तक ने साम्राज्य को झकझोरा. उनका जीवन युवाओं के लिए स्थायी प्रेरणा है.;

By :  नवनीत कुमार
Updated On : 28 May 2025 8:31 AM IST

28 मई को हम एक ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी, विचारक और क्रांतिकारी की जयंती मनाते हैं, जिन्होंने भारत की आज़ादी की लड़ाई को वैचारिक और सशस्त्र दोनों मोर्चों पर नई दिशा दी. वे थे विनायक दामोदर सावरकर. जिनका नाम सुनते ही देशभक्ति, त्याग और अदम्य साहस की प्रतिमा आंखों के सामने उभरती है. उन्होंने न केवल ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ जंग लड़ी, बल्कि हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के विचार को भी एक संगठित वैचारिक ढांचे में ढाला.

सावरकर की जिंदगी एक साधारण क्रांतिकारी की नहीं, बल्कि ऐसे योद्धा की रही, जिसने विचारों से हथियारों को चुनौती दी और जेल की दीवारों के बीच भी अपने शब्दों से क्रांति की चिंगारी फैलाई. अंडमान की कालीपानी जेल में बिताए गए उनके साल, उनके त्याग और संघर्ष के सबसे सशक्त प्रमाण हैं. उनकी जयंती हमें ये याद दिलाने का अवसर देती है कि स्वतंत्रता केवल तलवार से नहीं, विचारों की ताकत से भी आती है. आइए, आज वीर सावरकर के पांच प्रेरणादायक किस्सों के माध्यम से उनकी विरासत को याद करें.

जब सावरकर ने विदेशी कपड़ों की होली जलाई

1905 में बनारस में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन के दौरान युवा सावरकर ने विदेशी कपड़ों की होली जलाने का आयोजन किया. उस वक्त यह क्रांतिकारी कदम माना गया क्योंकि भारत में पहली बार सार्वजनिक रूप से ब्रिटिश वस्त्रों का विरोध हुआ था. सावरकर के नेतृत्व में छात्रों ने अपने घरों से विदेशी कपड़े लाकर आग में झोंक दिए. यह केवल कपड़ों की होली नहीं थी, यह एक चेतना थी कि अब गुलामी का वस्त्र नहीं, आज़ादी का स्वाभिमान ओढ़ा जाएगा.

कालीपानी की कालकोठरी में भी नहीं टूटा हौसला

1911 में उन्हें ब्रिटिश सरकार ने काला पानी की सज़ा देकर अंडमान के सेलुलर जेल में भेजा. जहां आम कैदी मानसिक रूप से टूट जाते थे, वहां सावरकर ने जेल की दीवारों पर नाखून और पत्थर से कविताएं उकेरीं. उन्होंने अपने साथियों को प्रेरणा दी, गीत लिखे और क्रांतिकारी विचारों को ज़िंदा रखा. यही नहीं, उन्होंने वहां हिंदी, मराठी, संस्कृत और राजनीति की शिक्षा भी बंदियों को दी. उनका संघर्ष बताता है कि असली वीर वो होता है जो अंधेरे में भी मशाल बन जाए.

जब समुद्र में कूदकर रचा था पलायन का इतिहास

1910 में जब उन्हें इंग्लैंड से भारत लाया जा रहा था और जहाज़ मार्सेल्स (फ्रांस) के तट पर रुका, तो सावरकर बाथरूम की खिड़की से निकलकर समुद्र में कूद पड़े. उनका इरादा फ्रांसीसी तट पर पहुंचकर शरण लेना था, लेकिन ब्रिटिश सैनिकों ने उन्हें फिर पकड़ लिया. हालांकि वे स्वतंत्र नहीं हो सके, लेकिन उनका यह दुस्साहस ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ उनकी असाधारण हिम्मत का उदाहरण बन गया.

अंडमान में गुप्त संगठन 'मित्र मेला' की नींव

1899 में विनायक दामोदर सावरकर और उनके भाई गणेश दामोदर सावरकर ने नासिक में ‘मित्र मेला’ नामक संगठन बनाया था, जिसका उद्देश्य था ब्रिटिश शासन के खिलाफ युवाओं में क्रांति की भावना भरना. यही संगठन आगे चलकर ‘अभिनव भारत’ में बदल गया, जिसने देशभर में कई क्रांतिकारी आंदोलनों को जन्म दिया. सावरकर का मानना था कि विचार और संगठन ही सच्चे हथियार हैं. उनके इस विज़न ने कई युवाओं को देशभक्ति की राह पर चलने के लिए प्रेरित किया.

सावरकर की किताब ने ब्रिटिश सत्ता को हिला दिया

1909 में उन्होंने ‘1857 का स्वतंत्रता संग्राम’ नामक किताब लिखी, जिसमें 1857 की क्रांति को पहली बार “भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम” कहा गया. यह पुस्तक ब्रिटिश सरकार के लिए इतनी खतरनाक मानी गई कि इसे तुरंत बैन कर दिया गया. यह पुस्तक न केवल क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी, बल्कि इतिहास के पन्नों में भी एक नई दृष्टि लेकर आई.

वीर सावरकर के 20 विचार

  • स्वतंत्रता कोई उपहार नहीं, बल्कि हक है और हक छीना जाता है. आज़ादी की भीख मांगना हमें हमेशा परतंत्र बनाए रखेगा. हक़ के लिए आवाज़ उठानी पड़ती है, लड़ना पड़ता है.
  • ज्ञान ही असली हथियार है. पढ़ा-लिखा समाज कभी किसी के आगे नहीं झुकता. शिक्षा बदलाव की पहली सीढ़ी है.
  • जो अपने हीरों को भूल जाए, वो खुद खो जाता है. अपने इतिहास से कटे लोग, अपना भविष्य नहीं बना सकते.
  • धर्म, दर्शन और परंपरा हमारी ताकत हैं इनसे दूरी नहीं, जुड़ाव चाहिए. अपनी जड़ों से जुड़ो, तभी ऊंचाई मिलती है.
  • सोच शांत हो सकती है, लेकिन कदमों में आग होनी चाहिए. सोच समझकर योजना बनाओ, लेकिन अमल करते वक्त दिल और दिमाग दोनों को झोंक दो.
  • भेदभाव छोड़ो, भाईचारा अपनाओ. जात-पात, धर्म, भाषा ये सब सिर्फ बांटते हैं, जोड़ते नहीं.
  • छुआछूत इंसानियत पर धब्बा है. कोई भी समाज तब तक आगे नहीं बढ़ सकता जब तक उसके कुछ लोग पीछे धकेले जाएं.
  • हम सब एक ही धड़कन हैं, एक ही रक्त में बहती संस्कृति. फर्क सिर्फ नज़रिया करता है, असल में हम सब एक हैं.
  • संस्कृत सिर्फ भाषा नहीं, आत्मा है. जिसने संस्कृत को खो दिया, उसने अपनी पहचान खो दी.
  • भारत कोई नक्शा नहीं, भावना है. यहां की मिट्टी, यहां के बलिदान यही हमें प्रेरणा देते हैं.
  • दुनिया उन्हीं की सुनती है जो खुद के लिए खड़े होते हैं. आत्मसम्मान ही असली ताकत है और वह सिर्फ लड़कर मिलता है.
  • अगर समाज बंटा रहा, तो आज़ादी सिर्फ सपना रहेगी. एकजुटता ही असली आज़ादी की चाबी है.
  • कायर इतिहास के फुटनोट बनते हैं, बहादुर इतिहास लिखते हैं. डरकर जीने से बेहतर है, सम्मान से मरना.
  • राष्ट्र सबसे पहले बाकी सब बाद में. जब दिल और कर्म सिर्फ देश के लिए हों, तब ही बदलाव होता है.
  • नेता वो नहीं जो बोलता है, नेता वो है जो करके दिखाता है. शब्दों से नहीं, कर्मों से पहचान बनती है.
  • जन्मभूमि और पुण्यभूमि दोनों भारत ही हैं. यही हमें एक विशेष सांस्कृतिक राष्ट्र बनाता है.
  • हम एक हैं, लेकिन हर कोई एक जैसा नहीं है. यह विविधता ही हमारी ताकत है. विचार भिन्न हो सकते हैं, पर लक्ष्य एक होना चाहिए: भारत को मजबूत बनाना.
  • धर्म वहीं तक ठीक है जहाँ तक वह देश को जोड़ता है. देश से ऊपर कोई आस्था नहीं होनी चाहिए.
  • जो झुकता है, वो बच सकता है, लेकिन इतिहास में नाम उसका होता है जो झुकता नहीं. सम्मान से जीने का मतलब है खड़े रहना, चाहे कितनी भी आंधियां आएं.
  • इतिहास वो नहीं जो किताबों में है, इतिहास वो है जो तुम बना रहे हो. हर दिन, हर कदम इतिहास रचने का मौका है.

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